भरतपुर. संभाग मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर दूर स्थित हैं सेवर पंचायत समिति के ये 3 गांव. मूंढोता ग्राम पंचायत के (Savar Panchayat Samiti Health Facility) छापर खुर्द, छापर कलां और छापर मंदिर गांव कहने को आजादी से भी पहले के गांव हैं. इनकी आबादी करीब 1400 से अधिक है. चुनावों के समय नेता वोट मांगने भी आते हैं, लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी इन गांवों को राजस्व गांव का दर्जा नहीं मिल पाया है. ताज्जुब की बात तो यह है कि एक-एक किलोमीटर की दूरी पर बसे इन गांवों में आंगनबाड़ी और अस्पताल तक नहीं हैं. यहां तक कि गांव आने-जाने के लिए भी दूसरों के रहमो करम पर निर्भर रहना पड़ता है.
तीन गांव, 1400 की आबादी : असल में मूंढोता ग्राम पंचायत के छापर खुर्द, छापर कलां और छापर मंदिर तीन गांव हैं. जिनमें छापर खुर्द की 500, छापर कलां की 700 और छापर मंदिर की 200 की आबादी है. ये तीनों गांव 500 मीटर से 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं, लेकिन इन गांवों को अब तक (Lack of Basic Facilities in Villages of Bharatpur District) राजस्व गांव का दर्जा प्राप्त नहीं हो पाया है, जिसकी वजह से यह गांव मूलभूत सुविधाओं से भी महरूम हैं.
रहमो करम पर रास्ता : मूंढोता के उप सरपंच और छापर खुर्द निवासी मनोहर सिंह ने बताया कि अभी तक तीनों के लिए सड़क तो दूर, बल्कि स्थाई कच्चा रास्ता तक उपलब्ध नहीं है. गांव के लोगों ने अपने खेतों में से जगह छोड़कर रास्ता बना रखा है. कुम्हेर-सेवर सड़क मार्ग से जुड़ने के लिए तो एक भामाशाह से खेत में से रास्ता मांग रखा है, तब जाकर ग्रामीणों के गांव आने-जाने की व्यवस्था हो पा रही है.
गांव में न अस्पताल, न एंबुलें पहुंचती है : गांव की महिला भगवती देवी और संतरा देवी ने बताया कि गांव में उपचार के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक की सुविधा नहीं है. कोई भी बीमार होता है तो उसे लेकर सेवर या भरतपुर भागना पड़ता है. गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी के समय तो गांव में सही रास्ता नहीं होने की वजह से एंबुलेंस भी नहीं पहुंच पाती. कई बार तो कुछ गर्भवती महिलाओं की इस वजह से जान तक चली गई. इतना ही नहीं शादी के समय बारात और दूल्हे को भी मूंढोता गांव में बस खड़ी करके पैदल गांव तक पहुंचा पड़ता है.
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कई बार फरियाद की, नहीं हो रही सुनवाई : समाज सेवी और भाजपा किसान मोर्चा के जिला उपाध्यक्ष कुंवर सिंह ततामड़ ने बताया कि गांव की समस्याओं और इसे राजस्व गांव का दर्जा दिलाने के लिए कई बार जिला कलेक्टर और प्रशासनिक अधिकारियों से फरियाद लगाई, लेकिन अभी तक कहीं पर कोई सुनवाई नहीं हुई है. हालात यह है कि गांव में चंबल का पानी तक नहीं पहुंच पाया है, जिसकी वजह से ग्रामीण महिलाओं को दूर हैंडपंप से सिर पर मटकी रखकर पीने का पानी लाना पड़ता है. चुनावों के समय पर नेता आते हैं, बड़े-बड़े वादे कर जाते हैं, लेकिन जीतने के बाद ग्रामीणों की समस्याओं के समाधान के लिए कोई आगे नहीं आता.
एक शिक्षिका के भरोसे 50 बच्चों का भविष्य : कुंवर सिंह ने बताया कि गांव में 1 प्राथमिक स्कूल है जिसमें 50 बच्चों का नामांकन है, लेकिन पढ़ाने के लिए सिर्फ एक शिक्षिका है. कई बार ऐसा होता है कि स्कूल के कार्य से उन्हें भरतपुर मुख्यालय या अन्य जगह जाना पड़ता है. ऐसे में या तो स्कूल की छुट्टी करनी पड़ती है या फिर अन्य स्कूल से अन्य शिक्षक की व्यवस्था करनी पड़ती है.
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क्या है राजस्व गांव और उसकी सुविधा : राजस्व गांव के लिए गांव की आबादी कम से कम करीब 250 होनी चाहिए. साथ ही 2 गांव के बीच की दूरी 1 किलोमीटर से डेढ़ किलोमीटर तक होनी चाहिए. जिन गांवों को राजस्व गांव का दर्जा मिल जाता है उन गांव में आंगनबाड़ी केंद्र, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, विकास कार्यों के लिए अलग से बजट, 8वीं तक विद्यालय आदि की सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं.