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पान की खेती करने वाले किसान पलायन को मजबूर, सरकार से मदद की आस - सरकार

भरतपुर जिले में पान की खेती करने वाले किसान आज पानी की कमी और फसल की ज्यादा लागत आने के चलते रोजगार के लिए गांवों से पलायन करने को मजबूर हैं. ऐसे में उन्हें सरकार की तरफ से मदद की आस है.

पान की खेती
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Published : May 20, 2019, 5:45 PM IST

भरतपुर. जिले के कई गांवों में हजारों सालों से पान की खेती की जा रही है. यहां के पान की ख्याति इस बात से पता चलती है कि मुगल सम्राट अकबर भी यहां के पान के बहुत शौकिन थे. यहां से रोज आगरा दरबार में पान भेजा जाता था. कहा जाता है कि अकबर ने पान की खेती करने वाले किसानों से मुलाकात भी की थी. जानकारी के मुताबिक पान की खेती सिर्फ तमोली जाति के लोग ही करते आ रहे हैं. और आज भी कर रहे हैं.

पान की खेती करने वाले किसान पलायन को मजबूर, सरकार से मदद की आस

किसानों ने बताया कि पान का पौधा मार्च महीने में रोपा जाता है. अक्टूबर, नवंबर तक बेल करीब 7 फीट तक ऊंची हो जाती है. जिसमें करीब 45 पान के पत्ते लगते हैं. पान की खेती के लिए दूध, दही, बेसन और पानी से खाद तैयार किया जाता है. जिससे पान स्वादिष्ट होता है. किसानों ने बताया कि पहली पौध तैयार होने में करीब डेढ़ लाख रुपए की लागत आती है. एक बार तैयार फसल करीब 3 से 4 वर्ष तक चलती है. जिससे हर साल एक से डेढ़ लाख रुपये आमदनी होती है.

किसानों ने अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि बरसात के अभाव के कारण पान की खेती नष्ट हो जाती है. जिससे खेती करना मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे में रोजगार के लिए लोग अन्य जगहों पर पलायन कर रहे हैं. अगर सरकार खेती के लिए ग्रीन हाउस व सब्सिडी उपलब्ध करा दें. तो उनको सहूलियत हो जाएगी. किसानों ने कहा कि आज के दौर में गुटखा-तंबाकू खाने का प्रचलन हो गया है. जबकि पान से कोई बीमारियां भी नहीं होती है.

प्रदेश में कुछ जगहों पर आज भी पान की खेती हो रही है. भरतपुर के उमरेड, बागरैन, खानखेड़ा और करौली जिले के मासलपुर में पान की खेती की जाती है. उमरेड गांव के पान की बिक्री पाकिस्तान, बांग्लादेश सहित अरब देशों में होती है. लेकिन आज पान की खेती में लागत ज्यादा आने और पानी की कमी के कारण किसान रोजगार के लिए गांवों से अन्य जगहों पर पलायन कर रहे हैं.

भरतपुर. जिले के कई गांवों में हजारों सालों से पान की खेती की जा रही है. यहां के पान की ख्याति इस बात से पता चलती है कि मुगल सम्राट अकबर भी यहां के पान के बहुत शौकिन थे. यहां से रोज आगरा दरबार में पान भेजा जाता था. कहा जाता है कि अकबर ने पान की खेती करने वाले किसानों से मुलाकात भी की थी. जानकारी के मुताबिक पान की खेती सिर्फ तमोली जाति के लोग ही करते आ रहे हैं. और आज भी कर रहे हैं.

पान की खेती करने वाले किसान पलायन को मजबूर, सरकार से मदद की आस

किसानों ने बताया कि पान का पौधा मार्च महीने में रोपा जाता है. अक्टूबर, नवंबर तक बेल करीब 7 फीट तक ऊंची हो जाती है. जिसमें करीब 45 पान के पत्ते लगते हैं. पान की खेती के लिए दूध, दही, बेसन और पानी से खाद तैयार किया जाता है. जिससे पान स्वादिष्ट होता है. किसानों ने बताया कि पहली पौध तैयार होने में करीब डेढ़ लाख रुपए की लागत आती है. एक बार तैयार फसल करीब 3 से 4 वर्ष तक चलती है. जिससे हर साल एक से डेढ़ लाख रुपये आमदनी होती है.

किसानों ने अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि बरसात के अभाव के कारण पान की खेती नष्ट हो जाती है. जिससे खेती करना मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे में रोजगार के लिए लोग अन्य जगहों पर पलायन कर रहे हैं. अगर सरकार खेती के लिए ग्रीन हाउस व सब्सिडी उपलब्ध करा दें. तो उनको सहूलियत हो जाएगी. किसानों ने कहा कि आज के दौर में गुटखा-तंबाकू खाने का प्रचलन हो गया है. जबकि पान से कोई बीमारियां भी नहीं होती है.

प्रदेश में कुछ जगहों पर आज भी पान की खेती हो रही है. भरतपुर के उमरेड, बागरैन, खानखेड़ा और करौली जिले के मासलपुर में पान की खेती की जाती है. उमरेड गांव के पान की बिक्री पाकिस्तान, बांग्लादेश सहित अरब देशों में होती है. लेकिन आज पान की खेती में लागत ज्यादा आने और पानी की कमी के कारण किसान रोजगार के लिए गांवों से अन्य जगहों पर पलायन कर रहे हैं.

Intro:हैडलाइन--भरतपुर का वह गाव जहा पैदा होने वाले पान को मुगल सम्राट अकबर खाते थे आज किसान सरकार की उपेक्षा का शिकार

भरतपुर-- राजस्थान के भरतपुर में हजारों वर्षों से पैदा किए जा रहे पान की खेती की ख्याति इतनी थी कि जिसे मुगल सम्राट अकबर खाने का शौकीन था और यहां से पान सम्राट अकबर के लिए आगरा दरबार में रोजाना जाता था साथ ही यहां के पान की ख्याति व स्वादिष्ट के चलते स्वयं अकबर भी यहां गांव में आए थे उन्होंने उस पान की खेती को देखा था जिसे वह रोजाना बड़े ही चाव के साथ खाते थे ।
कहा जाता है कि अकबर यहां आकर पान की खेती करने वाले किसानों से मिले थे और उनको पान की ऐसी ही खेती करने के लिए उत्साहित किया था ।
दरअसल राजस्थान में कुछ ही जगहों पर पान की खेती की जाती थी जो आज भी हो रही है । भरतपुर के गांव उमरेड,बागरैं,खानखेड़ा व करौली जिले में मासलपुर में पान की खेती की जाती है । भरतपुर का उमरेड एक ऐसा गांव है जो बेहद स्वादिष्ट पान के लिए जाना जाता है और हमेशा की तरह आज भी यहां का पान इतना प्रसिद्ध है जो पाकिस्तान बांग्लादेश सहित अरब देशों मे इसकी बिक्री होती है ।
जानकारी के मुताबिक पान की खेती सिर्फ तमोली जाति के लोग ही करते आ रहे हैं और आज भी कर रहे हैं लेकिन आज पान की खेती में लागत ज्यादा आने व बरसात और पानी की कमी के कारण पान पैदा करने वाले लोगों का गांव से पलायन हो रहा है क्योंकि पान की खेती पानी के अभाव में काफी महंगी पड़ती है इसलिए रोजगार के लिए इस जाति के लोग अन्य जगहों पर रोजगार के लिए पलायन कर रहे हैं ।
पान की खेती करने वाले किसानों ने बताया कि पान की पौध को मार्च महीने में रोपा जाता है जो अक्टूबर,नवंबर तक चलती है इस दौरान पान की पौध की बेल करीब 7 फीट तक ऊंची हो जाती है जिसमें करीब 45 पान के पत्ते लगते हैं पान की खेती के लिए पहले पौध लगाई जाती है फिर पौध के पास बांस के डंडे लगा दिए जाते हैं और फिर ऊपर लकड़ी की छत तैयार की जाती है जिससे ज्यादा धूप ज्यादा बरसात और ओलों से पान की पौध का बचाव किया जा सके और पानी देने के लिए किसान को मिट्टी के मटके में पानी भरकर अपने कंधे पर रखकर इस तरीके से पानी डालते हैं जिससे पान की पौध को नुकसान नहीं हो ।
पान की खेती तैयार करने के लिए उसमें खाद का उपयोग किया जाना जरूरी होता है और इसको दूध दही बेसन पानी से तैयार किया जाता है जिससे यह स्वादिष्ट बनता है और पौध में वृद्धि होती है ।
यह पान देसी होता है व इस पान को खाया जाता है तो मुंह में चवाते समय यह घुल जाता है । किसानों के मुताबिक एक बार तैयार की गई पान की फसल करीब 3 से 4 वर्ष तक चलती है और उसके बाद फिर से नहीं पहुंच तैयार की जाती है । पौध को तैयार करने के लिए कोई भी बीज नहीं होता है बल्कि पत्ते की डंठल से ही नई पौध तैयार हो जाती है । पहली पौध को तैयार करने में करीब डेढ़ लाख रुपए की लागत आती है जिससे करीब 3 से 4 वर्ष तक खेती किसान को हर वर्ष एक से डेढ़ लाख रुपये किसान को आमदनी देती है ।
यहां पैदा होने वाला पान दिल्ली आगरा मेरठ अलीगढ़ मुंबई सहारनपुर जाता है और वहां से पाकिस्तान बांग्लादेश सहित अनेकों अरब देशों में जाता है क्योंकि कहा जाता है कि यहां पैदा होने वाले देसी पान की मांग सभी जगह ज्यादा है ।
एक पान का पत्ता 45 पैसे का बेचा जाता है इस हिसाब से प्रति 100 पान के पत्तों की कीमत 45 से ₹50 तक किसानों को मिल जाती है । पान की खेती तैयार करने में किसानों के परिवार की महिला बच्चे भी अपनी पूरी भागीदारी निभाते हैं ।
किसानों ने अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि बरसात के अभाव के कारण खेती नष्ट हो जाती है । किसानों के लिए सरकार की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं है जिससे की खेती करना मुश्किल होता जा रहा है । इस गांव में तमोली जाति के लोग रहते थे जो पान की खेती करते है यहां से तमोली जाति के लोगों का पलायन होना शुरू हो गया है ।
किसानों ने कहा कि खेती के लिए यदि सरकार ग्रीन हाउस व सब्सिडी उपलब्ध करा दें तो उनको काफी सहूलियत हो जाएगी साथ ही उनके पान की खेती का फसल बीमा भी नहीं किया जाता है इसलिए आपदा के चलते यदि पान की खेती नष्ट होती है तो किसानों को कोई राहत सरकार की तरफ से मुहैया नहीं कराई जाती है ।
किसानों ने कहा कि हमारे गांव में पैदा किए जाने वाला पान की इतनी प्रसिद्धि थी कि सम्राट अकबर सिर्फ यही के पान खाते थे इसलिए अकबर ने यहां आकर किसानों को प्रेरित कर पान की खेती करने का हौसला बढ़ाया था लेकिन आज सरकार द्वारा इन किसानों को कोई राहत या सुविधा नहीं दी जा रही है जिससे पान की खेती करने वाले किसानों का पलायन हो रहा है ।
किसानों ने कहा कि आज के दौर में गुटखा तंबाकू ज्यादा खाने का प्रचलन हो गया है इसलिए लोगों को पान खाने पसन्द नही आ रहे हैं जबकि किसी जमाने में सिर्फ पान का ही उपयोग किया जाता था जो हृदय रोग मधुमेह उच्च रक्तचाप सहित अनेकों बीमारियों को ठीक करता था ...
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