भरतपुर. जिले के पहरसर गांव का पाकिस्तान से खास रिश्ता है. इस गांव में एक ऐसी हवेली है जिसे देखकर आज भी गांव के लोगों को पाकिस्तान के पूर्व शासक भुट्टो परिवार के पुरखों की याद आती है. पाकिस्तान की राजनीति और सरकार में प्रमुख भूमिका निभाने वाले भुट्टो परिवार के पुरखे कभी इसी गांव में रहा करते थे. वक्त की मार से भारत और पाकिस्तान बंटवारे जरूर हो गए, लेकिन अपनी पुरखों की जमीन छोड़कर पाकिस्तान को अपनी रिहाइश बनाने वाले भुट्टो परिवार की दरियादिली के किस्से आज भी पहरसर गांव के हर लोगों की जुबान पर है.
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हालांकि भारत और पाकिस्तान के बीच हमेशा तनाव रहा है, लेकिन पाकिस्तान की सियासत में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले भुट्टो परिवार का संबंध राजस्थान के भरतपुर से रहा है. पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रही बेनजीर भुट्टो व प्रधानमंत्री रहे उनके पिता जुल्फिकार अली भुट्टो और उनके पूर्वज भरतपुर जिले के पहरसर गांव के निवासी थे.
बता दें कि1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद भुट्टो परिवार पहरसर गांव से पाकिस्तान चले गए और वहां जुल्फिकार अली भुट्टो ने 1967 में पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की स्थापना की. पार्टी की स्थापना के कुछ वर्ष बाद पार्टी सत्ता में आई और जुल्फिकार अली भुट्टो प्रधानमंत्री बने. बाद में उनकी पुत्री बेनजीर भुट्टो भी पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनी.
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बेनजीर भुट्टो के पूर्वजों की हवेली भरतपुर जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर आगरा-जयपुर नेशनल हाईवे-21 से सटे हुए पहरसर गांव में स्थित है. भुट्टो परिवार भारत-पाकिस्तान के बंटवारे से पहले यहां रहते थे और आज भी उनकी हवेली वहीं मौजूद है. उनकी हवेली में अभी तक कुछ भी बदलाव नहीं किया गया है. हालांकि बंटवारे के बाद यह हवेली सरकार ने भरतपुर के अंतिम महाराजा सवाई बृजेन्द्र सिंह को सौंप दी थी, बाद में महाराजा ने इस हवेली को एक निजी कंपनी को बेच दिया.
बता दें कि आज वह निजी कंपनी भुट्टो परिवार की इस हवेली को हेरिटेज होटल में रूप में संचालित कर रही है, जहां देश-विदेशों से आने वाले पर्यटक इस हवेली को देखते हैं और यहां रुकते हैं. पहरसर गांव के बिल्कुल बीच में स्थित इस हवेली में जाने के लिए गांव से होकर गुजरना पड़ता है. आज भी इस गांव में करीब 90 वर्ष की उम्र के बुजूर्ग लोग जीवित हैं, जिन्होंने बताया कि पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रही बेनजीर भुट्टो के पूर्वज यहां रहते थे लेकिन बंटवारे के बाद वे पाकिस्तान चले गए.
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बुजूर्ग ग्रामीणों ने बताया कि भुट्टो परिवार काफी मिलनसार थे, जो गांव वालों के साथ प्रेम से रहते थे और गांव वालों के साथ हर कार्यक्रम में सरीक होते थे . ग्रामीणों का कहना है कि बेनजीर भुट्टो के पिता, दादा और नाना को उन्होंने देखा है, लेकिन बेनजीर भुट्टो की उनको याद नहीं है. बता दें कि पहरसर गांव छोटा होने के बाद भी भुट्टो परिवार की इस हवेली के कारण काफी विख्यात है, वहीं गांव इतिहास की काफी याद को संजोए हुए है.
गांव में एक मजार भी है स्थित
पहरसर गांव में हवेली से कुछ ही दूरी पर एक मजार भी स्थित है, जो करीब 142 वर्ष पुरानी बताई जा रही है. जानकारी के अनुसार गांव में भुट्टो परिवार ने हवेली का निर्माण 1840 में कराया था. इस हवेली ने ब्रिटिश हुकूमत भी देखी तो बंटवारे को भी देखा लेकिन इस हवेली की सुंदरता और बनावट बेहद सुंदर और मजबूत है.