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20 साल कारगिल: पति वीरेंद्र सिंह की अर्थी को कंधा देने के लिए श्मशान पहुंच गई थी पत्नी

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Published : Jul 23, 2019, 8:09 PM IST

कारगिल युद्ध में भरतपुर के रहने वाले वीरेंद्र सिंह जब शहीद हुए उस वक्त उनके दो छोटे बच्चे थे. पति के शहादत होने की खबर सुन सिहर उठी थी गायत्री देवी. देश के खातिर अपनी जान गवाने वाले शूरवीर की अर्थी को खुद कंधा देने पहुंच गई थी श्मशान.

20 साल कारगिल: पति वीरेंद्र सिंह की अर्थी को कंधा देने के लिए श्मशान पहुंच गई थी गायत्री देवी

भरतपुर. 1999 में कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीरेंद्र सिंह अपने पीछे पत्नी गायत्री देवी और डेढ़ वर्षीय पुत्री ज्योति और 3 वर्षीय पुत्र चंद्रभान को छोड़ गए थे, जहां पत्नी गायत्री देवी ने अपने शहीद पति वीरेंद्र सिंह के शव की अर्थी को कंधा देते हुए शमशान तक पहुंची थी. उस वक्त यह चर्चा का विषय बन गया था क्योंकि तब ऐसा कम ही देखने को मिलता था. कारगिल वॉर को अब 20 वर्ष पूरे हो चुके हैं और शहीद वीरेंद्र सिंह के छोटे बच्चे अब बड़े हो चुके हैं जो देश के लिए शहादत पर अपने पिता पर गर्व करते हैं. हालांकि एक पिता की कमी उनको जरूर खलती होगी लेकिन परिवार के सदस्यों ने पिता की कमी पर मरहम लगाते रहे.

राजस्थान के भरतपुर में अजान गांव के निवासी वीरेंद्र सिंह 11 राज राइफल यूनिट में भर्ती थे जो पाकिस्तान के साथ हुए कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे. उस समय उनके दो बच्चे थे जो उस समय अपने पिता की शहादत से भी बेखबर थे लेकिन पति के शहीद होने के बाद बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी उनकी पत्नी गायत्री देवी पर आ गई. शहीद वीरेंद्र के पुत्र चंद्रभान अब बड़े हो चुका है जो बीएससी पूरी करके सिविल सर्विस एग्जाम की तैयारी कर रहे है. चंद्रभान प्रशासनिक अधिकारी बनना चाहता है हालांकि उसने आर्मी में जाने का सपना भी देखा था लेकिन वह सपना सिविल सर्विसेज का बन गया.

20 साल कारगिल: पति वीरेंद्र सिंह की अर्थी को कंधा देने के लिए श्मशान पहुंच गई थी गायत्री देवी

आज भले ही 20 वर्ष गुजर चुके हैं और बच्चे बड़े हो चुके हो लेकिन फिर भी दोनों बच्चों की आंखों में पिता की याद और उसकी कमी जरूर खलती हुई देखी जा सकती है. दोनों बच्चों ने बताया कि जब उनके पिता शहीद हुए थे तब बेहद छोटे थे तब उनको कुछ नहीं पता था लेकिन जैसे-जैसे बड़े होते गए तो पिता की शहादत के बारे में पता चलने लगा और पिता की याद भी आने लगी लेकिन आज उनको अपने पिता पर काफी गर्व होता है. शहीद वीरेंद्र सिंह की पुत्री ज्योति भी बीएससी पास कर चुकी हैं और एमएससी में दाखिला ले लिया है जो अध्यापक बनना चाहती है.

शहीद वीरेंद्र सिंह का परिवार संयुक्त रूप से गांव में रहता है साथ ही शहीद कोटे में मिले पेट्रोल पंप से उनके लिए जीवन यापन होता है और बच्चों की पढ़ाई भी हो रही है लेकिन परिजनों के मुताबिक राजस्थान सरकार ने लिखित रूप में उनको आश्वासन दिया था कि शहीद का बेटा बड़ा होने पर उसको सरकारी नौकरी दे दी जाएगी लेकिन जब शहीद का बच्चा बड़ा होकर नौकरी लेना चाहता है तो उसे नौकरी देने के लिए सहमत नहीं है. आस-पास के लोग वीरेंद्र सिंह के बारे बताते नहीं थकते. इस वीर सबूत को देश हमेशा सलाम करता रहेगा.

भरतपुर. 1999 में कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीरेंद्र सिंह अपने पीछे पत्नी गायत्री देवी और डेढ़ वर्षीय पुत्री ज्योति और 3 वर्षीय पुत्र चंद्रभान को छोड़ गए थे, जहां पत्नी गायत्री देवी ने अपने शहीद पति वीरेंद्र सिंह के शव की अर्थी को कंधा देते हुए शमशान तक पहुंची थी. उस वक्त यह चर्चा का विषय बन गया था क्योंकि तब ऐसा कम ही देखने को मिलता था. कारगिल वॉर को अब 20 वर्ष पूरे हो चुके हैं और शहीद वीरेंद्र सिंह के छोटे बच्चे अब बड़े हो चुके हैं जो देश के लिए शहादत पर अपने पिता पर गर्व करते हैं. हालांकि एक पिता की कमी उनको जरूर खलती होगी लेकिन परिवार के सदस्यों ने पिता की कमी पर मरहम लगाते रहे.

राजस्थान के भरतपुर में अजान गांव के निवासी वीरेंद्र सिंह 11 राज राइफल यूनिट में भर्ती थे जो पाकिस्तान के साथ हुए कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे. उस समय उनके दो बच्चे थे जो उस समय अपने पिता की शहादत से भी बेखबर थे लेकिन पति के शहीद होने के बाद बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी उनकी पत्नी गायत्री देवी पर आ गई. शहीद वीरेंद्र के पुत्र चंद्रभान अब बड़े हो चुका है जो बीएससी पूरी करके सिविल सर्विस एग्जाम की तैयारी कर रहे है. चंद्रभान प्रशासनिक अधिकारी बनना चाहता है हालांकि उसने आर्मी में जाने का सपना भी देखा था लेकिन वह सपना सिविल सर्विसेज का बन गया.

20 साल कारगिल: पति वीरेंद्र सिंह की अर्थी को कंधा देने के लिए श्मशान पहुंच गई थी गायत्री देवी

आज भले ही 20 वर्ष गुजर चुके हैं और बच्चे बड़े हो चुके हो लेकिन फिर भी दोनों बच्चों की आंखों में पिता की याद और उसकी कमी जरूर खलती हुई देखी जा सकती है. दोनों बच्चों ने बताया कि जब उनके पिता शहीद हुए थे तब बेहद छोटे थे तब उनको कुछ नहीं पता था लेकिन जैसे-जैसे बड़े होते गए तो पिता की शहादत के बारे में पता चलने लगा और पिता की याद भी आने लगी लेकिन आज उनको अपने पिता पर काफी गर्व होता है. शहीद वीरेंद्र सिंह की पुत्री ज्योति भी बीएससी पास कर चुकी हैं और एमएससी में दाखिला ले लिया है जो अध्यापक बनना चाहती है.

शहीद वीरेंद्र सिंह का परिवार संयुक्त रूप से गांव में रहता है साथ ही शहीद कोटे में मिले पेट्रोल पंप से उनके लिए जीवन यापन होता है और बच्चों की पढ़ाई भी हो रही है लेकिन परिजनों के मुताबिक राजस्थान सरकार ने लिखित रूप में उनको आश्वासन दिया था कि शहीद का बेटा बड़ा होने पर उसको सरकारी नौकरी दे दी जाएगी लेकिन जब शहीद का बच्चा बड़ा होकर नौकरी लेना चाहता है तो उसे नौकरी देने के लिए सहमत नहीं है. आस-पास के लोग वीरेंद्र सिंह के बारे बताते नहीं थकते. इस वीर सबूत को देश हमेशा सलाम करता रहेगा.

Intro:हैडलाइन--- कारगिल शहीद के शव को उसकी पत्नी कंधा देते हुए पहुंची थी श्मशान

स्लग--- कारगिल युद्ध में भरतपुर का वीरेंद्र सिंह हुआ था शहीद, उस समय दो छोटे बच्चे अब हो चुके हैं बड़े, पत्नी ने उस समय अपने शहीद पति की अर्थी को दिया था कंधा

भरतपुर–- 1999 में कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीरेंद्र सिंह अपने पीछे पत्नी गायत्री देवी व डेढ़ वर्षीय पुत्री ज्योति और 3 वर्षीय पुत्र चंद्रभान को छोड़ गए थे जहां पत्नी गायत्री देवी ने अपने शहीद पति वीरेंद्र सिंह के शव की अर्थी को कंधा देते हुए शमशान तक पहुंची थी जो उस समय काफी चर्चा का विषय रहा था । आज कारगिल वॉर को 20 वर्ष पूरे हो चुके हैं और शहीद वीरेंद्र सिंह के छोटे बच्चे अब बड़े हो चुके हैं जो देश के लिए शहादत पर अपने पिता पर गर्व करते हैं हालांकि एक पिता की कमी उनको जरूर करती है लेकिन परिवार के सदस्यों ने इतना साथ दिया की उनको अपने पिता की ज्यादा कमी का एहसास नहीं हो पाया । राजस्थान के भरतपुर में अजान गाव के निवासी वीरेंद्र सिंह 11 राज राइफल यूनिट में भर्ती थे जो पाकिस्तान के साथ हुए कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे उस समय उनके दो बच्चे थे जो उस समय अपने पिता की शहादत से भी बेखबर थे लेकिन पति के शहीद होने के बाद बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी उनकी पत्नी गायत्री देवी पर आ गई ।
शहीद वीरेंद्र का पुत्र चंद्रभान अब बड़ा हो चुका है जो बीएससी पूरी करके सिविल सर्विस एग्जाम की तैयारी कर रहा है जो प्रशासनिक अधिकारी बनना चाहता है हालांकि उसने आर्मी में जाने का सपना भी देखा था लेकिन वह सपना सिविल सर्विसेज का बन गया तो वही शहीद की पुत्री ज्योति भी बीएससी पास कर चुकी है और एमएससी में दाखिला ले लिया है जो अध्यापक बनना चाहती है ।
आज भले ही 20 वर्ष गुजर चुके हैं और बच्चे बड़े हो चुके हो लेकिन फिर भी दोनों बच्चों की आंखों में पिता की याद और उसकी कमी जरूर खलती हुई देखी जा सकती है ।
दोनों बच्चों ने बताया कि जब उनके पिता शहीद हुए थे तब बेहद छोटे थे तब उनको कुछ नहीं पता था लेकिन जैसे-जैसे बड़े होते गए तो पिता की शहादत के बारे में पता चलने लगा और पिता की याद भी आने लगी लेकिन आज उनको अपने पिता पर काफी गर्व होता है ।
शहीद वीरेंद्र सिंह का परिवार संयुक्त रूप से गांव में रहता है साथ ही शहीद कोटे में मिले पेट्रोल पंप से उनके लिए जीवन यापन होता है और बच्चों की पढ़ाई भी हो रही है लेकिन परिजनों के मुताबिक राजस्थान सरकार ने लिखित रूप में उनको आश्वासन दिया था कि शहीद का बेटा बड़ा होने पर उसको सरकारी नौकरी दे दी जाएगी लेकिन आज जब शहीद का बच्चा बड़ा होकर नौकरी लेना चाहता है तो उसे नौकरी देने के लिए सहमत नहीं है।

बाइट--चंद्रभान सिंह,शहीद का पुत्र
बाइट--ज्योति,शहीद की पुत्री


Body:कारगिल शहीद के शव को उसकी पत्नी कंधा देते हुए पहुंची थी श्मशान



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