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स्पेशल स्टोरी: दो भाइयों की कहानी जान रो पड़ेंगे आप...जिनके कंधों पर थी परिवार की जिम्मेदारी वही हुए 'बेसहारा'

अलवर के भिवाड़ी क्षेत्र में एक परिवार पर कुदरत का कहर इस कदर टूटा कि परिवार को दो जून की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है. जिन परिवार के मुखिया के भरोसे परिवार के लोग थे. वो खुद दूसरे के भरोसे जीवन जीने को मजबूर हो गया है. परिवार के मुखिया दो भाइयों की बीमारी की वजह से पैर काट दिए गए और आज परिवार के दूसरे सदस्यों पर निर्भर हो गया है.

Two brothers leg chopped, Bhiwadi alwar news
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Published : Oct 15, 2019, 4:57 PM IST

(भिवाड़ी) अलवर. भिवाड़ी के नांगलिया गांव में एक परिवार के दो भाइयों पर प्रकृति का ऐसा कहर टूटा कि दोनों भाई पिछले 8 साल से केवल चारपाई तक सिमट कर रह गए हैं. दरअसल, धर्मपाल और उसके भाई के पैर की नस ब्लॉक होने के कारण डॉक्टरों की राय पर धर्मपाल के दोनों पैर काट दिए गए. जबकि उसके भाई का एक पैर काट दिया गया. उसके बाद से ही दोनों भाइयों का परिवार आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: आयुष्मान भारत योजना परिवार के लिए बनी जीवनदायनी... पीएम मोदी से मिलकर निरंजन ने बताया कैसा रहा मुफ्त इलाज

सिर्फ 15 सौ रुपए पेंशन के भरोसे परिवार
परिवार का खर्च सरकार से 1500 रुपए कि पेंशन और एक भैंस का दूध बेचकर चला रहे हैं. सरकार की दूसरी योजनाओं का लाभ इस परिवार को नहीं मिल पा रहा हैं. इससे उनके बच्चों को पढ़ाई भी मुश्किल से नसीब हो पा रही हैं. घर की महिलाए खुद मेहनत मजदूरी कर बच्चों का पालन पोषण कर रही है.

परिवार पर टूटा कुदरत का कहर...परिवार के मुखिया दो भाइयों की हालत दयनीय

बीमार के चलते गंवाना पड़ा पैर
पीड़ित धर्मपाल ने बताया कि 8-9 साल पहले पैर की नस ब्लॉक होने के कारण डॉक्टरों ने जीवन बचाने के उसके दोनों पैर काट दिए थे और उसके कुछ दिनों बाद उसके भाई का एक पैर भी उस ही बीमारी की वजह से काटना पड़ा है. वार्ड के पार्षद ने अलवर ले जाकर विकलांग पेंशन बंधवा दी थी. उसके भरोसे परिवार का पालन पोषण हो रहा है.

पार्षद की मदद से मिली सरकारी पेंशन
वहीं वार्ड पार्षद दयानंद कहराना ने बताया कि दोनों भाइयों के बच्चे अभी छोटे है और घर में कमाने वाला कोई नहीं है. किसी भी एनजीओ और सरकार से पेंशन के अलावा कोई सहायता नहीं मिली है. सरकार से उम्मीद है कि इस परिवार के लिए कोई सहायता दे तो परिवार का गुजारा हो सकता है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: इरास के ग्रामीणों ने सुना मां का दर्द, बिस्तर पर लेटा है बीमार बेटा, ग्रामीणों ने उसके उपचार के लिए जुटाए 1 लाख 35 हजार रुपए

कौन बनेगा इस बेसहारा परिवार का सहारा
वहीं धर्मपाल ने अपनी व्यथा बताते हुए बताया कि कुछ वर्षों पहले ही कि तो बात है जब उनका परिवार गांव के उन नामचीन परिवारों में जाना जाता था कि जिनका समाज मे अपना अच्छा खासा बोलबाला था. लेकिन वक्त ने ऐसी करवट ली कि सबकुछ बदल कर रख दिया. जिससे कि आज दूसरों के सहारे है और जिम्मेदारों की ओर टकटकी लगाए देख रहे है. लेकिन किसी ने भी आज तक परिवार का हाल तक नहीं जाना.

(भिवाड़ी) अलवर. भिवाड़ी के नांगलिया गांव में एक परिवार के दो भाइयों पर प्रकृति का ऐसा कहर टूटा कि दोनों भाई पिछले 8 साल से केवल चारपाई तक सिमट कर रह गए हैं. दरअसल, धर्मपाल और उसके भाई के पैर की नस ब्लॉक होने के कारण डॉक्टरों की राय पर धर्मपाल के दोनों पैर काट दिए गए. जबकि उसके भाई का एक पैर काट दिया गया. उसके बाद से ही दोनों भाइयों का परिवार आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा है.

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सिर्फ 15 सौ रुपए पेंशन के भरोसे परिवार
परिवार का खर्च सरकार से 1500 रुपए कि पेंशन और एक भैंस का दूध बेचकर चला रहे हैं. सरकार की दूसरी योजनाओं का लाभ इस परिवार को नहीं मिल पा रहा हैं. इससे उनके बच्चों को पढ़ाई भी मुश्किल से नसीब हो पा रही हैं. घर की महिलाए खुद मेहनत मजदूरी कर बच्चों का पालन पोषण कर रही है.

परिवार पर टूटा कुदरत का कहर...परिवार के मुखिया दो भाइयों की हालत दयनीय

बीमार के चलते गंवाना पड़ा पैर
पीड़ित धर्मपाल ने बताया कि 8-9 साल पहले पैर की नस ब्लॉक होने के कारण डॉक्टरों ने जीवन बचाने के उसके दोनों पैर काट दिए थे और उसके कुछ दिनों बाद उसके भाई का एक पैर भी उस ही बीमारी की वजह से काटना पड़ा है. वार्ड के पार्षद ने अलवर ले जाकर विकलांग पेंशन बंधवा दी थी. उसके भरोसे परिवार का पालन पोषण हो रहा है.

पार्षद की मदद से मिली सरकारी पेंशन
वहीं वार्ड पार्षद दयानंद कहराना ने बताया कि दोनों भाइयों के बच्चे अभी छोटे है और घर में कमाने वाला कोई नहीं है. किसी भी एनजीओ और सरकार से पेंशन के अलावा कोई सहायता नहीं मिली है. सरकार से उम्मीद है कि इस परिवार के लिए कोई सहायता दे तो परिवार का गुजारा हो सकता है.

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कौन बनेगा इस बेसहारा परिवार का सहारा
वहीं धर्मपाल ने अपनी व्यथा बताते हुए बताया कि कुछ वर्षों पहले ही कि तो बात है जब उनका परिवार गांव के उन नामचीन परिवारों में जाना जाता था कि जिनका समाज मे अपना अच्छा खासा बोलबाला था. लेकिन वक्त ने ऐसी करवट ली कि सबकुछ बदल कर रख दिया. जिससे कि आज दूसरों के सहारे है और जिम्मेदारों की ओर टकटकी लगाए देख रहे है. लेकिन किसी ने भी आज तक परिवार का हाल तक नहीं जाना.

Intro:एंकर - भिवाडी क्षेत्र में एक परिवार पर कुदरत का कहर इस कदर टूटा है कि परिवार जिनके भरोशे था वे खुद दूसरे के भरोशे जीवन जीने को मजबूर हो गए है। बिना किसी की मदद से घर मे कमाने वाले दोनों भाइयों की बीमारी की वजह से पैर काट दिए गए है और आज परिवार के दूसरे सदस्यों के भरोशे हो गए है।
Body:भिवाडी के नांगलिया गांव में एक परिवार के दो भाइयों पर प्रकृति का ऐसा कहर टूटा है कि दोनों भाई पिछले 8 साल से केवल चारपाई पर बैठे रहने के लायक रह गए हैं । दरअसल धर्मपाल ओर उंसके भाई के पैर की नस ब्लॉक होने के कारण डॉक्टरों की राय पर धर्मपाल के दोनों पैर काट दिए थे जबकि उसके भाई का एक पैर काट दिया था। उंसके बाद से दोनों भाइयों का परिवार आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा है। परिवार का खर्च सरकार से 1500 रुपये कि पेंसन ओर एक भैंस का दूध बेचकर चला रहे हैं। सरकार की दुसरी योजनाओं का लाभ इस परिवार को नही मिल पा रहा हैं इससे उनके बच्चों को पढ़ाई भी मुश्किल से नसीब हो पा रही हैं घर की महिलाये खुद मेहनत मजदूरी कर बच्चो का पालन पोषण कर रही है।
पीडीत धर्मपाल ने बताया कि 8-9 साल पहले पैर की नस ब्लॉक होने के कारण डॉक्टरो ने जीवन बचाने के उसके दोनों पैर काट दिए थे ओर उंसके कुछ दिनों बाद उसके भाई का एक पैर भी उस ही बीमारी की वजह से काटना पड़ा है।
वार्ड के पार्षद ने अलवर ले जाकर विकलांग पेंसन बंधवा दी थी उंसके भरोशे परिवार का पालन पोषण हो रहा है।
वार्ड पार्षद दयानंद कहराना ने बताया कि दोनों भाइयों के बच्चे अभी छोटे है और घर मे कमाने वाला कोई नही है। किसी भी एनजीओ ओर सरकार से पेंसन के अलावा कोई सहायता नही मिली है। सरकार से उम्मीद है कि इस परिवार के लिए कोई सहायता दे तो परिवार का गुजारा हो सकता है। Conclusion:धर्मपाल ने अपनी व्यथा बताते हुए बताया कि कुछ वर्षों पहले ही कि तो बात है जब उनका परिवार गांव के उन नामचीन परिवारों में जाना जाता था कि जिनका समाज मे अपना अच्छा खासा बोलबाला था लेकिन वक़्त ने ऐसी करवट ली कि सबकुछ बदल कर रख दिया जिससे कि आज दुसरो के सहारे है और जिम्मेदारों की ओर टकटकी लगाए देख रहे है लेकिन किसी ने भी आज तक परिवार का हाल तक नही जाना है।

बाईट - धर्मपाल पीडीत
बाईट - दयानंद कहराना पार्षद
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