ETV Bharat / city

SPECIAL: अलवर का एक गांव है ऐसा जहां 8 महीने घरों में लटकते हैं ताले, घर की सुरक्षा भगवान भरोसे - अलवर के नट समाज के लोग

अलवर जिला मुख्यालय से करीब 17 किलोमीटर दूर बसे पैंतपुर, पीपल गढ़ और सूकल गांव में नट जाति के लोग रहते हैं. यह ऐसे गांव हैं जहां 8 महीने घरों में ताला लटकता है. लोग जीवन यापन के लिए देश के विभिन्न राज्यों के शहरों में रहते हैं. गांव में अगर कोई घटना होती है. तो उसके लिए पुलिस की जगह देवताओं को याद किया जाता है. पढ़ें पूरी खबर...

अलवर के गांव का इतिहास, history of alwar village
नट समाज के लोगों की आस्था
author img

By

Published : Feb 10, 2021, 7:54 PM IST

अलवर. वैसे तो ज्यादातर गांव एक जैसे होते हैं, अपनी संस्कृति के अनुसार गांव में रहन-सहन होता है. लेकिन अलवर के कुछ गांव ऐसे हैं. जहां साल में 8 महीने घरों में ताला लटकता है. उमरैण पंचायत समिति के पैतपुर, पीपलगढ़ और सूकल ऐसे गांव हैं जहां रहने वाले लोग जीवन यापन के लिए देश के विभिन्न राज्यों के शहरों में रहते हैं. गांव में अगर कोई घटना होती है. तो उसके लिए पुलिस की जगह देवताओं को याद किया जाता है.

अलवर का एक गांव है ऐसा जहां 8 महीने घरों में लटकते हैं ताले

इन गांव में घरों की सुरक्षा देवताओं के भरोसे हैं. इतना ही नहीं देवताओं को शराब की धार चढ़ाने की भी परंपरा है. 100 साल से इस गांव में इन परंपराओं का पालन होता है और लोग इन्हीं परंपराओं को मानते हैं. इन गांव का रहन सहन, यहां की परंपरा, शादी के तरीके अलग-अलग हैं.

पढ़ेंः SPECIAL : दुनियाभर में महकता है मरूभूमि की कला का चंदन...चूरू की काष्ठकला देखकर हैरान रह जाएंगे आप

अलवर जिला मुख्यालय से करीब 17 किलोमीटर दूर बसे पैंतपुर, पीपल गढ़ और सूकल गांव में नट जाति के लोग रहते हैं. यह लोग राजा महाराजा के समय से नाच गाकर लोगों का मनोरंजन करते हैं और उससे अपना पेट भरते हैं. हालांकि समय के साथ अब बदलाव होने लगा है. यह लोग अब मजदूरी भी करने लगे हैं.

अलवर के गांव का इतिहास, history of alwar village
केवल 4 महिने के लिए ही गांव वाले आते हैं गाव

आजीविका के लिए इन गांव के लोग साल में 8 माह पंजा, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात सहित देश के विभिन्न राज्यों में जाते हैं और काम काज करते हैं. इस दौरान घर पर ताला लगा कर उस पर कपड़ा लपेटा जाता है और कपड़े पर शराब की धार चढ़ाई जाती है. इतना ही नहीं शराब भी खुद की तैयार हुई होती है.

नट जाति के लोगों का मानना है कि शराब की धार चढ़ाने से चोरी की आशंका नहीं रहती है. अनिष्ट होने के डर से कोई ग्रामीण ना तो ताले को हाथ लगाता है और ना ही घर में प्रवेश करता है. क्योंकि शराब की धार ताले से पहले देवता के स्थान पर चढ़ाई जाती है.

अलवर के गांव का इतिहास, history of alwar village
घर की सुरक्षा भगवान के भरोसे है

पढ़ेंः Special: लॉकडाउन के दौरान खिलाड़ियों ने घर और खेत को बनाया मैदान, बरकरार रखी अपनी फिटनेस

8 महीने बाद लौटने पर यह लोग शराब की धार फिर चढ़ा कर ही ताला खोलते हैं.गांव के लोग बताते हैं कि खाली घरों में प्रेत आत्मा का वास हो जाता है. उसकी मुक्ति के लिए फिर से शराब की धार चढ़ाई जाती है. शराब चढ़ाने का अधिकार महिलाओं को नहीं है. इन गांव में ज्यादातर पुरुष और महिलाएं दारु का सेवन करती हैं.

इस प्राचीन परंपरा से बिना चौकीदारों और पुलिस के घरों की सुरक्षा हो रही है. इसके अलावा नए काम की शुरुआत में भी देवताओं के स्थान पर शराब की धार चढ़ाई जाती है. घर में अगर चोरी हो जाए तो चोर को पकड़ने या अपना कोई काम सिद्ध कराने के लिए भी शराब की धार चढ़ाई जाती है. गांव के लोगों का कहना है कि इससे उनके देवता खुश रहते हैं और उनको सभी चीजों की जानकारी देते हैं.

अलवर के गांव का इतिहास, history of alwar village
महिनों तक लटके रहते हैं ताले

पंचायत में होता है फैसलाः

इन गांव में अगर झगड़ा होता है या शादी टूटने का मामला होता है तो यह लोग न्यायालय और पुलिस के पास नहीं जाते हैं. इनका फैसला पंच पटेलों की पंचायत में होता है. ग्रामीण बताते हैं कि पहले यह देखा जाता था कि शादी तोड़ने की पहल वर या वधू में से कौन सा पक्ष कर रहा है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्टः सरकारी दफ्तरों पर मेहरबान जलदाय विभाग, लाखों बकाए के बाद भी वसूली में खानापूर्ती!

पंचायत में चर्चा करने के बाद दहेज की राशि और जुर्माने का फैसला होता है. जो 20 हजार से दो लाख रुपए तक हो सकता है. फैसला हर ग्रामीण को मानने होता है. कोई उसकी अवमानना नहीं कर सकता है. जुर्माने की आधी राशि पीड़ित पक्ष को दी जाती है और आधी राशि पंच पटेल बांट लेते हैं.

गांव में रहते हैं लोगः

नाटो के पैतपुर गांव में 400, सूकल में 380, चिकलवास में 400 और पीपल गढ़ में 100 घरों की बस्ती है. इन गांव में रक्षाबंधन के बाद ही लोगों का उत्तर प्रदेश हरियाणा पंजाब सहित देश के विभिन्न राज्यों के शहरों में पलायन शुरू होता है. उसके बाद घरों पर ताले लटकते हैं और गांव वीरान हो जाता है. इन गांव के लोग शादी समारोह उत्सव में भजन में नाचना कर अपना जीवन यापन करते हैं.

गंगाजल के लेते हैं फेरेः

लोग शादी में फेरे तो सात लेते हैं लेकिन वो अग्नि के नहीं होते हैं. यह लोग जमीन में बांस गाढ़ कर उस पर एक छोटा घड़ा पानी का रखते हैं और फिर वर वधु उसके फेरे लेते हैं. इस घड़े में भरे पानी को गंगाजल मानकर फेरे लेते हैं. मतलब गंगा जी के सात फेरे हो गए. शादी में पंडित नहीं बुलाते हैं और ना ही मंत्रोच्चार और हवन होता है.

अलवर के गांव का इतिहास, history of alwar village
नट समाज के लोगों की आस्था

पढ़ेंः SPECIAL : कभी रोटी के लिए फैलाने पड़े थे हाथ...अब ये भिखारी नहीं, स्टूडेंट हैं, ट्रेनिंग के बाद मिलेगी नौकरी

नट जाति के गांव में ज्यादातर रिश्ते गांव में ही होते हैं. रिश्ते के दौरान अगर किसी ने छींक दिया तो यह तुरंत टूट जाता है. शादी की तिथि तय करने के दौरान छींकने पर उसे स्थगित कर दिया जाता है. फिर बाद में तिथि तय की जाती है. पंजाब-हरियाणा रवाना होने के दौरान भी अगर किसी ने छींक दिया तो जाना 8 से 10 दिन के लिए कैंसिल हो जाता है. इस गांव के वधू पक्ष के लोग दहेज नहीं देते वर पक्ष ही दहेज देता है व शादी का खर्चा भी करता है. वर्तमान में दहेज में दो से तीन लाख का सामान देते हैं.

भगवान को मानते हैं

लोगों ने बताया कि यह लोग भगवान पर देवताओं को खासा मानते हैं. गांव में एक व दो लोग पढ़े लिखे हैं. इसके अलावा ज्यादातर सभी लोग अनपढ़ हैं. गांव में बड़े-बड़े कोठी व मकान बने हुए हैं. लेकिन सभी पर ताले लटके हुए. अपने गुरु पर देवताओं की पूजा के लिए गांव के लोग अपना नंबर लगाते हैं मैं उसी साहब से मंदिर प्रतियोगिताओं की पूजा करते हैं.

अलवर. वैसे तो ज्यादातर गांव एक जैसे होते हैं, अपनी संस्कृति के अनुसार गांव में रहन-सहन होता है. लेकिन अलवर के कुछ गांव ऐसे हैं. जहां साल में 8 महीने घरों में ताला लटकता है. उमरैण पंचायत समिति के पैतपुर, पीपलगढ़ और सूकल ऐसे गांव हैं जहां रहने वाले लोग जीवन यापन के लिए देश के विभिन्न राज्यों के शहरों में रहते हैं. गांव में अगर कोई घटना होती है. तो उसके लिए पुलिस की जगह देवताओं को याद किया जाता है.

अलवर का एक गांव है ऐसा जहां 8 महीने घरों में लटकते हैं ताले

इन गांव में घरों की सुरक्षा देवताओं के भरोसे हैं. इतना ही नहीं देवताओं को शराब की धार चढ़ाने की भी परंपरा है. 100 साल से इस गांव में इन परंपराओं का पालन होता है और लोग इन्हीं परंपराओं को मानते हैं. इन गांव का रहन सहन, यहां की परंपरा, शादी के तरीके अलग-अलग हैं.

पढ़ेंः SPECIAL : दुनियाभर में महकता है मरूभूमि की कला का चंदन...चूरू की काष्ठकला देखकर हैरान रह जाएंगे आप

अलवर जिला मुख्यालय से करीब 17 किलोमीटर दूर बसे पैंतपुर, पीपल गढ़ और सूकल गांव में नट जाति के लोग रहते हैं. यह लोग राजा महाराजा के समय से नाच गाकर लोगों का मनोरंजन करते हैं और उससे अपना पेट भरते हैं. हालांकि समय के साथ अब बदलाव होने लगा है. यह लोग अब मजदूरी भी करने लगे हैं.

अलवर के गांव का इतिहास, history of alwar village
केवल 4 महिने के लिए ही गांव वाले आते हैं गाव

आजीविका के लिए इन गांव के लोग साल में 8 माह पंजा, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात सहित देश के विभिन्न राज्यों में जाते हैं और काम काज करते हैं. इस दौरान घर पर ताला लगा कर उस पर कपड़ा लपेटा जाता है और कपड़े पर शराब की धार चढ़ाई जाती है. इतना ही नहीं शराब भी खुद की तैयार हुई होती है.

नट जाति के लोगों का मानना है कि शराब की धार चढ़ाने से चोरी की आशंका नहीं रहती है. अनिष्ट होने के डर से कोई ग्रामीण ना तो ताले को हाथ लगाता है और ना ही घर में प्रवेश करता है. क्योंकि शराब की धार ताले से पहले देवता के स्थान पर चढ़ाई जाती है.

अलवर के गांव का इतिहास, history of alwar village
घर की सुरक्षा भगवान के भरोसे है

पढ़ेंः Special: लॉकडाउन के दौरान खिलाड़ियों ने घर और खेत को बनाया मैदान, बरकरार रखी अपनी फिटनेस

8 महीने बाद लौटने पर यह लोग शराब की धार फिर चढ़ा कर ही ताला खोलते हैं.गांव के लोग बताते हैं कि खाली घरों में प्रेत आत्मा का वास हो जाता है. उसकी मुक्ति के लिए फिर से शराब की धार चढ़ाई जाती है. शराब चढ़ाने का अधिकार महिलाओं को नहीं है. इन गांव में ज्यादातर पुरुष और महिलाएं दारु का सेवन करती हैं.

इस प्राचीन परंपरा से बिना चौकीदारों और पुलिस के घरों की सुरक्षा हो रही है. इसके अलावा नए काम की शुरुआत में भी देवताओं के स्थान पर शराब की धार चढ़ाई जाती है. घर में अगर चोरी हो जाए तो चोर को पकड़ने या अपना कोई काम सिद्ध कराने के लिए भी शराब की धार चढ़ाई जाती है. गांव के लोगों का कहना है कि इससे उनके देवता खुश रहते हैं और उनको सभी चीजों की जानकारी देते हैं.

अलवर के गांव का इतिहास, history of alwar village
महिनों तक लटके रहते हैं ताले

पंचायत में होता है फैसलाः

इन गांव में अगर झगड़ा होता है या शादी टूटने का मामला होता है तो यह लोग न्यायालय और पुलिस के पास नहीं जाते हैं. इनका फैसला पंच पटेलों की पंचायत में होता है. ग्रामीण बताते हैं कि पहले यह देखा जाता था कि शादी तोड़ने की पहल वर या वधू में से कौन सा पक्ष कर रहा है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्टः सरकारी दफ्तरों पर मेहरबान जलदाय विभाग, लाखों बकाए के बाद भी वसूली में खानापूर्ती!

पंचायत में चर्चा करने के बाद दहेज की राशि और जुर्माने का फैसला होता है. जो 20 हजार से दो लाख रुपए तक हो सकता है. फैसला हर ग्रामीण को मानने होता है. कोई उसकी अवमानना नहीं कर सकता है. जुर्माने की आधी राशि पीड़ित पक्ष को दी जाती है और आधी राशि पंच पटेल बांट लेते हैं.

गांव में रहते हैं लोगः

नाटो के पैतपुर गांव में 400, सूकल में 380, चिकलवास में 400 और पीपल गढ़ में 100 घरों की बस्ती है. इन गांव में रक्षाबंधन के बाद ही लोगों का उत्तर प्रदेश हरियाणा पंजाब सहित देश के विभिन्न राज्यों के शहरों में पलायन शुरू होता है. उसके बाद घरों पर ताले लटकते हैं और गांव वीरान हो जाता है. इन गांव के लोग शादी समारोह उत्सव में भजन में नाचना कर अपना जीवन यापन करते हैं.

गंगाजल के लेते हैं फेरेः

लोग शादी में फेरे तो सात लेते हैं लेकिन वो अग्नि के नहीं होते हैं. यह लोग जमीन में बांस गाढ़ कर उस पर एक छोटा घड़ा पानी का रखते हैं और फिर वर वधु उसके फेरे लेते हैं. इस घड़े में भरे पानी को गंगाजल मानकर फेरे लेते हैं. मतलब गंगा जी के सात फेरे हो गए. शादी में पंडित नहीं बुलाते हैं और ना ही मंत्रोच्चार और हवन होता है.

अलवर के गांव का इतिहास, history of alwar village
नट समाज के लोगों की आस्था

पढ़ेंः SPECIAL : कभी रोटी के लिए फैलाने पड़े थे हाथ...अब ये भिखारी नहीं, स्टूडेंट हैं, ट्रेनिंग के बाद मिलेगी नौकरी

नट जाति के गांव में ज्यादातर रिश्ते गांव में ही होते हैं. रिश्ते के दौरान अगर किसी ने छींक दिया तो यह तुरंत टूट जाता है. शादी की तिथि तय करने के दौरान छींकने पर उसे स्थगित कर दिया जाता है. फिर बाद में तिथि तय की जाती है. पंजाब-हरियाणा रवाना होने के दौरान भी अगर किसी ने छींक दिया तो जाना 8 से 10 दिन के लिए कैंसिल हो जाता है. इस गांव के वधू पक्ष के लोग दहेज नहीं देते वर पक्ष ही दहेज देता है व शादी का खर्चा भी करता है. वर्तमान में दहेज में दो से तीन लाख का सामान देते हैं.

भगवान को मानते हैं

लोगों ने बताया कि यह लोग भगवान पर देवताओं को खासा मानते हैं. गांव में एक व दो लोग पढ़े लिखे हैं. इसके अलावा ज्यादातर सभी लोग अनपढ़ हैं. गांव में बड़े-बड़े कोठी व मकान बने हुए हैं. लेकिन सभी पर ताले लटके हुए. अपने गुरु पर देवताओं की पूजा के लिए गांव के लोग अपना नंबर लगाते हैं मैं उसी साहब से मंदिर प्रतियोगिताओं की पूजा करते हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.