अलवर. प्रदेश के 17 जिलों में लिंगानुपात गड़बड़ाने लगा है. हाल ही में PCTS सॉफ्टवेयर की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है. इसका मतलब है कि मां की कोख में बेटियों को मारा जा रहा है. हालांकि हरियाणा से लगते अलवर जिले में लिंगानुपात में लगातार सुधार हो रहा है. देखिये यह खास रिपोर्ट...
रिपोर्ट सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मचा है. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों पर मॉनिटरिंग में लापरवाही के आरोप लगने लगे हैं. साल 2019 के मुकाबले 2020 में 17 जिलों में जन्म के आधार पर बाल लिंगानुपात में अंतर आया है.
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इसका खुलासा चिकित्सा विभाग प्रेगनेंसी चार्ट ट्रैकिंग एंड हेल्थ सर्विस मैनेजमेंट सिस्टम की रिपोर्ट से हुआ है. चिकित्सा विभाग के रिकार्ड पर नजर डालें तो भ्रूण लिंग परीक्षण अब तक 157 डिकॉय पीसीपीएनडीटी टीम की तरफ से किए गए हैं. इनमें से करीब 110 एनएचएम डायरेक्टर के निर्देश पर हुए.
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वर्ष 2014 से 18 के बीच सबसे ज्यादा पीसीपीएनडीटी टीम की तरफ से डेकोर किए गए. लेकिन अब यह प्रक्रिया पूरी तरह से ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है. सोनोग्राफी सेंटरों की जांच मॉनिटरिंग और सर्विलेंस का पूरा सिस्टम गड़बड़ आने लगा है. चिकित्सा विभाग के अधिकारियों की नींद इस रिपोर्ट के बाद टूटी है.
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एक साल तक ढिलाई बरतने के बाद अब सरकार में संदिग्ध लोगों और सोनोग्राफी सेंटरों पर डिकोय ऑपरेशन करने की तैयारी शुरू की जा रही है. हाल ही में बांसवाड़ा में वर्ष 2016 में बाल लिंगानुपात 1003 तक पहुंचने के बाद लगातार 2 साल से गिरावट आई है. जबकि भ्रूण लिंग परीक्षण के लिए संवेदनशील माने जाने वाले हरियाणा सीमा से सटे अलवर जिले में लगातार 6 साल से बेटियों की संख्या में इजाफा हुआ है.
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घटते बाल लिंगानुपात को देखते हुए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने 17 सीएमएचओ और पीसीपीएनडीटी जिला नोडल अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निदेशक ने कम लिंगानुपात वाले जिले के पीसीपीएनडीटी प्रकोष्ठ की ओर से संदिग्ध व्यक्तियों और भ्रूण लिंग परीक्षण करने वाले सोनोग्राफी सेंटरों को चिन्हित करने के प्रयास को बेहतर बताया गया है.
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बेहद खराब स्थिति वाले 17 जिलों के सोनोग्राफी सेंटरों और संदिग्ध व्यक्तियों को चिन्हित कर दिखाए के निर्देश भी दिए हैं. बेटियों का लिंगानुपात घटने के ज्यादातर मामले पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और गुजरात सीमा से सटे हुए जिलों में हैं. जिलों में सीमा पार भ्रूण लिंग परीक्षण की आशंका है. कोख में बेटियों की सुरक्षा के लिए चलाया डिकोय ऑपरेशन भी अब बंद हैं.
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ऐसे में दूसरे प्रदेशों की सीमा से सटे संदिग्ध सोनोग्राफी सेंटर बेखौफ घर में बेटियों का पता लगाने में कामयाब हो रहे हैं. इसका खुलासा लगातार स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट में हुआ है. प्रदेश में अव्वल रहे बांसवाड़ा का ग्राफ लगातार गिर रहा है. बांसवाड़ा में वर्ष 2018 में प्रदेश में सबसे ज्यादा 1000 पुरुषों के मुकाबले 103 बेटियों का जन्म हुआ. वर्ष 2019 में 998 और वर्ष 2020 में संख्या गिरकर 981 रह गई.
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सरकार को आशंका है कि इस जिले में भ्रूण लिंग परीक्षण बढ़ा है. जो बेटियों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है. जबकि टोंक में वर्ष 2016 में 992 बेटियों की संख्या पहुंचने के बाद लगातार गिर रही है. वर्ष 2000-20 में 925 बेटियों की संख्या रह गई. सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में डिकॉय का डाटा की पीसीपीएनडीटी सॉफ्टवेयर में हर महीने एंट्री होती है.
इसमें संस्था और जिलेवार डिलीवरी के साथ बच्चों के मेल फीमेल की एंट्री होती है. वर्ष के समाप्त होने पर जिले का सेक्स रेश्यो की समीक्षा की जाती है. जिसमें 17 जिलों में बेटियों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है.
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इन जिलों में हालात बेहतर
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इन जिलों में हालात है खराब
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अलवर जिले में बढ़ा लिंग अनुपात
अलवर जिले में 1000 लड़कों पर 2020 में 934 बेटियों का जन्म हुआ. जबकि वर्ष 2019 में 930, 2018 में 929, 2017 में 926, 2016 में 924 और 2015 में 917 बेटियों का जन्म हुआ था.
मुख्यमंत्री के गृह जिले के हालात खराब
लिंगानुपात के मामले में प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह जिले जोधपुर के हालात भी खराब हैं. यहां साल 2019 में 963 बेटियों का जन्म हुआ था. जबकि 2020 में यह संख्या घटकर 959 हो गई.
किस जिले में कितना लिंगानुपात
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किस जिले में कितना लिंगानुपात
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