अलवर. अलवर विमंदित बालिका प्रकरण (Alwar Atrocity Case) में अब तक तस्वीर कुछ स्पष्ट नहीं हो रही है. राजनीतिक दल अपने सियासी फायदे और नुकसान के तहत बयानबाजी कर रहे हैं. प्रशासन भी मूक जान पड़ रहा है. इन सबके बीच अब तक बच्ची का मजिस्ट्रेट के सामने बयान न दर्ज किया जाना सबको हैरान कर रहा है. वो भी तब जब पीड़ित पिता पुलिस और प्रशासन के अधिकारी पर गंभीर आरोप लगा रहा है और साफ कह रहा है कि रेप के सबूतों को समाप्त किया जा रहा है और पीड़ित परिवार को पैसे और भूखंड का लालच दिया जा रहा है.
मजिस्ट्रेट के सामने नहीं हुआ बयान दर्ज: पीड़ित पिता का तर्क है कि पुलिस को अगर अपनी जांच की पोल खुलने का डर नहीं होता तो अब तक पीड़िता के बयान मजिस्ट्रेट के सामने करवा दिया गया होता. पिता का आरोप है कि पुलिस ने खाली कागजों पर पीड़िता के हस्ताक्षर करवा कर बयान अपनी मर्जी से लिखे हैं. पुलिस अधिकारियों ने कहा है कि अपने बयान में पीड़िता ने बलात्कार की बात नहीं की है.
पिता ने दोहराया हुआ है रेप: पिता का कहना है कि उनकी मूक बधिर बेटी के साथ रेप हुआ है. 11 जनवरी को मूक बधिर बालिका जब लहूलुहान स्थिति में अलवर में मिली थी, तब पुलिस ने इलाज के लिए उसे जयपुर के सरकार जेके लोन अस्पताल में भर्ती करवाया था. चूंकि बालिका के प्राइवेट पार्ट में जख्म थे, इसलिए प्राइवेट पार्ट की प्लास्टिक सर्जरी (Plastic Surgery Of Alwar Atrocity Victim) की गई. अब पिता को संदेह है कि असल वजह का खुलासा संभव नहीं हो पाएगा.
बालिका के पिता का कहना है कि पुलिस उनके घर से बालिका के पुराने कपड़े भी ले गई. इससे ऐसा प्रतीत होता है कि जांच के लिए पुराने कपड़ों को रखा गया हो। यानी घटना के समय जो कपड़े बालिका ने पहन रखे थे, उन्हें जांच में शामिल नहीं किया.
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कलक्टर पर लगाए थे गंभीर आरोप: पिता ने अलवर के कलक्टर नन्नू मल पहाड़िया पर गंभीर आरोप लगाए थे. उन्होंने कहा था कि अलवर में महिला एसपी होने के बाद भी ज्यादती की शिकार बालिका को न्याय नहीं मिल रहा है. घटना के 20 दिन से भी ज्यादा समय गुजर जाने के बाद भी पुलिस आरोपियों को गिरफ्तार नहीं कर सकी है.
मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान को लेकर फिर पुलिस प्रशासन सवालों में घिरती दिख रही है. दूसरी ओर पुलिस का कहना है कि उसने बयान के लिए अदालत में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर रखा है.