अलवर. अलवर के केंद्रीय बस स्टैंड से दो डिपो संचालित होते हैं. अलवर आगार और मत्स्यनगर आगार इसमें शामिल हैं. रोडवेज में अगस्त 2016 से फरवरी 2021 तक सेवानिवृत्त हुए रोडवेज के 215 कर्मचारियों को अभी तक ग्रेच्युटी, उपार्जित अवकाश, ओवरटाइम, नाइट अलाउंस, नौवें औऱ 18 वर्ष में हुई पदोन्नति, पांचवें और छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के बाद लगे एरियर का भुगतान नहीं मिला है.
इसमें अलवर आगार के 110 और मत्स्य नगर आगार के 105 सेवानिवृत्त रोडवेज कर्मचारी हैं. अपनी मेहनत के पैसे के लिए कर्मचारी रोडवेज कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं. अधिकारियों का कहना है कि जब बजट आएगा तो कर्मचारियों के खाते में राशि जमा कर दी जाएगी.
अलवर और मत्स्यनगर डिपो के कर्मचारियों का करीब 17 करोड़ 50 लाख रुपए का बकाया चल रहा है. अलवर आगार में अगस्त 2016 से दिसंबर 2020 तक सेवानिवृत्त 110 कर्मचारियों का करीब 8 करोड़ पचास लाख रुपए और मत्स्य नगर आगार के अगस्त 2016 से फरवरी 2021 तक सेवानिवृत्त हुए 105 कर्मचारियों का करीब 8 करोड़ 55 लाख रुपए का भुगतान बकाया है.
रोडवेज की बीएमएस फेडरेशन के संभाग अध्यक्ष मुन्ना लाल शर्मा ने कहा कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों की बकाया राशि के भुगतान के संबंध में कई बार अधिकारियों को अवगत कराया गया है. इस संबंध में प्रदर्शन किए गए और न्यायालय में भी कर्मचारियों ने अपनी समस्या रखीं. लेकिन उसके बाद भी कोई समाधान नहीं हुआ. रोडवेज कर्मचारियों को पेंशन भी नहीं मिलती. कुछ पुराने कर्मचारियों को महीने के दो से ढाई हजार रुपए मिलते हैं. कुछ को 15 से 20 हजार रुपए पेंशन मिलती है. ज्यादातर कर्मचारी बिना पेंशन के जीवन यापन कर रहे हैं. ऐसे में कर्मचारियों को खासी दिक्कत होती है.
कर्मचारियों का कहना है कि सभी दल बड़े वादे करते हैं. लेकिन सत्ता में आने के बाद भी न समय पर वेतन मिलता है और न कर्मचारियों को सभी भत्ते मिलते हैं. रोडवेज कर्मचारियों का आरोप है कि सरकार रोडवेज को प्राइवेट संस्था मानती है. जबकि रोडवेज में आरएएस और आईएएस अधिकारियों की तैनाती होती है. जो लगातार पूरी व्यवस्था देखते हैं.
कर्मचारियों का यह भी आरोप है कि मंत्री और नेताओं की बसें सड़क पर चल रही हैं. इसलिए नेताओं का रोडवेज की ओर ध्यान नहीं है. सरकार को ऐसे मंत्री रोडवेज में लगाने चाहिए जिन की बसें सड़क पर नहीं चलती हों. जिससे मंत्री विभाग के बारे में बेहतर सोच सकें. उन्होंने कहा कि सालों से रोडवेज में नई बसें नहीं खरीदी गई हैं. बसों की हालत खराब है.
कर्मचारियों का आरोप है कि सरकार का निजीकरण पर ज्यादा ध्यान है. कर्मचारियों को न तो समय पर ड्रेस मिलती है न ही भत्ते. कई साल से कर्मचारी परेशानी और मजबूरी में काम कर रहे हैं.