अलवर. लॉकडाउन के दौरान लाखों श्रमिक मजदूर और ऐसे लोग जो प्रतिदिन मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन यापन करते हैं, वो बेरोजगार हो गए हैं. इन सबके बीच एक वर्ग ऐसा भी है, जो केवल 3 महीने के भरोसे ही साल भर अपना गुजारा करता है. हम बात कर रहे हैं मिट्टी के कारीगर यानी कुम्हारों की.
लॉकडाउन के चलते कुम्हारों का काम पूरी तरह से ठप हो गया है. साल भर की कमाई का समय भी निकल गया है. ऐसे में कुम्हार और उसके परिवार के सामने रोजी-रोटी का संकट मंडराने लगा है. लॉकडाउन के दौरान कुम्हार के परिवार को ना तो कोई मदद मिल रही है और ना ही किसी तरह की आय हो रही है.
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गर्मियों के मौसम पर होते हैं निर्भर
कुम्हार पूरे साल गर्मी के मौसम पर निर्भर रहते हैं. लेकिन इस बार कोरोना वायरस के चलते गर्मी का पूरा सीजन घर पर बैठे-बैठे ही निकल रहा है. होली के बाद से कुम्हार के सामान की डिमांड बढ़ने लगती है.
लॉकडाउन ने बढ़ाई मुश्किलें
मिट्टी के घड़े, मटके और अन्य सामानों का उपयोग लोग अपने घरों में करते हैं. इन सामानों को बेचकर ही कुम्हार अपना गुजर-बसर करते हैं. लेकिन कोरोना के चलते 2 महीने का समय निकल चुका है. लोग घर से बाहर निकलने को तैयार नहीं है. प्रशासन की सख्ती के चलते बाजार भी पूरी तरह से बंद है.
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इन कुम्हारों को प्रशासन की तरफ से भी कोई मदद नहीं मिली है. कुछ जगहों पर सरकारी दुकान से मिलने वाले गेहूं से ये लोग काम चला रहे हैं. अलवर में करीब हजारों कुम्हार हैं. जिनके चूल्हे लॉकडाउन के चलते ठंडे पड़ गए हैं.