अलवर. ग्रामीण व सरिस्का के जंगल के वन्यजीवों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए स्वास्थ्य विभाग की तरफ से सरिस्का के घने जंगल में बसे गांव के लोगों को वैक्सीन लगाई जा रही है. इसकी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. वन विभाग की टीम के साथ स्वास्थ्य विभाग की टीम ने सरिस्का के घने जंगलों में बसे क्रशका सहित आसपास के कई गांव में लोगों को कोरोना की वैक्सीन लगाई. शुरुआत में ग्रामीणों ने वैक्सीन लगवाने से मना कर दिया, लेकिन गांव के सरपंच व अन्य लोगों के समझाने पर ग्रामीण व्यक्ति लगवाने को तैयार हुए.
ग्रामीणों को कोरोना महामारी के संक्रमण से बचाने के लिए टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट सरिस्का के कोर एरिया में ऊंची पहाड़ी पर बसे क्रास्का गांव में वैक्सीनेशन किया गया. स्वास्थ्य विभाग की टीम की तरफ से प्राथमिकता के रूप में सिर्फ का प्रशासन के कहने पर ग्रामीणों को वैक्सीन लगाई जा रही है. सरिस्का के घने जंगल में बसे गांव में अभी तक कोई भी व्यक्ति कोरोना संक्रमित नहीं हुआ है. सरिस्का प्रशासन की तरफ से ग्रामीणों को जागरूक करने का काम भी किया जा रहा है.
कोरोना का संक्रमण बाघ व अन्य वन्यजीवों में ना पहुंचे, इसके लिए लगातार वन विभाग की टीम गश्त कर रही है. ग्रामीणों को घर में रहने सरिस्का के पानी वाली जगहों पर अपने पालतू जानवरों नहीं छोड़ने, सरिस्का क्षेत्र में पालतू मवेशी नहीं छोड़ने व जंगली जीवों के पानी पीने के स्थान पर विशेष निगरानी रखने की व्यवस्था की गई. सरिस्का में आने जाने वाले लोगों पर नजर रखी गई. किसी भी बाहरी व्यक्ति को सिर्फ का क्षेत्र में प्रवेश नहीं दिया गया. इसके अलावा भी लगातार सरिस्का प्रशासन की तरफ से एहतियात बरती जा रही है.
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साथ ही जंगल की शान टाइगर सहित अन्य वन्यजीवों को भी संक्रमण से दूर रखा जा सकेगा. इस दौरान वैक्सीनेशन टीम के 4 सदस्य जंगल में करीब 1000 फिट अधिक ऊंचाई का पहाड़ पैदल ही चढ़े. गांव क्रास्का पहुंचने पर पहले तो ग्रामीण वैक्सीन के लिए आनाकानी कर रहे थे, लेकिन समझाइश के बाद वह लोग वैक्सीन लगाने को तैयार हो गए. हालांकि इस गांव में कोरोना का एक भी केस सामने नहीं आया है. इस कारण ग्रामीणों को लगता है कि उनके यहां संक्रमण का डर नहीं है. इसलिए वो वैक्सीन लगवाने को तैयार नहीं हुए थे.
सरिस्का के जंगल व पहाड़ के बीचो बीच से क्रास्का गांव का रास्ता जाता है, जो ग्राम पंचायत माधवगढ़ से करीब 20 किलोमीटर दूर है. वहां मेडिकल की कोई सुविधा नहीं है. कोई भी बीमार होता है, तो सबको पहाड़ व जंगलों से नीचे आना पड़ता है. यहां के ग्रामीण पूरी तरह पशुपालन पर निर्भर हैं. जंगल में उनके पशु चरते हैं, जिसके दूध से उनकी आजीविका चलती है. इस गांव में करीब 100 से 150 लोग रहते हैं. यहां 60 लोगों को वैक्सीन लगाई गई है.