अलवर. अलवर का करणी माता मंदिर (Karni Mata Temple) अरावली की वादियों में बसा हुआ है. बाला किला के पास चारों तरफ पहाड़ियों से घिरा हुआ करणी माता मंदिर प्रकृति की गोद में सुंदरता समेटे हुए है. यह मंदिर सालों पुराना है. साल में दो बार नवरात्रि के मौके पर मंदिर में मेला (Karni mata mandir during Navratri) भरता है. उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली व आसपास के शहरों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु करणी माता के दर्शन के लिए अलवर आते हैं. 9 दिनों तक माता के अलग-अलग रूपों की यहां पूजा होती है.
पहाड़ों के रास्ते पैदल रास्ता बना हुआ है. हजारों की संख्या में श्रद्धालु मां के मंदिर डंडोत्रि लगाकर भी पहुंचते हैं. श्रद्धालु मंदिर में मन्नत मांगते हैं. कहते हैं कि यहां मांगी सभी मुरादें पूरी होती हैं. कोरोना के चलते दो साल मंदिर सूना रहा. केवल पुजारी ही मंदिर में विधिवत पूजा अर्चना करते रहे. 2 साल बाद नवरात्रि के मौके पर मेला भर रहा (karni mata mela after covid) है. चूंकि ये वन क्षेत्र में आता है इसलिए केवल नवरात्रि में मंगलवार और शनिवार को लोगों को आने-जाने की अनुमति दी जाती है. मंदिर जाने के दो रास्ते हैं. सड़क मार्ग से केवल दोपहिया वाहनों को आने-जाने की अनुमति है. तो वहीं पहाड़ों के पैदल रास्ते भी हजारों श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं. मंदिर तक पहुंचने के लिए लोगों को सैकड़ों सीढ़ी चढ़नी और उतरने पड़ती है. नवरात्रों के समय प्रशासन की तरफ से पुलिस व्यवस्था की जाती है. लोग भंडारे करते हैं व प्याऊ की व्यवस्था भी रहती है. इसके अलावा खाद्य सामग्री प्रसाद की दुकानें लगती हैं. मंदिर 24 घंटे खुला रहता है.
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मंदिर का इतिहास: सन 1791 से 1815 तक अलवर के शासक रहे महाराज बख्तावर सिंह के पेट में एक दिन काफी तेज दर्द उठा था. हकीमों और वेदों के इलाज के बाद भी महाराज के पेट का दर्द सही नहीं हुआ. उनकी सेना में शामिल चारण के कहने पर महाराज ने करणी माता का ध्यान किया. इस पर उन्हें महल के कंगूरे पर एक सफेद चील बैठी हुई दिखाई दी. सफेद चील करणी माता का प्रतीक मानी जाती है. सफेद चील के दर्शन करने के बाद महाराज बख्तावर सिंह के पेट का दर्द सही हो गया.
महाराज की आस्था बढ़ गई और उन्होंने आगे चलकर इस मंदिर का निर्माण कराया. महाराज बख्तावर सिंह ने देशनोक बीकानेर स्थित करणी माता के मंदिर में चांदी का दरवाजा बनवाकर भेंट किया था. 1985 में रामबाग सैनी आरतियां की ओर से मंदिर जाने के लिए सीढ़ियों का निर्माण कराया गया था. इससे पहले मंदिर जाने के लिए बाला किला मार्ग से केवल कच्चा रास्ता था. मंदिर तक पहुंचने के लिए बाला किला मार्ग के अलावा किशन कुंड मार्ग से भी एक रास्ता है. किशन कुंड मार्ग से करणी माता मंदिर जाने वाला केवल पैदल मार्ग है.