अलवर/जयपुर. सरकार की ओर से शराब और स्टाम्प खरीद पर गोसंरक्षण के टैक्स (cow protection tax in rajasthan) वसूली का प्रावधान है. गो संरक्षण के निमित्त कर के रूप में वसूली गई राशि से गोशालाओं में व्यवस्थाएं की जाती हैं. गायों के संरक्षण के लिए प्रदेश सरकार हर साल करोड़ों रुपए टैक्स के रूप में आम जनता से वसूलती है, लेकिन आज भी गोशालाओं की हालत बदतर है. बड़ी संख्या में गोवंंश सड़कों पर लावारिस फिरते नजर आते हैं.
गायों को न तो खाने के लिए चारा मिल पा रहा है और न उनके रहने के लिए पर्याप्त व्यवस्था हो पा रही है. गायों के नाम पर वसूला जा रहा टैक्स सरकार अन्य कार्यों पर खर्च कर रही है. अलवर और जयपुर में गोवंश के नाम पर वसूली जा रही राशि कहां खर्च हो रही यह भी विचार का विषय है. जयपुर में गो संरक्षण के लिए सरकार की ओर से गोशालाओं ने साल के 6 महीने का ही अनुदान पहुंचाया जा रहा है.
अलवर में शराब पर वैट के साथ 20 प्रतिशत गो कर (tax for cow protection in alwar) वसूला जाता है. गायों के संरक्षण के लिए 23 जुलाई 2018 से पूरे प्रदेश में यह टैक्स वसूला जा रहा है. इससे पहले केवल स्टाम्प ड्यूटी में 10 प्रतिशत गो कर वसूला जाता था, लेकिन जुलाई 2018 के बाद इसपर गो टैक्स 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया. साथ ही शराब पर भी गो कर 20 प्रतिशत लगाया गया है. सेल टैक्स विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2020-21 में 621 करोड़ रुपए गो टैक्स के नाम पर अब तक वसूले गए. इसी तरह से स्टांप ड्यूटी पर पूरे प्रदेश में करीब 1000 करोड़ रुपए सरकार के खाते में जमा हुए.
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लेकिन पूरे प्रदेश में गायों के संरक्षण पर एक भी पैसा खर्च नहीं हो रहा है. सड़कों पर गोवंश लावारिस हालत में घूमते रहते हैं. आए दिन गायों पर हमला करने और तस्करी जैसे मामले सामने आ रहे हैं. प्रशासन और सरकार की तरफ से चारे तक की कोई व्यवस्था नहीं की जाती है. गोशालाओं को कुछ फंड मिलता है, लेकिन वह भी कई सालों से नहीं मिल (Grant is not reaching Gaushalas) रहा है.
जिले के कांजी हाउस के हालात भी खराब हैं. कांजी हाउस में गायों को रखने की जगह ही नहीं है. नगर परिषद और नगर निगम की टीम गायों को पकड़कर शहर से बाहर दूसरी जगह पर छोड़ आती है. कुछ निजी संस्थाओं और लोगों के सहयोग से कुछ संस्थाएं चलाई जा रही हैं. उनकी मदद से गायों को रहने की जगह और चारे की व्यवस्था की जाती है.
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जिले से मिलने वाले गो टैक्स पर एक नजर
साल 2018-19 में अकेले अलवर से प्रदेश सरकार को 110 करोड़ रुपए गो टैक्स प्राप्त हुआ है. इसी तरह से साल 2019-20 में 172 करोड़ रुपए, साल 2020-21 में अब तक 136 करोड़ रुपए सेल्स टैक्स विभाग से गो टैक्स के रूप में मिल चुके हैं. पूरे प्रदेश के आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2020-21 में पूरे प्रदेश में अकेले सेल्स टैक्स विभाग की ओर से वैट के साथ 681 करोड़ रुपए गो टैक्स प्रदेश सरकार को मिला है. वहीं साल 2019-20 में 402 करोड़ रुपए गो टैक्स के रूप में प्राप्त हुआ था.
स्टाम्प ड्यूटी पर करोड़ों का टैक्स
स्टाम्प खरीदते समय स्टाम्प ड्यूटी के साथ गायों के संरक्षण के लिए सरकार 20 प्रतिशत टैक्स वसूलती है. पूरे प्रदेश के आंकड़ों पर नजर डालें तो 800 से 1000 करोड़ रुपए गोसंरक्षण के लिए टैक्स के नाम पर जनता की जेब से वसूले जा रहे हैं. हर साल इसी तरह के हालात रहते हैं, आम जनता को इस टैक्स की कोई जानकारी नहीं होती और मजबूरी में उनको टैक्स भी देना पड़ता है.
सरकार पर लगते रहे हैं गंभीर आरोप
भाजपा ने कुछ समय पहले राजस्थान की कांग्रेस सरकार पर गो संरक्षण को लेकर गंभीर आरोप लगाए थे. आरोप था कि गायों के संरक्षण पर खर्च होने वाला पैसा मदरसों और अन्य चीजों पर खर्च किया जा रहा है. वहीं वर्षों से गोशालाओं को कोई बजट नहीं मिला है. न सरकार और न प्रशासन ने कांजी हाउस की कोई सुध ली है. गायों को रखने की कोई इंतजाम नहीं है. वहीं जनता की जेब से गायों के संरक्षण के लिए मोटा टैक्स भी वसूला जा रहा है.
6 माह का ही अनुदान पहुंच रहा गोशालाओं तक
गायों के नाम पर राज्य सरकार स्टांप ड्यूटी पर अधिभार और शराब बिक्री में वैट पर अधिभार लगाकर अपना खजाना तो भर रही है, लेकिन जयपुर में गोवंश के पालन पोषण के लिए गोशालाओं तक सिर्फ साल के 6 महीने का ही अनुदान (Only 6 months grant is being given in Jaipur) पहुंचा रही है. हालांकि राजधानी की हिंगोनिया गोशाला का कामकाज निगम के हाथ में होने के कारण वहां व्यवस्था ठीक है.
प्रदेश की पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार ने गो संरक्षण और संवर्धन अधिनियम 2016 के अंतर्गत स्टांप ड्यूटी पर 10% की दर से अधिभार और शराब बिक्री के वैट पर 20% अधिभार लगाकर निधि का सर्जन किया था. इससे सरकार ने 3 साल में तकरीबन 1992 करोड़ का राजस्व अर्जित किया. लेकिन गो सेस के नाम पर जो वसूली की जा रही है उसे सरकार गोवंश तक पहुंचा नहीं रही है. राजधानी के हिंगोनिया गोशाला की बात की जाए तो यहां वर्तमान में 12,500 से अधिक गोवंश हैं. लगभग हर दिन हेरिटेज और ग्रेटर नगर निगम यहां 40 लावारिस गोवंश छोड़ता है. इसके पालन पोषण पर निगम हर महीने करीब 2.75 करोड़ का भुगतान करता है.
हालांकि राज्य सरकार के गोपालन विभाग से छोटे पशु पर ₹20 और बड़े पशु पर ₹40 का ही अनुदान मिलता है. ये अनुदान भी महज 6 महीने का ही दिया जा रहा है. इसकी तुलना में निगम प्रशासन छोटे पशुओं के ₹32 और बड़े पशु के ₹52 का भुगतान अक्षय पात्र ट्रस्ट को कर रहा है. 3 साल पहले राज्य सरकार ने गोवंश को लेकर एक पहल की थी लेकिन इसका पूरा फायदा गोवंश को नहीं मिल पा रहा.