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महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर अलवर में नजर आया गांधी जी का चरखा - alwar latest news

गांधी जयंती के दिन अलवर में कई कार्यक्रमों का आयोजन हुआ. आपको बता दें कि इस दौरान गांधीजी का चरखा भी नजर आया. जिसे देखकर सभी के चहरों पर खुशी नजर आई.

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Published : Oct 2, 2019, 7:33 PM IST

अलवर. समय में तेजी से बदलाव हो रहा है. जिसके कारण लोग गांधीजी के चरखे को भूल चुके हैं. तो वही उसको चलाना व उससे सूट काटना अब पूरी तरीके से बंद हो चुका है. लेकिन अलवर में अभी हजारों महिलाएं चरखे से सूत काटने का काम कर रहे हैं.

गांधी जयंती पर अलवर में नजर आया गांधीजी का चरखा

दरअसल, खादी ग्राम उद्योग की तरफ से हाथ के कामगारों को प्रमोट करने के लिए पुराना सूचना केंद्र के बाहर एक स्टाल लगाई गई. इसमें ग्रामीण महिलाएं चरखा चलाती हुई और सूत काटती हुई नजर आई. उनको देखने के लिए सड़क पर चलते हुए लोग भी रुक गए.

सूट काटने वाली राजगढ़ की बीना ने बताया कि वो 40 साल से इस काम में लगी हुई है. इस काम से उनके घर की रोजी रोटी चलती है तो वहीं उनको चरखा चलाने में खुशी होती है. उन्होंने कहा कि आज के लोग चरखा चलाना भूल चुके हैं.

पढ़ेंः स्काउट शिविर में खेलते समय गिरकर चोटिल हुआ छात्र, हाथ में फ्रैक्चर

बीना को चरखा चलाते हुए देख वहां से गुजर रहे लोग रुक गए और सभी के चहरों पर खुशी नजर आई. वहां मौजूद लोगों ने बताया कि आज के समय में गांधीजी का चरखा नजर नहीं आता है. तो वहीं उसके चलाने वाले लोग भी कम बचे हैं. बिना ने कहा कि उस जैसी हजारों महिलाएं अलवर में चरखा चलाती हैं. इससे सूट काटने के बाद वह खादी भंडार को देती हैं. उससे दरी पट्टी और अन्य कई सामान बनते हैं.

अलवर. समय में तेजी से बदलाव हो रहा है. जिसके कारण लोग गांधीजी के चरखे को भूल चुके हैं. तो वही उसको चलाना व उससे सूट काटना अब पूरी तरीके से बंद हो चुका है. लेकिन अलवर में अभी हजारों महिलाएं चरखे से सूत काटने का काम कर रहे हैं.

गांधी जयंती पर अलवर में नजर आया गांधीजी का चरखा

दरअसल, खादी ग्राम उद्योग की तरफ से हाथ के कामगारों को प्रमोट करने के लिए पुराना सूचना केंद्र के बाहर एक स्टाल लगाई गई. इसमें ग्रामीण महिलाएं चरखा चलाती हुई और सूत काटती हुई नजर आई. उनको देखने के लिए सड़क पर चलते हुए लोग भी रुक गए.

सूट काटने वाली राजगढ़ की बीना ने बताया कि वो 40 साल से इस काम में लगी हुई है. इस काम से उनके घर की रोजी रोटी चलती है तो वहीं उनको चरखा चलाने में खुशी होती है. उन्होंने कहा कि आज के लोग चरखा चलाना भूल चुके हैं.

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बीना को चरखा चलाते हुए देख वहां से गुजर रहे लोग रुक गए और सभी के चहरों पर खुशी नजर आई. वहां मौजूद लोगों ने बताया कि आज के समय में गांधीजी का चरखा नजर नहीं आता है. तो वहीं उसके चलाने वाले लोग भी कम बचे हैं. बिना ने कहा कि उस जैसी हजारों महिलाएं अलवर में चरखा चलाती हैं. इससे सूट काटने के बाद वह खादी भंडार को देती हैं. उससे दरी पट्टी और अन्य कई सामान बनते हैं.

Intro:अलवर।
2 अक्टूबर गांधी जयंती के दिन अलवर में कई कार्यक्रम हुए। इस दौरान समय के साथ लोग भूल चुके गांधीजी का चरखा नजर आया। दरअसल खादी भंडार की तरफ से अलवर के पुराना सूचना केंद्र के बाहर महिलाओं को सूट काटने के लिए बैठाया गया था। महिला चरखे से सूत काटती हुई नजर आई। उनको देखने के लिए सड़क पर चलते हुए लोग भी रुक गए।


Body:समय में तेजी से हो रहे बदलाव के साथ लोग गांधीजी के चरखे को भूल चुके हैं। तो वही उसको चलाना व उससे सूट काटना अब पूरी तरीके से बंद हो चुका है। लेकिन अलवर में अभी हजारों महिलाएं चरखे से सूत काटने का काम कर रहे हैं। खादी ग्राम उद्योग की तरफ से हाथ के कामगारों को प्रमोट करने के लिए पुराना सूचना केंद्र के बाहर एक स्टाल लगाई गई। इसमें ग्रामीण महिलाएं चरखा चलाती हुई व सूत काटती हुई नजर आई। सूट काटने वाली राजगढ़ की बीना ने बताया कि वो 40 साल से इस काम में लगी हुई है। इस काम से उनके घर की रोजी रोटी चलती है तो वही उनको चरखा चलाने में खांसी खुशी होती है। उन्होंने कहा कि आज के लोग चरखा चलाना भूल चुके हैं।


Conclusion:बीना को चरखा चलाते हुए देख वहां से गुजर रहे लोग रुक गए। तो वही सभी में चरके को देखने की खुशी नजर आई। वहां मौजूद लोगों ने बताया कि आज के समय में गांधीजी का चरखा नजर नहीं आता है। तो वहीं उसके चलाने वाले लोग भी कम बचे हैं। बिना ने कहा कि उन जैसी हजारों महिलाएं अलवर में चरखा चलाती हैं। इससे सूट काटने के बाद वह खादी भंडार को देती है। उससे दरी पट्टी व अन्य कई सामान बनते हैं।

बाइट- बीना, सूत काटने वाली महिला
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