अलवर. 1 अप्रैल 2017 को दो पिकअप गाड़ियों में गोवंश लेकर जा रहे पहलू खान व उसके साथियों को बहरोड़ में लोगों ने रोका व उनसे गायों के बारे में पूछताछ की. जवाब नहीं देने पर भीड़ ने उनके साथ मारपीट की. इस दौरान पुलिस ने मौके पर पहुंच कर पहलू खान को बहरोड़ के कैलाश अस्पताल में भर्ती कराया, जहां 4 अप्रैल को दिल का दौरा पड़ने से पहलू खान की मौत हो गई.
वहीं, इस मामले ने विकराल रूप धारण किया और पूरी घटना आग की तरह देशभर में फैल गई. इसे मॉब लिंचिंग नाम दिया गया. इसके बाद कई दिनों तक इस पर जमकर राजनीति हुई. सत्ता व विपक्ष पक्ष ने एक-दूसरे पर जमकर आरोप लगाए. पुलिस ने घटनास्थल पर मौजूद लोगों की वीडियो रिकॉर्डिंग के आधार पर विपिन यादव, रविंद्र कुमार, कालूराम, दयानंद, योगेश कुमार और भीम राठी को गिरफ्तार किया. इनके अलावा तीन अन्य आरोपी गिरफ्तार किए गए, लेकिन वो बाल अपचारी थे. इसलिए उनका मामला बाल न्यायालय में चल रहा है.
इस मामले में 14 सीट 78 पेज की चार्जशीट 23 फरवरी 2018 को पुलिस द्वारा न्यायालय में दी गई. वहीं, दूसरी चार्जशीट 21 पेज की दी गई थी. सरकारी पक्ष के तरफ से इस मामले में 44 गवाह पेश किए गए. सरकारी वकील योगेंद्र खटाना ने बताया कि इस पूरे मामले में सभी आरोपियों पर हत्या का मुकदमा साबित हो चुका था. जबकि बचाव पक्ष के वकील हुकम चंद शर्मा ने कहा कि पुलिस इस पूरे मामले में सभी आरोपियों को गलत तरह से फंसा रही है.
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हुकम चंद ने आगे कहा कि पुलिस के पास इस मामले में कोई भी गवाह नहीं है. घटनास्थल पर गलत वीडियो के माध्यम से जबरन उन लोगों को फंसाया गया है. जिस युवक ने वीडियो बनाया था वो भी न्यायालय में पेश नहीं हुआ. वहीं, पहलू खान की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी, लेकिन पुलिस इस पूरे मामले को दबाती रही. डॉक्टरों ने भी अपनी रिपोर्ट में इसकी पुष्टि की थी.
बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि पर्चा बयान सहित सभी तरह के गवाह उन लोगों को आरोपी नहीं ठहरा रहे थे. जबकि पुलिस गलत तरह से जबरन उनको फंसाने में लगी हुई थी. हुकम चंद शर्मा ने कहा कि इस देश में कुछ लोग जातिवाद की राजनीति कर रहे हैं. वो आपसी भाईचारा बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं. न्यायालय के फैसले से ऐसे लोगों को करारा जवाब मिला है.