अलवर. जिले के बाला किला को आम पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है. इसके साथ ही पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग की ओर से बाला के लिए में तीन करोड़ की लागत से काम अलवर का बाला किला देश में अपनी खास पहचान रखता है. साल भर देशी विदेशी हजारों पर्यटक बाला किला में घूमने के लिए आते हैं. करीब 3 वर्ष पूर्व आंधी तूफान के दौरान बाला किले में दीवार गिरने और क्षतिग्रस्त होने का मामला सामने आया था, जिसके बाद बाला किला में प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी. पर्यटक केवल बाला किला स्थित मंदिर तक जा पाते थे.
कुछ दिन पहले पर्यटन विभाग की तरफ से बाला किला को आम पर्यटकों के लिए खोल दिया गया. इसके साथ ही किले में पिछले काफी समय से काम नहीं होने के कारण किले की दीवारों का रंग खराब हो चुका था. यहां आने वाले पर्यटक किले की दीवारों पर कुछ लिख देते हैं, जिससे दीवारें खराब हो जाती है. किले की मरम्मत और जीर्णोद्धार के बाद किले की सुंदरता और बढ़ जाएगी. इससे पर्यटकों की संख्या में भी इजाफा हो सकता है. वर्ष 2020 में मुख्यमंत्री ने बजट घोषणा में बाला किला और तिजारा के भर्तृहरि गुम्बद के लिए बजट स्वीकृत किया था.
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वित्तीय स्वीकृति नहीं मिलने के कारण काम शुरू नहीं हो पा रहा था, लेकिन अब वित्तीय स्वीकृति मिल चुकी है. एक कंपनी को काम का ठेका दिया गया है. जल्द ही काम शुरू होने की उम्मीद जताई जा रही है. अलवर को 52 किलो का गढ़ कहा जाता है. इन्हीं में एक है अलवर का बाला किला. बाला किला को कुंवारा किला भी कहा जाता है क्योंकि इस किले पर कभी भी युद्ध में हार जीत नहीं हुई. बाला किला 1960 फीट की ऊंचाई पर बना हुआ है. इसके मध्य स्थल पर विशाल गुंबद बने हुए हैं. किले में 15 फुट जैसा 52 अर्धचंद्राकार गुम्बद है.
किले की द्वितीय रक्षा पंक्ति में आठ विशाल बुर्ज बने हुए हैं. इतिहासकार बताते हैं कि अलवर के बाला किला पर 1527 में मुगल बादशाह बाबर आकर ठहरे थे. अलवर का बाला किला सारिस्का का बफर जोन में आता है. इसके चलते पिछले 2 साल से यहां पर सफाई की सुविधा भी पर्यटकों के लिए शुरू की गई है. इससे पर्यटकों की संख्या में इजाफा हुआ है. किले का अंदर का भाग पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के पास है.
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सारिस्का का रेंज में होने के कारण वन विभाग का भी स्वागत है. तिजारा के भर्तहरि गुंबद में इसी तरह से 35 लाख का काम होगा. अलवर जिले के तिजारा स्थित भर्तृहरि गुंबद में पुरातत्व संग्रहालय विभाग की ओर से यह कार्य कराया जाएगा. यहां उज्जैन के महाराज भर्तृहरि आकर ठहरे थे. यहां से होते हुए वे अलवर के सरिस्का स्थित जंगलों में पहुंचे, जहां उन्होंने तपस्या की और समाधि ली. इसलिए यह स्थान पर्यटक के लिए खास है.