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कोरोना संक्रमण ने किया 'अपनों' से दूर, दाह संस्कार भी दूसरों के हाथ...नगर परिषदकर्मी निभा रहे घरवालों का फर्ज - Family are not cremated

कहते हैं पुत्र के हाथों अंतिम संस्कार हो तो माता-पिता को मोक्ष मिलता है, लेकिन कोरोना संक्रमण के इस दौर में कितने बदनसीब ऐसे रहे जिन्हें ये भी नसीब नहीं हो सका. संक्रमण के चलते कुछ को शव नहीं दिए गए तो कुछ ने संक्रमित होने के भय से खुद ही शव नहीं लिए. ऐसे में नगर परिषद कर्मी ही शवों का अंतिम संस्कार कर पुत्र, भाई और पिता का फर्ज निभा रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर.

कोरोना संक्रमण में अंतिम संस्कार , अलवर कोरोना से मौत , Funeral in corona infection,  City council workers are cremated
नगर परिषद कर्मी कर रहे दाह संस्कार
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Published : May 11, 2021, 8:05 PM IST

अलवर. कहते हैं जीवन के अंतिम समय में अपनों का साथ जरूरी होता है. मृत्यु के बाद पुत्र-पिता या परिवार के लोग ही अंतिम संस्कार करते हैं. लेकिन वक्त का तकाजा देखिए कोरोना संक्रमण ने अंतिम समय लोगों को अपनों से ही दूर कर दिया है. कोरोना की भयावह स्थिति के चलते मृत्यु के बाद लोग परिजनों का शव लेने तक नहीं आ रहे हैं. ऐसे में अलवर नगर परिषद के कर्मचारी एक बेटे और पिता की जिम्मेदारी निभा रहे हैं.

नगर परिषद कर्मी कर रहे दाह संस्कार

कोरोना से मौत के बाद कोरोना गाइड लाइन की पालना के साथ हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्मों के लोगों की अंतिम संस्कार प्रक्रिया कर रहे हैं. सावधानी रखते हुए कर्मचारी समाज के रीति रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार करवाकर एक मिसाल कायम कर रहे हैं.

पढ़ें: Special: झालावाड़ को मिली 168 लाख के ऑक्सीजन प्लान्ट एवं स्टोरेज टैंक की सौगात, ऑक्सीजन की कमी होगी दूर

अलवर में कोरोना का संक्रमण कई गुना तेजी से फैल रहा है. संक्रमण के साथ ही कोरोना से मरने वालों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है. कोरोना संक्रमित मरीज की मौत के बाद उसके अंतिम संस्कार की अलग गाइड लाइन बनाई गई है. अस्पताल प्रशासन शव को प्लास्टिक के बैग में पैक करके देते हैं. उसके बाद पीपीई किट पहनकर पुलिस व प्रशासन की मौजूदगी में परिजन व नगर परिषद के कर्मचारी अंतिम संस्कार कराते हैं.

नगर परिषद कर्मी सभी धर्मों के व्यक्ति का उसी के अनुसार दाह संस्कार कराते हैं. मृतकों के रीति रिवाज का खास ध्यान रखा जाता है. वैसे तो अंतिम संस्कार की प्रक्रिया बेटा, पिता, भाई करते हैं, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण अंतिम समय में परिजन भी दूरी बना ले रहे हैं. ऐसे में अलवर नगर परिषद के कर्मचारी ही घर वालों का फर्ज पूरा कर रहे हैं.

पढ़ें: Special: मददगार बनी युवाओं की 'हेल्प भीलवाड़ा', ऑक्सीजन सिलेंडर, दवा सहित भोजन जरुरतमंदों तक पहुंचा रहे

24 कर्मचारियों की टीम कार्यरत

नगर परिषद की टीम में कुल 24 कर्मचारी हैं जो 2 पारियों में काम कर रहे हैं. सभी कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए प्रोटोकॉल के अनुसार अंतिम संस्कार करवा रहे हैं. इतना ही नहीं, जिन लोगों के बच्चे विदेश में रहते हैं और परिवार के लोगों की यहां मौत हो जा रही है. उन लोगों का रिति रवाज से अंतिम संस्कार करने के साथ ही अस्थियां भी कर्मचारी सुरक्षित रख रहे हैं.

नगर परिषद के कर्मचारियों ने बताया कि वैसे तो सरकार की तरफ से उनको यह जिम्मेदारी दी गई है, लेकिन उसे वो मानवता के नाते पूरी इमानदारी के साथ कर रहे हैं. किसी भी तरह के काम में लापरवाही नहीं बरती जाती है. हर धर्म के व्यक्ति के अंतिम संस्कार के लिए पादरी, मौलवी व पंडित को भी बुलाया जाता है.

पढ़ें: SPECIAL : इंदिरा रसोई अस्पतालों में भर्ती कोरोना मरीजों को निशुल्क करा रही भोजन...दानदाता 20 रुपए में ले सकते हैं फूड पैकेट

नगर परिषद के एईएन राजकुमार सैनी ने बताया कि इस महामारी में हर धर्म के लोगों का अंतिम संस्कार नगर परिषद के कर्मी कर रहे हैं.अब तक उनकी टीम 99 लोगों का अंतिम संस्कार करवा चुकी है. पहली बार इसाई धर्म के व्यक्ति का अंतिम संस्कार भी करवाया. इसके लिए पादरी को भी बुलाना पड़ा और उनसे आवश्यक जानकारी ली गई ताकि धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार हो सके.

टीम ने कब्रिस्तान में किया अंतिम संस्कार

अलवर शहर के शांतिकुंज स्थित कब्रिस्तान में शुक्रवार को बड़ा उदाहरण देखने को मिला. यहां इसाई धर्म के व्यक्ति की मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार करने नगर परिषद की टीम पहुंची. इस टीम में अधिकारी से लेकर सफाईकर्मी सभी हिन्दू थे जिन्होंने पहले ईसाई धर्म के जानकारों से अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को समझा. इसके बाद उसी के अनुरूप केरल के निवासी मृतक पुष्पराज काे दफनाया. उनकी कोरोना संक्रमण से घर पर ही मौत हो गई थी. परिवार से उसका बेटा ही आ सका था. यह परिवार फिलहाल अलवर के अम्बेडकर नगर में है.

शव ले जाने को दो एंबुलेंस

कोरोना संक्रमण से मौत होने पर शवों का अंतिम संस्कार करने का जिम्मा नगर परिषद के कर्मचारियों को दिया गया है. उसके लिए अलग से टीम बनाई गई है. उनकाे सूचना मिलते ही वह मृतक का शव लेने जाते हैं और शव लेकर श्मशान घाट ले जाकर कोविड नियमों के तहत अंतिम संस्कार करते हैं. इसके लिए दो एंबुलेंस और 24 कर्मचारी लगाए गए हैं. अकेले अलवर शहर में उनकी टीम आठ से 9 लोगों का रोज अंतिम संस्कार कर रही है. एक शिफ्ट में 12 कर्मचारी काम करते हैं. 1 दिन ड्यूटी करने के बाद उनको 1 दिन का रेस्ट दिया जाता है.

अलवर. कहते हैं जीवन के अंतिम समय में अपनों का साथ जरूरी होता है. मृत्यु के बाद पुत्र-पिता या परिवार के लोग ही अंतिम संस्कार करते हैं. लेकिन वक्त का तकाजा देखिए कोरोना संक्रमण ने अंतिम समय लोगों को अपनों से ही दूर कर दिया है. कोरोना की भयावह स्थिति के चलते मृत्यु के बाद लोग परिजनों का शव लेने तक नहीं आ रहे हैं. ऐसे में अलवर नगर परिषद के कर्मचारी एक बेटे और पिता की जिम्मेदारी निभा रहे हैं.

नगर परिषद कर्मी कर रहे दाह संस्कार

कोरोना से मौत के बाद कोरोना गाइड लाइन की पालना के साथ हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्मों के लोगों की अंतिम संस्कार प्रक्रिया कर रहे हैं. सावधानी रखते हुए कर्मचारी समाज के रीति रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार करवाकर एक मिसाल कायम कर रहे हैं.

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अलवर में कोरोना का संक्रमण कई गुना तेजी से फैल रहा है. संक्रमण के साथ ही कोरोना से मरने वालों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है. कोरोना संक्रमित मरीज की मौत के बाद उसके अंतिम संस्कार की अलग गाइड लाइन बनाई गई है. अस्पताल प्रशासन शव को प्लास्टिक के बैग में पैक करके देते हैं. उसके बाद पीपीई किट पहनकर पुलिस व प्रशासन की मौजूदगी में परिजन व नगर परिषद के कर्मचारी अंतिम संस्कार कराते हैं.

नगर परिषद कर्मी सभी धर्मों के व्यक्ति का उसी के अनुसार दाह संस्कार कराते हैं. मृतकों के रीति रिवाज का खास ध्यान रखा जाता है. वैसे तो अंतिम संस्कार की प्रक्रिया बेटा, पिता, भाई करते हैं, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण अंतिम समय में परिजन भी दूरी बना ले रहे हैं. ऐसे में अलवर नगर परिषद के कर्मचारी ही घर वालों का फर्ज पूरा कर रहे हैं.

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24 कर्मचारियों की टीम कार्यरत

नगर परिषद की टीम में कुल 24 कर्मचारी हैं जो 2 पारियों में काम कर रहे हैं. सभी कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए प्रोटोकॉल के अनुसार अंतिम संस्कार करवा रहे हैं. इतना ही नहीं, जिन लोगों के बच्चे विदेश में रहते हैं और परिवार के लोगों की यहां मौत हो जा रही है. उन लोगों का रिति रवाज से अंतिम संस्कार करने के साथ ही अस्थियां भी कर्मचारी सुरक्षित रख रहे हैं.

नगर परिषद के कर्मचारियों ने बताया कि वैसे तो सरकार की तरफ से उनको यह जिम्मेदारी दी गई है, लेकिन उसे वो मानवता के नाते पूरी इमानदारी के साथ कर रहे हैं. किसी भी तरह के काम में लापरवाही नहीं बरती जाती है. हर धर्म के व्यक्ति के अंतिम संस्कार के लिए पादरी, मौलवी व पंडित को भी बुलाया जाता है.

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नगर परिषद के एईएन राजकुमार सैनी ने बताया कि इस महामारी में हर धर्म के लोगों का अंतिम संस्कार नगर परिषद के कर्मी कर रहे हैं.अब तक उनकी टीम 99 लोगों का अंतिम संस्कार करवा चुकी है. पहली बार इसाई धर्म के व्यक्ति का अंतिम संस्कार भी करवाया. इसके लिए पादरी को भी बुलाना पड़ा और उनसे आवश्यक जानकारी ली गई ताकि धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार हो सके.

टीम ने कब्रिस्तान में किया अंतिम संस्कार

अलवर शहर के शांतिकुंज स्थित कब्रिस्तान में शुक्रवार को बड़ा उदाहरण देखने को मिला. यहां इसाई धर्म के व्यक्ति की मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार करने नगर परिषद की टीम पहुंची. इस टीम में अधिकारी से लेकर सफाईकर्मी सभी हिन्दू थे जिन्होंने पहले ईसाई धर्म के जानकारों से अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को समझा. इसके बाद उसी के अनुरूप केरल के निवासी मृतक पुष्पराज काे दफनाया. उनकी कोरोना संक्रमण से घर पर ही मौत हो गई थी. परिवार से उसका बेटा ही आ सका था. यह परिवार फिलहाल अलवर के अम्बेडकर नगर में है.

शव ले जाने को दो एंबुलेंस

कोरोना संक्रमण से मौत होने पर शवों का अंतिम संस्कार करने का जिम्मा नगर परिषद के कर्मचारियों को दिया गया है. उसके लिए अलग से टीम बनाई गई है. उनकाे सूचना मिलते ही वह मृतक का शव लेने जाते हैं और शव लेकर श्मशान घाट ले जाकर कोविड नियमों के तहत अंतिम संस्कार करते हैं. इसके लिए दो एंबुलेंस और 24 कर्मचारी लगाए गए हैं. अकेले अलवर शहर में उनकी टीम आठ से 9 लोगों का रोज अंतिम संस्कार कर रही है. एक शिफ्ट में 12 कर्मचारी काम करते हैं. 1 दिन ड्यूटी करने के बाद उनको 1 दिन का रेस्ट दिया जाता है.

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