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मुए मुबारक के नाम से जानी जाती है अजमेर की यह मस्जिद, साल में एक बार होती है जियारत

अजमेर की कचहरी रोड स्थित मस्जिद को मुए मुबारक मस्जिद के नाम से जाना जाता है. बारावफात के बाद आने वाले जुमे से इस मस्जिद में मुए मुबारक (सिर का बाल) की जियारत करवाई जा रही (ziyarat of Mu A Mubarak Masjid in Ajmer) है. बता दें कि यह साल में एक बार होती है. पढ़िए ये रिपोर्ट...

Ziyarat of Mu A Mubarak Masjid in Ajmer begins, it held once in a year
मुए मुबारक के नाम से जानी जाती है अजमेर की यह मस्जिद, साल में एक बार होती है जियारत
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Published : Oct 16, 2022, 8:24 PM IST

अजमेर. दुनिया में कई लोगों के पास पैगम्बर मोहम्मद साहब के मुए मुबारक (सिर का बाल) हैं. इनमें से एक मुए मुबारक अजमेर की कचहरी रोड स्थित मस्जिद में भी है. खास बात यह है कि मस्जिद में मुए मुबारक आने के बाद से ही कचहरी रोड मस्जिद का नाम मस्जिद मुए मुबारक के नाम से जाने जानी लगी है. बारावफात के बाद आने वाले जुमे से मस्जिद में मुए मुबारक की जियारत करवाई जा रही (ziyarat of Mu A Mubarak Masjid in Ajmer) है. जियारत के लिए बड़ी संख्या में अकीदतमंद उमड़ रहे हैं.

पैगम्बर मोहम्मद साहब के मुए मुबारक को लेकर लोगों में गहरी आस्था है. देश और दुनिया में कई लोगों के पास मुए मुबारक है, जो उन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी हासिल हुए हैं. अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में अकबरी मस्जिद में भी मुए मुबारक है. वहीं दरगाह में ही हुजरा नम्बर छह में भी फकरू मियां के पास मुए मुबारक है. इसी तरह कलेक्ट्रेट परिसर के पीछे कचहरी रोड स्थित मस्जिद में भी पैगंबर मोहम्मद साहब के मुए मुबारक मौजूद है. साथ ही अहलेबेत (खानदान) का मुए मुबारक भी मस्जिद में है. 28 मार्च, 2008 को हैदराबाद निवासी अब्दुल रशीद नक्शबंदी ने मुए मुबारक भेंट किया था.

अजमेर की मुए मुबारक मस्जिद

पढ़ें: अजमेर मुए मुबारक मस्जिद में मुए मुबारक की कराई गई जियारत

दरगाह में सज्जादानशीन सैयद गयासुद्दीन चिश्ती बताते हैं कि अब्दुल रशीद नक्शबंदी अजमेर आए थे. तब उनसे आग्रह किया गया था कि उनके पास मौजूद पैगंबर मोहम्मद साहब के अनेक मुए मुबारक में से एक मस्जिद को भेंट करें. 2008 में वह खुद अजमेर आए और मस्जिद में मुआयना करने के बाद उन्होंने मुए मुबारक भेंट किया. तब पहली बार अजमेर में लोगों ने मुए मुबारक की मस्जिद में जियारत की थी. तब से मस्जिद का नया नाम मुए मुबारक हो गया. चिश्ती बताते हैं कि लोगों में विश्वास है कि मस्जिद में नमाज अदा करने से उनकी दुआएं कबूल होती हैं.

पढ़ें: अजमेरः ईद मिलादुन्नबी के मौके पर की गई मुए-मुबारक जियारत

अहलेबेत का मुए मुबारक: उन्होंने बताया कि 31 दिसंबर, 2015 को मदीने शरीफ से विकार मोहियुद्दीन ने अहलेबेत (खानदान) का मुए मुबारक (दाढ़ी का बाल) मस्जिद को भेंट किया. दरगाह में सज्जादानशीन सैयद गयासुद्दीन चिश्ती ने बताया कि मस्जिद में बारावफात के अगले जुम्मे के दिन मुए मुबारक की जियारत आवाम को करवाई जाती है. लोगों में मुए मुबारक को लेकर गहरी आस्था है.

पढ़ें: अजमेर: मस्जिदों और दरगाह में नहीं अदा की गई जुम्मे की नमाज, मस्जिदों के बाहर नजर आए बोर्ड

कई देशों में हैं मुए मुबारक: चिश्ती ने बताया कि दुनिया में कई देशों में मुए मुबारक मिल जाते हैं. तुर्की, अरब, भारत में खासकर हैदराबाद में कई लोगों के पास मुए मुबारक हैं. चिश्ती बताते हैं कि पैगम्बर मोहम्मद साहब ने आखरी हज किया था. हज से पहले सिर और दाढ़ी के बाल उतरवाए जाते हैं. पैगम्बर मोहम्मद साहब के मुए मुबारक उस वक्त उनके साथ मौजूद अनुयायियों (सहाबा) ने आपस में बांट लिए. मान्यता है कि मुए मुबारक के बढ़ने और इसकी शाखाएं बढ़ने से यह दुनिया में कई लोगों तक पहुंच गया.

अजमेर. दुनिया में कई लोगों के पास पैगम्बर मोहम्मद साहब के मुए मुबारक (सिर का बाल) हैं. इनमें से एक मुए मुबारक अजमेर की कचहरी रोड स्थित मस्जिद में भी है. खास बात यह है कि मस्जिद में मुए मुबारक आने के बाद से ही कचहरी रोड मस्जिद का नाम मस्जिद मुए मुबारक के नाम से जाने जानी लगी है. बारावफात के बाद आने वाले जुमे से मस्जिद में मुए मुबारक की जियारत करवाई जा रही (ziyarat of Mu A Mubarak Masjid in Ajmer) है. जियारत के लिए बड़ी संख्या में अकीदतमंद उमड़ रहे हैं.

पैगम्बर मोहम्मद साहब के मुए मुबारक को लेकर लोगों में गहरी आस्था है. देश और दुनिया में कई लोगों के पास मुए मुबारक है, जो उन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी हासिल हुए हैं. अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में अकबरी मस्जिद में भी मुए मुबारक है. वहीं दरगाह में ही हुजरा नम्बर छह में भी फकरू मियां के पास मुए मुबारक है. इसी तरह कलेक्ट्रेट परिसर के पीछे कचहरी रोड स्थित मस्जिद में भी पैगंबर मोहम्मद साहब के मुए मुबारक मौजूद है. साथ ही अहलेबेत (खानदान) का मुए मुबारक भी मस्जिद में है. 28 मार्च, 2008 को हैदराबाद निवासी अब्दुल रशीद नक्शबंदी ने मुए मुबारक भेंट किया था.

अजमेर की मुए मुबारक मस्जिद

पढ़ें: अजमेर मुए मुबारक मस्जिद में मुए मुबारक की कराई गई जियारत

दरगाह में सज्जादानशीन सैयद गयासुद्दीन चिश्ती बताते हैं कि अब्दुल रशीद नक्शबंदी अजमेर आए थे. तब उनसे आग्रह किया गया था कि उनके पास मौजूद पैगंबर मोहम्मद साहब के अनेक मुए मुबारक में से एक मस्जिद को भेंट करें. 2008 में वह खुद अजमेर आए और मस्जिद में मुआयना करने के बाद उन्होंने मुए मुबारक भेंट किया. तब पहली बार अजमेर में लोगों ने मुए मुबारक की मस्जिद में जियारत की थी. तब से मस्जिद का नया नाम मुए मुबारक हो गया. चिश्ती बताते हैं कि लोगों में विश्वास है कि मस्जिद में नमाज अदा करने से उनकी दुआएं कबूल होती हैं.

पढ़ें: अजमेरः ईद मिलादुन्नबी के मौके पर की गई मुए-मुबारक जियारत

अहलेबेत का मुए मुबारक: उन्होंने बताया कि 31 दिसंबर, 2015 को मदीने शरीफ से विकार मोहियुद्दीन ने अहलेबेत (खानदान) का मुए मुबारक (दाढ़ी का बाल) मस्जिद को भेंट किया. दरगाह में सज्जादानशीन सैयद गयासुद्दीन चिश्ती ने बताया कि मस्जिद में बारावफात के अगले जुम्मे के दिन मुए मुबारक की जियारत आवाम को करवाई जाती है. लोगों में मुए मुबारक को लेकर गहरी आस्था है.

पढ़ें: अजमेर: मस्जिदों और दरगाह में नहीं अदा की गई जुम्मे की नमाज, मस्जिदों के बाहर नजर आए बोर्ड

कई देशों में हैं मुए मुबारक: चिश्ती ने बताया कि दुनिया में कई देशों में मुए मुबारक मिल जाते हैं. तुर्की, अरब, भारत में खासकर हैदराबाद में कई लोगों के पास मुए मुबारक हैं. चिश्ती बताते हैं कि पैगम्बर मोहम्मद साहब ने आखरी हज किया था. हज से पहले सिर और दाढ़ी के बाल उतरवाए जाते हैं. पैगम्बर मोहम्मद साहब के मुए मुबारक उस वक्त उनके साथ मौजूद अनुयायियों (सहाबा) ने आपस में बांट लिए. मान्यता है कि मुए मुबारक के बढ़ने और इसकी शाखाएं बढ़ने से यह दुनिया में कई लोगों तक पहुंच गया.

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