अजमेर. ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर जो भी जायरीन जियारत करने पहुंचता है तो यहां पर बनी ऐतिहासिक आनासागर झील में वजू करना नहीं भूलता. यही कारण है कि ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के साथ-साथ आना सागर के राम प्रसाद घाट पर जायरीनों का जमावड़ा बना रहता है. धार्मिक मान्यता है कि आनासागर झील में हुजूर गरीब नवाज जब पहली बार अजमेर आए तो उन्होंने यही वजू किया जिस कारण इस आनासागर झील का पानी मुस्लिम लोगों के लिए मदीने के आबे जमजम के नाम से मशहूर है.
आनासागर झील को पृथ्वीराज चौहान के पिता महाराजा अर्णोराज चौहान ने अजमेर के निवासियों के लिए बनवाया था. आज से करीब 800 साल पहले जब गरीब नवाज अजमेर आए तब उन्होंने इसी आनासागर झील के पास ऊंची पहाड़ी पर अपना आशियाना बनाया. जिसे आज ख्वाजा गरीब नवाज के चिल्ले के नाम से जाना जाता है.
सूख गया आनासागर
धार्मिक मान्यता है कि जब ख्वाजा गरीब नवाज पहली बार आए तो फकीरी वेश में आने के कारण यहां के लोगों ने गरीब नवाज को इस तालाब से पानी भरने के लिए मना कर दिया, तब गरीब नवाज ने अपने शिष्यों को अपने कमंडल देकर यहां पानी लाने के लिएभेजा था. गरीब नवाज के करम से पुरा आनासागर उनके कमंडल में समा गया और आनासागर पूरी तरह से सूख गया, जैसे ही महाराज अर्णोराज को यह पता पड़ा तो उन्होंने अपने सैनिकों से पूछा, तब वह फकीर के वेश में पहुंचे ख्वाजा गरीब नवाज के पास पहुंचे और उनसे क्षमा मांगी.
जिसके बाद ख्वाजा गरीब नवाज ने एक बार फिर अपने कमंडल से आनासागर को लबालब भर दिया. जिसके बाद गरीब नवाज भी नमाज अदा करने से पहले इसी झील में वजू किया करते थे और बस यही कारण है कि जो भी जायरीन अजमेर ख्वाजा गरीब नवाज के दर पर आता है वह झील में स्नान करना नहीं भूलता है. यहां तक कि झील से पानी भरकर जायरीन अपने घरों में ले जाते हैं. जायरीनों का मानना है कि वह पानी उनके लिए काफी महत्वपूर्ण और लाभदायक है.
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कहते हैं कि ख्वाजा गरीब नवाज भी आनासागर झील के राम प्रसाद घाट पर बैठकर घंटों इबादत में लीन रहते थे और यहीं से अपने चिल्ले की ओर जाते थे. इसी के चलते अजमेर आने वाले जायरीन भी इस घाट पर सबसे ज्यादा स्नान करते हैं. जायरीनों का आलम है कि वह झील के पानी की तुलना "आबे जमजम "से कर रहे हैं और इस आना सागर में नहाने वाले जायरीनों का मानना है इस पानी से उनके दुख और तकलीफ भी दूर होते हैं और उनके घरों में बरकत भी आती है.