अजमेर. राजस्थान में हर साल लाखों पर्यटक आते हैं. यहां की संस्कृति, स्थापत्य कला और मंदिर, किले बावड़ियां दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं. प्रदेश की धार्मिक नगरी कहे जाने वाले अजमेर का जैन धर्म से काफी गहरा जुड़ाव है. यहां के कुछ मंदिर अपनी स्थापत्य कला के लिए दुनिया में प्रसिद्ध हैं. इन्हीं में से एक है सोनी जी की नसिया. यह मंदिर जैन धर्म के पहले तीर्थंकर को समर्पित है. सोनी जी की नसिया अजमेर शहर में आगरा गेट के पास में स्थित है. इसे सिद्धकूट चैत्यालय और 'लाल मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है.
सोनी जी की नसिया मंदिर का मुख्य आकर्षण इसका मुख्य कक्ष है. जिसे स्वर्णिम अयोध्या या सोने के शहर के नाम से भी जाना जाता है. जो जैन धर्म के संस्करण में ब्रह्मांड के सबसे आश्चर्यजनक वास्तुकला कृतियों में से एक है. इस मंदिर में सोने की लकड़ी की आकृतियां बनी हुई हैं, जो कि जैन धर्म की कई आकर्तियों को भी दर्शाती हैं. सोनी जी की नसिया का निर्माण 10 अक्टूबर 1864 को राय बहादुर सेठ मूलचंद नेमीचंद सोनी ने करवाया था. 26 मई 1865 को गर्भ गृह में 'अग्नि देव' की छवि के साथ मंदिर शिष्यों के लिए खोला गया था.
मुगलकालिन राजपूत शैली की छाप...
सेठ मूलचंद सोनी के पड़पोते प्रमोद सोनी ने बताया कि स्वर्णिम अयोध्या की बनावट मुगल काल की राजपूत शैली के अनुसार की गई है. स्वर्णिम अयोध्या के निर्माण में 25 साल लगे थे. इसे 1871 में शुरू किया था, जो 1896 में बनकर तैयार हुआ. इसे जयपुर के अलबर्ट हॉल में बनाया गया था. स्वर्णिम अयोध्या की एग्जीबिशन में तत्कालीन जयपुर के महाराज भी पहुंचे थे. जिसके बाद स्वर्णिम अयोध्या को जयपुर से अजमेर के सोनी जी की नसियां में स्थापित किया गया. स्वर्णिम अयोध्या जयपुर के सिटी पैलेस की तर्ज पर बनाई गई है. इसमें राजा का महल, रानी का महल, राजदरबार का निर्माण किया गया है. यह पहली और आखिरी अयोध्या नगरी है. प्रमोद सोनी ने बताया कि जैन शास्त्रों में जिस तरह की अयोध्या नगरी की कल्पना की गई है. उसी तर्ज पर इसको बनाया गया है.
इंटीरियर डिजायनिंग में दुनियाभर की स्थापत्य कला की छाप...
मंदिर के भीतरी कक्ष की छतों को चांदी की गेंदों से सजाया गया है. वहीं, इंटीरियर को बेल्जियम के स्टेन ग्लास, मिनरल कलर पेंटिंग और स्टेन ग्लासवर्क से सजाया गया है. परिसर के बीच में एक 82 फीट ऊंचा स्तंभ भी बना हुआ है. जिसे मानस्तंभ कहा जाता है. सफेद संगमरमर के स्तंभ पर उत्कीर्ण जैन तीर्थंकरों के चित्रों को कलात्मक तरीके से डिजाइन किया गया है. इसका निर्माण चेक भागचंद धोनी ने करवाया था. इसके निर्माण में कुल 250 कारीगरों ने बहुत ही बारीकी से सोने का काम किया था. इस दौरान कुल 1000 किलो सोने, पीतल, तांबे का प्रयोग भी किया गया. इसमें अयोध्या के स्थाई रूप में जिसमें हाथी घोड़े वाली सेना, सुमेरू पर्वत, एरवात पर राजा की सवारी की खूबसूरती को भी दर्शाया गया है, वहीं, मान्यता है कि सभी तीर्थंकर अयोध्या नगरी में ही जन्मे थे और इसी कारण जैन धर्म में अयोध्या से जुड़ाव को स्वर्ण नगरी के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है.
करौली के लाल पत्थरों से हुआ है मंदिर का निर्माण...
मंदिर का प्राचीन नाम सिद्धकूट चैत्यालय है. मंदिर का निर्माण करौली से लाए लाल पत्थर से किया गया, इसलिए इसे लाल मंदिर भी कहा जाता है. इसमें एक विशाल प्रवेश द्वार है, जिसे गोपुरम कहते हैं. वहीं, मंदिर को दो भागों में विभाजित किया गया है. मंदिर का एक हिस्सा पूजा क्षेत्र है, जिसमें भगवान आदिनाथ व ऋषभदेव की मूर्ति स्थापित है. जबकि दूसरे हिस्से में एक संग्रहालय है. संग्रहालय के इंटीरियर में भगवान आदिनाथ के जीवन के पांच चरणों (पंचकल्याणक) को दर्शाया गया है. यह मंदिर समृद्ध वास्तुकला तकनीक का एक बेजोड़ उदाहरण है.