अजमेर. कोरोना महामारी से बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन में फुटवियर व्यापार को भी भारी नुकसान हुआ है. अकेले अजमेर में ही इस कार्य से जुड़े करीब साढ़े चार हजार परिवारों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. पीढ़ियां से इस कार्य से जुड़े श्रमिक लॉकडाउन में बेरोजगार हो गए हैं. हालात यह है की लॉकडाउन में छूट के बाद भी घर चलाने तक के पैसे कामगारों के पास नहीं हैं.
अजमेर में बड़े पैमाने पर फुटवियर का काम होता है. इनमें मोजड़ी निर्माण का कार्य जींगर समाज के लोग रियासत काल से परंपरागत रूप से कई पीढ़ियों से करते आ रहे हैं. अजमेर में जूती और चर्म कशीदा और हस्तशिल्प दस्तकारी करने वाले जिले में करीब 1300 परिवार हैं. जो परंपरागत शेरवानी जूतियां, मोजड़ी, कशीदा मोजड़ी, नागरा जूती (पहली बार बच्चों को जूती पहनाई जाती है), महिलाओं के लिए पगरकिया और पुरुष और महिलाओं के लिए चप्पल और सैंडल बनाए जाते हैं.
इसके अलावा डिजाइनर जूती, चप्पल भी मांग के अनुसार तैयार की जाती है. अजमेर धार्मिक और पर्यटन नगरी है. यहां आने वाले पर्यटकों के लिए परंपरागत मोजड़ी और चप्पलें हमेशा से आकर्षण का केंद्र रही है. स्थानीय लोग ही नहीं बल्कि परंपरागत मोजड़ी के शौकीन पर्यटकों की खरीद से यह व्यवसाय मॉर्डन फुटवियर के जमाने में भी खड़ा है.
लॉकडाउन से हुआ नुकसानः
कोरोना महामारी और फिर लगे लॉकडाउन की वजह से मोजड़ी व्यवसाय को भारी नुकसान हुआ है. इस परंपरागत कार्य में जुटे 1300 परिवारों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है. इनके पास घर और दुकान का किराया, परिवार का पोषण, बच्चों की फीस, बैंक लोन की किश्त चुकाने तक के पैसे नहीं हैं. मोजड़ी कारोबार से जुड़े हीरा लाल जींगर बताते हैं कि जींगर समाज की ओर सीएम अशोक गहलोत के नाम कलेक्टर से सहायता के लिए फरियाद भी की गई है. इसमें बिना ब्याज के ऋण उपलब्ध करवाने, 4 महीने का बिजली का बिल माफ करने और पूर्व में प्राप्त बकाया ऋण माफ करने की मांग की गई है.
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इस व्यवसाय से जुड़े लोग बाजार से कच्चा माल खरीद कर घरों में ही फुटवियर बनाते हैं. इनमें भी 3 हजार के करीब कामगार हैं जिन्हें हर दिन काम के पैसे मिलते हैं. लॉकडाउन में कामगारों को बेरोजगारी में दिन बिताने पड़ रहे हैं. काम बंद होने से परिवार का पालन पोषण दूभर हो गया है. फुटवियर कारोबार से जुड़े घनश्याम खत्री ने बताया कि लॉकडाउन में फुटवियर की बिक्री बंद हो गई है. मजदूरों को मजदूरी देने के लिए पैसे नहीं रहे. वहीं परिवार का पेट पालना भी मुश्किल हो गया है.
फुटवियर व्यावयाय से जुड़े लोगों का यह पुश्तैनी काम है. इसके अलावा इनके पास आय का कोई साधन नहीं है. 10-12 मजदूर के साथ कच्चे माल से चप्पल बनाने का काम करते हैं. हालात यह है कि लॉकडाउन में व्यवसाय की छूट मिलने के बाद भी पहले से तैयार माल नहीं बिक रहा है. कोरोना ने कामगारों के रोजगार पर भारी मार की है. फुटवियर कार्य से जुड़े घनश्याम सबलानिया ने बताया कि इस व्यवसाय में कच्चा माल उधार पर लिया जाता है और हर एक माल की बिक्री होने पर भुगतान किया जाता है. इसी तरह से इस कारोबार का रोटेशन चलता है.
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व्यवसायियों ने बताया कि लॉकडाउन से पहले कच्चा माल तो ले लिया, लेकिन लेनदार अब पैसों का तकाजा कर रहें हैं. सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली है. वहीं अब व्यवसायी सरकार से फरियाद कर रहे हैं की आर्थिक संकट से जूझ रहे फुटवियर व्यवसाय से जुड़े कामगारों को आर्थिक मदद दी जाए. मोजड़ी निर्माण के परंपरागत कार्य और फुटवियर बनाने के काम से जुड़े साढ़े चार हजार कामगार लॉकडाउन 5 में मिली छूट के बाद भी बेरोजगार हैं. बिक्री नहीं होने से कारोबार रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है इस कारण कामगारों के हाथ खाली के खाली हैं.