अजमेर. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 10 दिसंबर 2018 में म्यांमार यात्रा के दौरान अजमेर में निर्मित चादर बहादुर शाह जफर की मजार पर पेश की थी. अजमेर में बनी चादर रंगून में बेहद पसंद की गई. इस बार भी अजमेर से ही चादर भेजने के लिए विशेष आग्रह किया गया है. बहादुर शाह जफर की मजार के उर्स सेलिब्रेशन कमेटी के चेयरमैन अलहाज ने ये विशेष आग्रह किया था. लिहाजा चादर को राजस्थानी टच देते हुए बनवाया गया है.
जिला कलेक्टर विश्व मोहन शर्मा ने बताया कि यह अजमेर के लिए गर्व की बात है कि यहां से दूसरी बार चादर बहादुर शाह जफर की मजार पर जा रही है. वहीं दरगाह कमेटी के नाजिम शकील अहमद ने बताया कि बहादुर शाह जफर की मजार पर पेश की जाने वाली चादर शनिवार को दिल्ली में विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को सौंप दी जाएगी. जहां से चादर म्यांमार भारतीय दूतावास जाएगी. वहां भारतीय दूतावास के अधिकारी 23 नवंबर को बहादुर शाह जफर के उर्स के मौके पर अजमेर से भेजी गई विशेष चादर को मजार पर पेश करेंगे.
अजमेर में चादर को तैयार करने वाले कारीगर मोहम्मद लियाकत बताते हैं कि उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी अजमेर दरगाह के लिए चादर बनाता आ रहा है. यह उनके लिए फक्र की बात है कि उनका हुनर देश के लिए काम आ रहा है. उनके द्वारा बनाई गई चादर म्यांमार के रंगून में अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की मजार पर पेश होगी. उन्होंने बताया कि इस बार तैयार की गई चादर का वजन 2 किलो 600 ग्राम है. इसमें नारंगी और नीले रंग के बनारसी सिल्क के कपड़े पर राजस्थानी बंधेज का कार्य किया गया है. चादर 6 फीट चौड़ी और 8 फीट लंबी है. चादर को सुंदर मोतियों से सजाया गया है वहीं कोनों पर गोटे का कार्य किया गया है.
बता दें कि अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी गई 1857 की जंग में अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने भी सहयोग किया था. इस कारण उन्हें अंग्रेजी हुकूमत का कोप झेलना पड़ा, बल्कि उन्हें रंगून ले जाकर कैद कर लिया गया. वही पर बहादुर शाह जफर ने अंतिम सांस ली थी. कैद में रहते हुए 7 नवंबर 1862 में बहादुर शाह जफर का निधन हो गया था. बहादुर शाह जफर शायर भी थे. उन्होंने अपने एक शेर में अपना दर्द बयां किया था.
कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में
अजमेर में तैयार की गई चादर दूसरी बार रंगून में बहादुर शाह जफर की मजार पर पेश होगी. अजमेर का म्यांमार से नए रिश्ते का यह सूत्र अब बन गया है.