अजमेर. सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती के 808वें उर्स की महफिल समां गुस्ल का सिलसिला सोमवार रात से शुरू हो गया. 'चाय' वैसे तो हर सुबह लोग चाय की चुस्की लेते हैं. कहते है दिन की शुरुआत तब तक नहीं होती, जब तक चाय नहीं पी ली जाए. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी शाही चाय के बारे में बताने जा रहे हैं. ये कोई साधारण चाय नहीं है. यह है दरगाह-ए-महफिल की 'शाही चाय'...
4 घंटे में बनकर तैयार होती है शाही चाय
यह चाय विशेष सामग्री और विशेष बर्तनों में 4 घंटे से अधिक समय में बनकर तैयार होती है. इस शाही चाय का महत्व इस बात से पता लग जाता है, कि दरगाह के महफिल खाना में दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन अली खान की सदारत में इसे तकसीम किया जाता है.
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इस चाय को बनाने के लिए 'शाही चाय कमेटी' भी बनाई गई है. महान सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के उर्स के मौके पर जारी महफिल-ए-समां में जब देश के विभिन्न हिस्सों से आए कव्वाल सूफियाना कलामों से माहौल को रूहानी बना रहे होते है, उसी वक्त मध्यरात्रि ये शाही चाय तकसीम की जाती है.
सालों से चला आ रहा शाही चाय का दौर
शाही चाय कमेटी के अध्यक्ष नईम अरमानी बताते हैं कि इस शाही चाय को बनाने का दौर सालों से चला आ रहा है. दरगाह के महफिल खाने में दीवान की सदारत में होने वाली महफिल के दौरान, जब अस्थानी शरीफ में गुस्ल की रस्म अदा करने के बाद जब दीवान वापस महफिल में लौटते हैं, तब वहां मौजूद अकीदतमंदों को शाही चाय दी जाती है.
ये मसाले बनाते हैं चाय को खास
आधी रात को तकसीम की जाने वाली शाही चाय को विशेष बर्तन और विशेष सामग्री के साथ बनाया जाता है. इस शाही चाय के बर्तन में 4 घंटे से भी अधिक समय तक चाय को पकाया जाता है. चाय बनाने में जो पानी काम में लिया जाता है, वो गरीब नवाज के डालने ढ़ालने का पानी होता है. चाय की पत्ती के साथ इलाइची, केवड़ा और केसर के मिश्रण से चाय बनाई जाती है.
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92 साल पुराना है इतिहास
जिस बर्तन में शाही चाय बनाई जाती है, उसे समाबार कहा जाता है. जो नवाब तुलखाजी अजमेरी के खानदान से जुड़े लोग बनाते है. इस खास सामग्री और खास बर्तन के जरिए बनाई जाने वाली शाही चाय का इतिहास बहुत पुराना है. साल 1928 से लगातार यह परंपरा चली आ रही है. यह और भी खास तब हो जाती है, जब चाय दरगाह दीवान को चांदी के बर्तनों में तकसीम की जाती है. इतनी शिद्दत ने बनी इस चाय का स्वाद भी लाजवाब होता है.