अजमेर. कांग्रेस पार्टी के भीतर घमासान थम नहीं रहा है. सचिन पायलट के अलग होने के बाद पार्टी की मजबूती को लेकर सवाल उठ रहे हैं. दो गुटों में बंटी कांग्रेस में पायलट के समर्थकों में असमंजस की स्थिति बरकरार है. वहीं सीएम गहलोत के समर्थक मुखर हो गए हैं. स्थिति ऐसी है कि गुटबाजी के चलते जमीनी कार्यकर्त्ता भी विचारधारा से अलग होकर दो पाटों में पिस रहा है. वर्तमान परिदृश्य में पायलट खेमे के निचले स्तर के कार्यकर्त्ताओं के हालात अब 'आपका क्या होगा जनाबे आली' सरीखे हो गए हैं.
सचिन पायलट के प्रदेश अध्यक्ष बनने के साथ ही अजमेर संभाग में दो गुट बन गए. राजस्थान की राजनीति में अशोक गहलोत पुराने खिलाड़ी हैं, ऐसे में उनके समर्थक पहले से ही जमे हुए हैं. प्रदेश की राजनीति में पायलट की एंट्री के बाद उनके सामने कांग्रेस को मजबूत करने के साथ हर जिले में अपने विश्वास पात्रों की टीम खड़ी करना चुनौती थी. पायलट ने संगठन के माध्यम से दोनों ही दिशाओं में काम किया.
अजमेर से 2 बार लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं पायलट
पायलट अजमेर से 2 बार लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं. ऐसे में दौसा के बाद अजमेर उनका कार्य क्षेत्र रहा है. अजमेर में पायलट ने अपने समर्थकों की फौज खड़ी की. प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पायलट ने अजमेर में शहर और देहात कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अपने नियुक्त किए. विधानसभा चुनाव में भी पायलट ने जिले की 8 में से 6 विधानसभा क्षेत्रों में अपने लोगों को टिकट दिलवाए. हालांकि मसूदा विधानसभा क्षेत्र से राकेश पारीक को छोड़कर अन्य को पायलट के उम्मीदवारों को सफलता नहीं मिली.
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अजमेर दक्षिण से हेमंत भाटी, अजमेर उत्तर से महेंद्र सिंह रलावता, किशनगढ़ से नंदा राम थाकन और नसीराबाद से रामनारायण गुर्जर हार गए. कांग्रेस में सियासी घमासान से कांग्रेस विचारधारा से जुड़े कार्यकर्ता राहत महसूस कर रहे हैं. दरअसल, जिस कार्यकर्ता पर किसी एक गुट का ठप्पा लग गया, फिर उस गुट के नेता के राजनैतिक उतार-चढ़ाव का असर उस पर भी पड़ता है. ऐसे में सचिन पायलट के प्रदेश अध्यक्ष रहते अजमेर में गहलोत गुट अब तक खामोश बैठा रहा था, लेकिन अब गहलोत गुट से जुड़े नेता मुखर हो गए हैं.
पायलट को लेकर क्या बोले पूर्व विधायक
पूर्व विधायक श्री गोपाल बाहेती ने कहा कि आम कार्यकर्ताओं ने सचिन पायलट से यह उम्मीद नहीं की थी कि वह सरकार को अस्थिर करेंगे. जबकि उपमुख्यमंत्री और पीसीसी अध्यक्ष रहते हुए सचिन पायलट को सरकार को बचाने का काम करना चाहिए था.
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प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर सचिन पायलट को लोकप्रियता मिली. वहीं गहलोत गुट से नाराज कार्यकर्ताओं को पायलट की सरपरस्ती में नई उम्मीद मिली. भीलवाड़ा में पूर्व केंद्रीय मंत्री सीपी जोशी की वजह से पायलट अपने जाजम नहीं बिछा पाए. यही वजह है कि भीलवाड़ा के 2 कांग्रेसी विधायक रामलाल जाट और कैलाश त्रिवेदी आज गहलोत खेमे में खड़े हैं. नागौर में 10 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस के खाते में 6 सीटें आई थी. इनमें कांग्रेस की 6 सीटों में से तीन विधायक मुकेश भाकर, रामनिवास गावरिया और चेतन डूडी पायलट समर्थक हैं.
पायलट खेमे के चेतन डूडी गहलोत खेमे में लौटे
सियासी घमासान में नागौर से चेतन डूडी गहलोत खेमे में लौट आए. जबकि मुकेश भाकर और रामनिवास गांवरिया पायलट खेमे में हैं. अजमेर से लोकसभा चुनाव हारने के बाद पायलट का मानों अजमेर से मोह भंग हो गया. यही वजह है कि विधानसभा चुनाव में पायलट ने अजमेर से चुनाव नहीं लड़कर टोंक को अपने लिए सुरक्षित समझा. पायलट टोंक से विधायक हैं. टोंक में सियासी जमीन पर पायलट ने नई पौध तैयार की. टोंक में 4 विधानसभा सीट से 4 पर पायलट ने टिकट दिए. इनमें 3 पर कांग्रेस जीती. विधायक प्रशांत बैरवा गहलोत खेमे में आ गए. जबकि विधायक हरीश मीणा पायलट खेमे में हैं.
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अजमेर शहर कांग्रेस कमेटी के पूर्व उपाध्यक्ष गुलाम मुस्तफा ने कहा कि सचिन पायलट ने संजीदगी और परिपक्वता की कमी दिखाई है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने उन्हें सब कुछ दिया है. धैर्य और संयम रखते तो उन्हें आगे और भी मौके मिल सकते थे.
कांग्रेस का घमासान बाहर से देख रही है बीजेपी
कांग्रेस में हो रहे घमासान को बीजेपी बाहर से देख रही है. हालांकि कांग्रेस का एक खेमा बीजेपी पर कांग्रेस के दूसरे खेमे को हवा देने का आरोप लगा रहा है. अजमेर देहात भाजपा अध्यक्ष बीपी सारस्वत ने कहा कि यह कांग्रेस का भीतरी कलह है, जिसे गहलोत संभाल नहीं पाए. वहीं आलाकमान को भी नहीं पता कि पार्टी कैसे चलनी चाहिए. किन लोगों को तवज्जो दी जानी चाहिए. राजस्थान में बीजेपी मजबूत विपक्ष के रूप में खड़ी है और पूरे घटनाक्रम पर निगाह रखे हुए हैं.
ऑडियो वायरल के सवाल पर उन्होंने कहा कि केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह ने स्पष्ट कर दिया है कि यह आवाज उनकी नहीं है. उन्होंने यह भी कह दिया है कि ऑडियो की जांच करवा ली जाए. सारस्वत ने कहा कि यह सभी षडयंत्र सीएम हॉउस से निकल रहे हैं. कांग्रेस में सभी की निगाहें पायलट के अगले कदम पर टिकी हुई हैं. वहीं पायलट समर्थकों की बेचैनी भी बढ़ रही है. खामोश हुए कार्यकर्ता पशोपेश की स्थिति में हैं.