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पुष्कर तीर्थ में पूर्वजों का श्राद्ध करने का है विशेष महत्व, श्री राम ने अपने पूर्वजों का किया था पुष्कर में श्राद्ध - पुष्कर तीर्थ में पूर्वजों का श्राद्ध

पुष्कर में अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने का विशेष महत्व (Shradh of ancestors in Pushkar) है. मान्यता है कि पूर्वजों की शांति के लिए यहां 7 कुलों और 5 पीढ़ियों तक का श्राद्ध किया जाता है. भगवान राम और पांडवों ने भी यहां अपने पूर्वजों का श्राद्ध किया था.

Shradh of ancestors in Pushkar, know its religious significance
पुष्कर तीर्थ में पूर्वजों का श्राद्ध करने का है विशेष महत्व, श्री राम ने अपने पूर्वजों का किया था पुष्कर में श्राद्ध
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Published : Sep 11, 2022, 12:04 AM IST

अजमेर. हिंदू सनातन धर्म में श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व है. 15 दिवसीय श्राद्ध पक्ष में लोग अपने पितृों के निमित्त तर्पण, पिंडदान और अनुष्ठान करवाते हैं. यूं तो देश में कई तीर्थ स्थलों पर पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध किये जाते हैं, लेकिन तीर्थ गुरु पुष्कर में श्राद्ध करने का विशेष महत्व (Importance of Shradh in Pushkar) है. खास बात यह है कि केवल पुष्कर में ही 7 कुलों और पांच पीढ़ियों तक के पूर्वजों की शांति के लिए श्राद्ध किए जाते हैं.

भाद्र पद शुक्ल पूर्णिमा (शनिवार) से तीर्थ गुरु पुष्कर राज में श्राद्ध के लिए श्रद्धालुओं का आना जाना शुरू हो गया है. पुष्कर के पवित्र सरोवर के 52 घाटों पर श्राद्ध कर्म करवाते हुए तीर्थ पुरोहित और श्रद्धालु नजर आने लगे हैं. मान्यता है कि पुष्कर के पवित्र सरोवर के घाट पर अपने पूर्वजों के निमित्त किए जाने वाले श्राद्धकर्म से पूर्वजों को शांति मिलती है. वहीं पितृ दोष एवं अन्य व्याधियों से भी मुक्ति मिलती है. पितरों के आशीर्वाद से घर में खुशहाली आती है. सदियों से पुष्कर तीर्थ के पवित्र सरोवर में श्राद्ध कर्म होते आए हैं. यूं तो वर्ष भर पुष्कर सरोवर के घाटों पर पितरों के निमित्त अनुष्ठान किए जाते हैं.

पढ़ें: Pitru Paksha 2022: पितृ दोष से बचने और पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध पक्ष में किस तिथि को करना चाहिए श्राद्ध, यहां जानिए

पुष्कर के तीर्थ पुरोहितों के पास देश के कोने-कोने से आने वाले श्रद्धालुओं और उनके पूर्वजों की पोथी भी होती है. जिसमें पूर्वजों के नाम होते हैं. देशभर के अलग-अलग क्षेत्रों के अलग-अलग तीर्थ पुरोहित पुष्कर में है जो अपने अपने क्षेत्रों से आने वाले श्रद्धालुओं को उनकी श्रद्धा के अनुसार श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान और पितृ शांति के लिए अनुष्ठान और पुष्कराज की पूजा अर्चना करवाते हैं. जोधपुर से आए श्रद्धालु उमेश ने बताया कि पुष्कर में श्राद्ध कर्म से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है. वहीं श्राद्ध कर्म करने वाले को पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. उन्होंने कहा कि श्राद्ध कर्म से उत्पन्न आत्मिक भाव को यहां श्राद्ध करके ही महसूस किया जा सकता है.

यहां सात कुल और 5 पीढ़ियों तक के लिए होते है श्राद्धः पुष्कर एकमात्र ऐसा तीर्थ है जहां पर 7 कुल और 5 पीढ़ियों तक के पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध किए जाते हैं. जबकि देश में अन्य तीर्थ स्थलों पर एक या दो पीढ़ी तक के पूर्वजों के लिए श्राद्ध किए जाते हैं. तीर्थ पुरोहित पंडित रूपचंद पाराशर बताते हैं कि भगवान श्रीराम ने भी पुष्कर में अपने 7 कुल और 5 पीढ़ियों के पूर्वजों का उद्धार यहां श्राद्ध करके किया था. पुष्कर जगत पिता ब्रम्हा की नगरी है. वहीं पवित्र पुष्कर सरोवर के जल को नारायण के रूप में पूजा जाता है. यहां श्रद्धा के साथ पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

पढ़ें: Shradh Paksha: श्राद्ध में गीता पाठ से मिलेगा पितृ-परमात्मा का आशीर्वाद

श्राद्ध कर्म के बाद श्रद्धालु ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें सामर्थ्य अनुसार दान भी करते हैं. उन्होंने बताया कि श्राद्ध पक्ष 25 सितंबर तक रहेंगे. मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष के दौरान सभी पितृ धरती पर अपने परिवार के बीच बिना आह्वान के पहुंचते हैं. ऐसे में यदि उनके निमित्त श्राद्ध किया जाता है तो वह प्रसन्न होते हैं. उन्होंने बताया कि 6 तीर्थों पर श्राद्ध करने का महत्व है. बद्रीनाथ में ब्रह्म कपाली होती है. मातृगया में मां का पिंड दान किया जाता है. गया में पिता का पिंड दान किया जाता है. इसके अलावा प्रयागराज में भी पिंडदान किया जाता है.

श्री राम, पांडवों ने भी किये थे यहां अपने पूर्वजों के निमित्त श्राद्धः पुष्कर स्थित गया कुंड का भी विशेष महत्व है. मान्यता है कि जो गया (बिहार) जाकर अपने पितरों का श्राद्ध नहीं कर सकता. वह पुष्कर के गया कुंड में श्राद्ध कर सकता है. पद्म पुराण के अनुसार वनवास के दौरान भगवान श्री राम ने अपने पिता दशरथ सहित सभी पूर्वजों का श्राद्ध गया कुंड में किया था. श्राद्ध कर्म के बाद भगवान श्रीराम ने ऋषि-मुनियों और ब्राह्मणों को भोजन भी करवाया था. द्वापर युग में पांडवों ने भी अपने पूर्वजों के निमित्त यहां श्राद्ध किया था. सदियों से श्रद्धालु पुष्कर में जगतपिता ब्रह्मा के दर्शनों के लिए आते रहे हैं. यहां आने पर श्रद्धालु अपने पूर्वजों के नियमित तर्पण और पिंडदान करवाना नहीं भूलते हैं. कहा जाता है कि श्राद्ध पक्ष के पखवाड़े में शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है.

पढ़ें: अनूठी परंपरा : दिवाली पर गुर्जर समाज के लोग करते हैं पूर्वजों का श्राद्ध एवं तर्पण

श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों के प्रति रखें श्रद्धा: तीर्थ पुरोहित पंडित रवि शर्मा बताते हैं कि पितृपक्ष में पूर्वजों को श्रद्धा से याद किया जाना ही श्राद्ध माना जाता है. पूर्वजों के निमित्त पिंड दान करने का मतलब है कि हम पितरों के लिए भोजन दान कर रहे हैं और तर्पण करने का अर्थ माना जाता है कि हम उन्हें जल का दान कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि श्रद्धालु तीर्थ पुरोहितों के सानिध्य में वैदिक मंत्रोच्चारण और परंपरागत रूप से सरोवर में स्नान कर अपने पूर्वजों की आत्मा शांति के लिए अलग-अलग घाटों पर तर्पण और पिंडदान करते हैं. इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाकर दान दक्षिणा दी जाती है. इससे पहले कौए, कुत्ते और गाय को भी भोजन करवाया जाता है. बता दें कि पुष्कर में 1200 से अधिक तीर्थ पुरोहित हैं.

अजमेर. हिंदू सनातन धर्म में श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व है. 15 दिवसीय श्राद्ध पक्ष में लोग अपने पितृों के निमित्त तर्पण, पिंडदान और अनुष्ठान करवाते हैं. यूं तो देश में कई तीर्थ स्थलों पर पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध किये जाते हैं, लेकिन तीर्थ गुरु पुष्कर में श्राद्ध करने का विशेष महत्व (Importance of Shradh in Pushkar) है. खास बात यह है कि केवल पुष्कर में ही 7 कुलों और पांच पीढ़ियों तक के पूर्वजों की शांति के लिए श्राद्ध किए जाते हैं.

भाद्र पद शुक्ल पूर्णिमा (शनिवार) से तीर्थ गुरु पुष्कर राज में श्राद्ध के लिए श्रद्धालुओं का आना जाना शुरू हो गया है. पुष्कर के पवित्र सरोवर के 52 घाटों पर श्राद्ध कर्म करवाते हुए तीर्थ पुरोहित और श्रद्धालु नजर आने लगे हैं. मान्यता है कि पुष्कर के पवित्र सरोवर के घाट पर अपने पूर्वजों के निमित्त किए जाने वाले श्राद्धकर्म से पूर्वजों को शांति मिलती है. वहीं पितृ दोष एवं अन्य व्याधियों से भी मुक्ति मिलती है. पितरों के आशीर्वाद से घर में खुशहाली आती है. सदियों से पुष्कर तीर्थ के पवित्र सरोवर में श्राद्ध कर्म होते आए हैं. यूं तो वर्ष भर पुष्कर सरोवर के घाटों पर पितरों के निमित्त अनुष्ठान किए जाते हैं.

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पुष्कर के तीर्थ पुरोहितों के पास देश के कोने-कोने से आने वाले श्रद्धालुओं और उनके पूर्वजों की पोथी भी होती है. जिसमें पूर्वजों के नाम होते हैं. देशभर के अलग-अलग क्षेत्रों के अलग-अलग तीर्थ पुरोहित पुष्कर में है जो अपने अपने क्षेत्रों से आने वाले श्रद्धालुओं को उनकी श्रद्धा के अनुसार श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान और पितृ शांति के लिए अनुष्ठान और पुष्कराज की पूजा अर्चना करवाते हैं. जोधपुर से आए श्रद्धालु उमेश ने बताया कि पुष्कर में श्राद्ध कर्म से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है. वहीं श्राद्ध कर्म करने वाले को पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. उन्होंने कहा कि श्राद्ध कर्म से उत्पन्न आत्मिक भाव को यहां श्राद्ध करके ही महसूस किया जा सकता है.

यहां सात कुल और 5 पीढ़ियों तक के लिए होते है श्राद्धः पुष्कर एकमात्र ऐसा तीर्थ है जहां पर 7 कुल और 5 पीढ़ियों तक के पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध किए जाते हैं. जबकि देश में अन्य तीर्थ स्थलों पर एक या दो पीढ़ी तक के पूर्वजों के लिए श्राद्ध किए जाते हैं. तीर्थ पुरोहित पंडित रूपचंद पाराशर बताते हैं कि भगवान श्रीराम ने भी पुष्कर में अपने 7 कुल और 5 पीढ़ियों के पूर्वजों का उद्धार यहां श्राद्ध करके किया था. पुष्कर जगत पिता ब्रम्हा की नगरी है. वहीं पवित्र पुष्कर सरोवर के जल को नारायण के रूप में पूजा जाता है. यहां श्रद्धा के साथ पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

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श्राद्ध कर्म के बाद श्रद्धालु ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें सामर्थ्य अनुसार दान भी करते हैं. उन्होंने बताया कि श्राद्ध पक्ष 25 सितंबर तक रहेंगे. मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष के दौरान सभी पितृ धरती पर अपने परिवार के बीच बिना आह्वान के पहुंचते हैं. ऐसे में यदि उनके निमित्त श्राद्ध किया जाता है तो वह प्रसन्न होते हैं. उन्होंने बताया कि 6 तीर्थों पर श्राद्ध करने का महत्व है. बद्रीनाथ में ब्रह्म कपाली होती है. मातृगया में मां का पिंड दान किया जाता है. गया में पिता का पिंड दान किया जाता है. इसके अलावा प्रयागराज में भी पिंडदान किया जाता है.

श्री राम, पांडवों ने भी किये थे यहां अपने पूर्वजों के निमित्त श्राद्धः पुष्कर स्थित गया कुंड का भी विशेष महत्व है. मान्यता है कि जो गया (बिहार) जाकर अपने पितरों का श्राद्ध नहीं कर सकता. वह पुष्कर के गया कुंड में श्राद्ध कर सकता है. पद्म पुराण के अनुसार वनवास के दौरान भगवान श्री राम ने अपने पिता दशरथ सहित सभी पूर्वजों का श्राद्ध गया कुंड में किया था. श्राद्ध कर्म के बाद भगवान श्रीराम ने ऋषि-मुनियों और ब्राह्मणों को भोजन भी करवाया था. द्वापर युग में पांडवों ने भी अपने पूर्वजों के निमित्त यहां श्राद्ध किया था. सदियों से श्रद्धालु पुष्कर में जगतपिता ब्रह्मा के दर्शनों के लिए आते रहे हैं. यहां आने पर श्रद्धालु अपने पूर्वजों के नियमित तर्पण और पिंडदान करवाना नहीं भूलते हैं. कहा जाता है कि श्राद्ध पक्ष के पखवाड़े में शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है.

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श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों के प्रति रखें श्रद्धा: तीर्थ पुरोहित पंडित रवि शर्मा बताते हैं कि पितृपक्ष में पूर्वजों को श्रद्धा से याद किया जाना ही श्राद्ध माना जाता है. पूर्वजों के निमित्त पिंड दान करने का मतलब है कि हम पितरों के लिए भोजन दान कर रहे हैं और तर्पण करने का अर्थ माना जाता है कि हम उन्हें जल का दान कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि श्रद्धालु तीर्थ पुरोहितों के सानिध्य में वैदिक मंत्रोच्चारण और परंपरागत रूप से सरोवर में स्नान कर अपने पूर्वजों की आत्मा शांति के लिए अलग-अलग घाटों पर तर्पण और पिंडदान करते हैं. इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाकर दान दक्षिणा दी जाती है. इससे पहले कौए, कुत्ते और गाय को भी भोजन करवाया जाता है. बता दें कि पुष्कर में 1200 से अधिक तीर्थ पुरोहित हैं.

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