अजमेर. कोरोना ने लोगों के स्वास्थ्य पर ही नहीं उनकी आजीविका पर भी हमला किया है. कोरोना काल में कई लोगों का रोजगार छिन गया है, इनमें कला के पोषक कलाकार भी शामिल हैं. बात अजमेर की करें तो यह धार्मिक पर्यटन नगरी के साथ सांस्कृतिक नगरी भी है. सदियों से यहां कला फलती-फूलती रही है. सरकारी, गैरसरकारी कार्यक्रमों के अलावा धार्मिक कार्यक्रमों में सदैव कलाकारों ने अजमेर की संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम किया है.
वहीं, लोगों को भी स्वस्थ्य मनोरंजन मिलता रहा है, लेकिन कोरोना ने कलाकारों की खुशियों को ऐसी नजर लगाई कि, डेढ़ वर्षों से कला और कलाकारों का नाम ही नहीं है. कलाकार, गुमनामी और बेरोजगारी में जीने को मजबूर हैं. कला की विभिन्न विधाओं से जुड़े अजमेर में 2 हजार से ज्यादा कलाकार हैं. रंगमंच के कलाकारों के अलावा, लोक कलाकार, साहित्य, शिल्प, चित्र, नृत्य, गायन, साज सहित कई विधाएं हैं, जिनको जीवंत रखने के साथ इसके माध्यम से कलाकार स्वंय की आजीविका भी बंदोबस्त करते थे.
'थाली और ताली' के लिए तरसे लोक कलाकार...
पर्यटन नगरी अजमेर में पर्यटकों को राजस्थानी लोक कला और संस्कृति के दर्शन करवाने वाले लोक कलाकार (Folk Artists) थाली और ताली के लिए तरस गए हैं. खास बात यह कि कोरोना से आमजन को बचाने की जद्दोजहद में सरका कला और कलाकारों को संरक्षण देने की जिम्मेदारी भूल गई है. ETV Bharat ने अजमेर के कलाकारों से बातचीत की तो उनका दर्द छलक पड़ा. लोक कलाकार गोपाल बंजारा ने बताया कि पिछले लॉकडाउन के बाद जब अनलॉक हुआ तो कुछ कलाकार को काम मिला, लेकिन इस बार तो हालात और भी विकट हो गए.
उन्होंने कहा कि सरकार की ऐसी कोई योजना नहीं है जिसके तहत कलाकारों को सहयोग मिल सके. कलाकारों की जीवन यापन कला पर ही निर्भर है. ऐसे में वे आर्थिक तंगी (Financial Crisis) से जूझ रहे हैं. किसको लेकर कलाकारों के मन में बहुत बड़ा दर्द है. यह ऐसा है कि कलाकार जब कला पर ही निर्भर है और वह भी बंद हो जाए तो फिर कलाकार कहां जाए. उसके और उसके परिवार के सामने खाने-पीने का संकट खड़ा हो गया है. बंजारा ने बताया कि कई कलाकारों की आर्थिक हालात इतनी खराब हो चुकी है कि वे कला को छोड़कर अन्य छोटे-मोटे काम कर परिवार का पोषण करने का प्रयास रहे हैं, लेकिन मुझे नही लगता कि इस तरह वह अपने परिवार का ठीक से भरण-पोषण कर पाएंगे.
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सरकार को देना होगा विशेष ध्यान...
बंजारा ने आगे कहा कि कला की आराधना करते-करते कलाकार उस स्तर पर आ गया कि वह अब दूसरा कार्य भी नहीं कर सकता. सरकार को इस ओर भी विशेष ध्यान देना होगा. ऐसी कोई योजना बनानी होगी, तब ही कला और कलाकार जीवित रह पाएगा, वरना कला की कई विधाएं लुप्त हो जाएंगी, फिर इन विधाओं को जीवंत करना मुश्किल होगा. अजमेर में थियेटर नाम की कोई जगह नहीं है. बावजूद इसके, कलाकार कला को जीवित रखने के लिए कार्य कर रहे था. पूर्व में सरकार की योजनाओं के प्रचार-प्रसार के सहारे उनकी भी गाड़ी चलती रहती थी. उन्होंने कहा कि सरकार का इस तरह का ही रवैया रहा तो कला की कई विधाएं खत्म हो जाएंगी.
कलाकार कृष्ण गोपाल पाराशर बताते हैं कि कोरोना महामारी के देश और प्रदेश में आने के बाद विभिन्न वर्गों में निराशा आई है. इससे कलाकार भी अछूते नहीं हैं. कोरोना काल में कलाकार अन्य लोगों की तरह घर में है तो वह अपनी कला का प्रदर्शन कहां करेगा. इसलिए उसको न 'दाद' मिल रही और न ही जीवन-यापन के लिए आजीविका. पराशर का कहना है कि जितनी भी कला की विधाएं हैं, उनको जीवित रखना आवश्यक है. उन्होंने कहा कि कलाकार को इस समय ना थाली मिल रही है और ना ताली मिल रही है. सरकार को चाहिए जो आर्थिक कारणों से ग्रसित हैं उन पर ध्यान दे, तभी संस्कृति, कला और कलाकार भी बचेगा.
टूट चुका कई कलाकारों का मनोबल...
कलाकार मनोज बताते हैं कि त्यौहार मार्च के बाद ही आते हैं. लॉकडाउन के चलते किसी प्रकार के कार्यक्रम नहीं हो पा रहे हैं. कई कलाकारों का मनोबल टूट चुका है. उनमें जो उत्साह होता है और नए कलाकारों को जोड़ने की उमंग रहती है, वह नहीं रही. कलाकारों को मंच नहीं मिल रहा. पिछले अनलॉक के बाद नगर निगम और राजस्थान दिवस के अवसर पर कुछ लोक कलाकारों को काम का अवसर मिला था, लेकिन वह नाकाफी रहा. सरकार कलाकारों की ओर विशेष ध्यान दे, खासकर अजमेर में कलाकारों को एक लेटर भी उपलब्ध कराए जहां कलाकार अपनी कला का अभ्यास करता रहे.
धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी लोक कला...
लोक कलाकार गोपाल बंजारा ने बताया कि राजस्थान लोक गीत, गायक और नृत्य के कलाकार अलग हैं. इनके साथ साज यंत्र बजाने वाले कलाकार अलग हैं. इस तरह से भजन गायकी और साज बजाने वाले, नुक्कड़ नाटक करने वाले, चित्रकला, शिल्पकला सहित कई कलाकार हैं जो आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. इन सब विधाओं का बंद हो जाना निश्चित रूप से एक बड़ा घाटा है. लोक कलाकार (Folk Artists) पर्यटन पर निर्भर है, जब पर्यटक ही नहीं आएंगे तो लोक कला भी धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी. राज्य सरकार (Rajasthan Government) ने कला और कलाकारों को बचाने के लिए कोई परिपक्व योजना लागू नहीं की तो आगामी दिनों में कलाकारों को खोजना पड़ेगा कि हमारी यह विधाएं कहां चली गईं. उन्होंने बताया कि अजमेर में करीब 5 हजार लोग ऐसे हैं जो कला की विभिन्न विधाओं से जुड़े हुए हैं.