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स्वतंत्रता सेनानी किशन अग्रवाल की पार्थिव देह का राजकीय सम्मान से किया अंतिम संस्कार

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Published : Aug 31, 2022, 5:12 PM IST

भारत छोड़ो आंदोलन में सेनानी के रूप में भाग लेने वाले स्वतंत्रता सेनानी किशन अग्रवाल का मंगलवार रात्रि अजमेर में निधन हो (Freedom fighter passed away) गया. बुधवार को राजकीय सम्मान के साथ अग्रवाल का अंतिम संस्कार किया गया.

Freedom fighter Kishan Agarwal last rites performed with state hounour
स्वतंत्रता सेनानी किशन अग्रवाल की पार्थिव देह का राजकीय सम्मान से किया अंतिम संस्कार

अजमेर. अजमेर में स्वतंत्रता सेनानी किशन अग्रवाल के निधन से शोक की लहर है. उनके पार्थिव शरीर का बुधवार को राजकीय सम्मान के साथ पुष्कर रोड स्थित मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार किया (Freedom fighter last rites with state honour) गया. अग्रवाल शतायु पार हो गए थे.

अजमेर में स्वतंत्रता सेनानी किशन अग्रवाल के निधन पर उनके पार्थिव शरीर को राजकीय सम्मान के साथ श्रद्धांजलि दी गई. अग्रवाल का निधन मंगलवार रात्रि को उनके निवास स्थान पर हो गया था. स्वतंत्रता सेनानी किशन लाल अग्रवाल का जन्म 12 जनवरी, 1922 को अजमेर में हुआ था. अग्रवाल अपने परिवार के साथ शहर के अंदरूनी क्षेत्र होलीदड़ा में रहते थे. अग्रवाल ने लंबे समय तक एक छोटी सी राशन की दुकान चलाकर अपने परिवार का जीविकोपार्जन किया. छोटी सी दुकान से ही उन्होंने पांच पुत्र और पांच पुत्रियों का लालन-पालन किया. गौरतलब है कि निधन से 15 दिन पहले 15 अगस्त को पशुपालन मंत्री लालचंद कटारिया ने अग्रवाल के निवास पर उनके हाथों से तिरंगा फहराया था और उनका सम्मान भी किया था.

पढ़ें: 99 साल के स्वतंत्रता सेनानी की जुबानी सुनिए आजादी की कहानी

भारत छोड़ो आंदोलन में निभाई भूमिका: 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में अग्रवाल ने सेनानी की भूमिका निभाई थी. अग्रवाल के पुत्र मनीष अग्रवाल ने बताया कि उनके दादा अजमेर में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी कई बातें उन्हें बताया करते थे. उन्होंने बताया था कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान महात्मा गांधी अंग्रेजों से छुपते छुपाते अजमेर आए थे. यहां नया बाजार खजाना घड़ी में उनके रुकने की व्यवस्था की गई. कार्यकर्ता के नाते उन्होंने व्यवस्था संभाली.

उन्होंने कहा कि भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कई बार अंग्रेजों की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर रात भर थाने में रखा और बैंत से पीटा. रात भर थाने में खड़े रहने की सजा दी गई. वहीं​ ब्रिटिश पुलिस पुणे शहर से दूर नौसर, घूघरा तक छोड़ आती थी. दादा ने बताया था कि क्रांतिकारियों का मददगार होने के कारण ब्रिटिश पुलिस उन पर नजर रखा करती थी और जरा सा भी शक होने पर उन्हें पकड़ कर पुलिस थाने लेजाकर यातनाएं दी जाती थी.

पढ़ें: स्वतंत्रता सेनानी जंगबहादुर सिंह के देशभक्ति गीतों से कांपते थे अंग्रेज, 102 साल में आज भी हाई है जोश

महंगाई और भ्रष्टाचार से होती थी पीड़ा: मनीष बताते हैं कि उनके दादा अक्सर कहा करते थे की हजारों लोगों ने आजादी की लड़ाई में अपनी कुर्बानियां दी. आजाद भारत में महंगाई और भ्रष्टाचार चरम पर देखकर उनके दादा दुखी होते थे. उन्हें पीड़ा होती थी जब कभी वे भ्रष्टाचार से संबंधित कोई खबर के बारे में सुनते थे. स्वतंत्रा सेनानी किशन लाल अग्रवाल गरीबी में रहते हुए भी देश भक्ति के लिए हमेशा तत्पर रहे. अग्रवाल दो बार राष्ट्रपति की ओर से राष्ट्रपति भवन में सम्मानित हो चुके हैं. वहीं राजस्थान सरकार की ओर से उन्हें ताम्रपत्र भी भेंट किया गया था.

पढ़ें: स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर चौधरी का निधन, CM गहलोत ने व्यक्त की संवेदनाएं

अंतिम संस्कार में जुटे कई लोग: स्वतंत्र सेनानी किशन अग्रवाल की पार्थिव देह का राजकीय सम्मान के साथ पुष्कर रोड स्थित मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार किया गया. इस दौरान पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के अलावा परिवार रिश्तेदार, समाज के लोगों के अलावा गणमान्य नागरिक मौजूद रहे.

अजमेर. अजमेर में स्वतंत्रता सेनानी किशन अग्रवाल के निधन से शोक की लहर है. उनके पार्थिव शरीर का बुधवार को राजकीय सम्मान के साथ पुष्कर रोड स्थित मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार किया (Freedom fighter last rites with state honour) गया. अग्रवाल शतायु पार हो गए थे.

अजमेर में स्वतंत्रता सेनानी किशन अग्रवाल के निधन पर उनके पार्थिव शरीर को राजकीय सम्मान के साथ श्रद्धांजलि दी गई. अग्रवाल का निधन मंगलवार रात्रि को उनके निवास स्थान पर हो गया था. स्वतंत्रता सेनानी किशन लाल अग्रवाल का जन्म 12 जनवरी, 1922 को अजमेर में हुआ था. अग्रवाल अपने परिवार के साथ शहर के अंदरूनी क्षेत्र होलीदड़ा में रहते थे. अग्रवाल ने लंबे समय तक एक छोटी सी राशन की दुकान चलाकर अपने परिवार का जीविकोपार्जन किया. छोटी सी दुकान से ही उन्होंने पांच पुत्र और पांच पुत्रियों का लालन-पालन किया. गौरतलब है कि निधन से 15 दिन पहले 15 अगस्त को पशुपालन मंत्री लालचंद कटारिया ने अग्रवाल के निवास पर उनके हाथों से तिरंगा फहराया था और उनका सम्मान भी किया था.

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भारत छोड़ो आंदोलन में निभाई भूमिका: 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में अग्रवाल ने सेनानी की भूमिका निभाई थी. अग्रवाल के पुत्र मनीष अग्रवाल ने बताया कि उनके दादा अजमेर में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी कई बातें उन्हें बताया करते थे. उन्होंने बताया था कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान महात्मा गांधी अंग्रेजों से छुपते छुपाते अजमेर आए थे. यहां नया बाजार खजाना घड़ी में उनके रुकने की व्यवस्था की गई. कार्यकर्ता के नाते उन्होंने व्यवस्था संभाली.

उन्होंने कहा कि भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कई बार अंग्रेजों की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर रात भर थाने में रखा और बैंत से पीटा. रात भर थाने में खड़े रहने की सजा दी गई. वहीं​ ब्रिटिश पुलिस पुणे शहर से दूर नौसर, घूघरा तक छोड़ आती थी. दादा ने बताया था कि क्रांतिकारियों का मददगार होने के कारण ब्रिटिश पुलिस उन पर नजर रखा करती थी और जरा सा भी शक होने पर उन्हें पकड़ कर पुलिस थाने लेजाकर यातनाएं दी जाती थी.

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महंगाई और भ्रष्टाचार से होती थी पीड़ा: मनीष बताते हैं कि उनके दादा अक्सर कहा करते थे की हजारों लोगों ने आजादी की लड़ाई में अपनी कुर्बानियां दी. आजाद भारत में महंगाई और भ्रष्टाचार चरम पर देखकर उनके दादा दुखी होते थे. उन्हें पीड़ा होती थी जब कभी वे भ्रष्टाचार से संबंधित कोई खबर के बारे में सुनते थे. स्वतंत्रा सेनानी किशन लाल अग्रवाल गरीबी में रहते हुए भी देश भक्ति के लिए हमेशा तत्पर रहे. अग्रवाल दो बार राष्ट्रपति की ओर से राष्ट्रपति भवन में सम्मानित हो चुके हैं. वहीं राजस्थान सरकार की ओर से उन्हें ताम्रपत्र भी भेंट किया गया था.

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अंतिम संस्कार में जुटे कई लोग: स्वतंत्र सेनानी किशन अग्रवाल की पार्थिव देह का राजकीय सम्मान के साथ पुष्कर रोड स्थित मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार किया गया. इस दौरान पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के अलावा परिवार रिश्तेदार, समाज के लोगों के अलावा गणमान्य नागरिक मौजूद रहे.

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