अजमेर. शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने राजनेताओं पर तंज कसते हुए कहा (Dharm Sabha In Ajmer) कि संतों का उपयोग प्रचारक के रूप में हो यह उचित नहीं है. संतों से मार्गदर्शन लेना चाहिए उन्हें प्रचारक न बनाकर मार्गदर्शक के रूप में ही स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए. अजमेर में जवाहर रंग मंच पर मंगलवार को आयोजित धर्मसभा और राष्ट्रीय चिंतन कार्यक्रम में उन्होंने धर्म,शास्त्र और सनातन संस्कृति पर प्रवचन दिया.
भले तंत्र की आयु लम्बी: शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने बातचीत में कहा कि सत्ता लोलुप्ता से कोई भी राजनैतिक दल अछूता नहीं (Shankracharya Swami Nischalanand Saraswati comments on Politicians) है. वही राजनेताओं को राजनैतिक समग्र परिभाषा का ज्ञान भी नहीं है. सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुलक्षित, सेवापरायण समाज की संरचना वेदादि शास्त्र सम्मत समग्र राजनीति की परिभाषा है. उसका ज्ञान होने पर सत्ता लोलुप्ता, दूरदर्शिता से जीवन मुक्त करने पर स्वस्थ राजनेताओं की प्राप्ति हो सकती है. कोई भी तंत्र हो भले व्यक्ति होते हैं तब ही तंत्र की आयु होती है अन्यथा तंत्र दिशाहीन हुए बिना नही रहता. उन्होंने कहा कि राजनीतिक क्षेत्र में भी कुछ विशिष्ट व्यक्ति ऐसे हैं जो भारत को भारत के रूप स्थापित करने के लिए प्रयत्न कर रहे हैं.
राजनेताओं पर तंज: शंकराचार्य ने राजनेतओं पर टिप्पणी की. उन्हें परामर्श भी दिया. कहा- राजनेता संतों के साथ संवाद करें. हम उनकी भावना को सुनें और विश्व की परिस्थिति और भारत की स्थिति को बताएं और मार्ग दर्शन लें. सद्भाव पूर्वक संवाद के माध्यम से उत्कृष्ट भारत की संरचना हो सकती है.अच्छे राजनेता समझते हैं कि व्यासपीठ की गद्दी का दायित्व भी हम निभा लें.
उदाहरण से समझाया गुरु का महत्व: उन्होंने कहा कि वशिष्ठ की आवश्यकता श्री राम को थी. व्यास की आवश्यकता युधिष्ठिर को थी. शंकराचार्य की आवश्यकता सुधर्मा को थी. चाणक्य की आवश्यकता चंद्रगुप्त को थी. आजकल राजनेताओं में भी ऐसी भावना है कि संत उनके प्रचारक बन जाएं, इसलिए भारत सर्व समाज की स्थापना पंडित जवाहरलाल नेहरू के शासन में हुई. शंकराचार्य बोले- अशोक सिंघल ने धर्म संसद की स्थापना की ताकि संतों का उपयोग भाजपा के वोट बैंक को समृद्ध करने में हो. ये उचित नहीं है. संतो से मार्गदर्शन लेना चाहिए. संतो को कभी भी अपना प्रचारक नहीं बना करके मार्गदर्शक के रूप में ही उन्हें स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए.
'योगी राजनीति में न आते तो अच्छा था': शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ को लेकर भी राय जाहिर की. उन्होंने कहा कि संतों को राजनीति में नही आना चाहिए. योगी भी राजनीति में नही आते तो अच्छा था. लेकिन राजनीति में आकर वह विसंगतियों को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं. ये और भी अच्छा है. उन्होंने बुलडोजर पॉलिटिक्स को भी गलत बताया. कहा कि विद्वेष पूर्वक बुलडोजर चलाना ठीक नहीं है साथ में ये भी कहा कि उन्हें लगता है कि योगी आदित्यनाथ इस सोच के साथ बुलडोजर नहीं चलाते. उन्होंने आगे कहा- देश मे जो भी रहता है उसे देश भक्ति का परिचय देना चाहिए. यदि वो देशभक्ति का परिचय नहीं देता है मठ मंदिर की मर्यादा को ध्वस्त करता है और उसके प्रेरणा स्त्रोत कहीं और है तो उसका दमन आवश्यक है.
'उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने मान ली मेरी बात': शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि उत्तराखंड सरकार में 3 दिन में ही मेरी बात मान ली. वहां भाजपा सरकार ने ही मंदिर मठ का अधिग्रहण किया था. वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि सकुर्लर शासन तंत्र को धार्मिक आध्यात्मिक क्षेत्र में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है. मठ मंदिर अपनी धार्मिक और आध्यात्मिक परंपरा से चलते हैं उसमें सहभागिता की आवश्यकता है. धार्मिक आध्यात्मिक क्षेत्र शोषण के केंद्र बनते हैं तो शासन तंत्र हस्तक्षेप करें अन्यथा नहीं.
हिन्दू राष्ट्र को लेकर कही बड़ी बात!: उन्होंने कहा कि भारत में जो भी देश भक्त है वो तनाव उत्पन्न नही कर सकते. उन्होंने कहा कि देश में मुगलों और अंग्रेजों ने शासन किया उस वक्त जो देश भक्त थे वो देशद्रोही गिने जाते थे और उन्हें दंड भी मिलता था. अब ऐसे देशभक्तों को देशद्रोही ना माना जाए. वास्तव में जो देशद्रोही देश में निवास कर रहे हैं उन पर नियंत्रण होना चाहिए. भारत का विभाजन अदूरदर्शिता पूर्ण हुई. विभाजन के बाद भारत को जिस तरीके से स्थापित किया गया वो भी अदूरदर्शिता पूर्ण था. उन्होंने कहा कि किसी के भी पूर्वज हों वह दिव्यता स्थापित करते हैं तो बेटे बेटी, पोते पोती लाभ उठाते हैं और अगर कोई ऐसा कांड कर जाते हैं तो बेटे बेटी पोते पोती को कांड पर पानी फेरने में समय लगता है. पहले जो विसंगति हुई और जो अदूरदर्शिता का परिचय दिया गया उसका वरण करना सामान्य नही है औऱ कठिन भी है. विभाजन के बाद भी भारत को विभक्त होने का मार्ग दे दिया गया. मेरा संकल्प है कि भारत हिंदू राष्ट्रीय बने. सबके पूर्वज सनातनी वैदिक आर्य हिंदू थे. लाठी बम बारूद के दम पर नहीं मैं स्वस्थ विचार धारा के बल पर यह कहता हूं कि मोहम्मद साहब के पूर्वज, ईसा मसीह के पूर्वजों का नाम सनातनी व वैदिक आर्य हिन्दू था. रॉकेट कंप्यूटर मोबाइल के युग में भी सनातन सिद्धांत जो हमारा है वो न केवल दार्शनिक, वैज्ञानिक और व्यवहारिक है. जिसके सामने कोई खड़ा नहीं हो सकता इसलिए मैं कहता हूं कि भारत हिंदू राष्ट्रीय होना चाहिए. बल्कि एशिया महाद्वीप को हिंदू महाद्वीप के रूप में घोषित करना चाहिए.
ताज महल नहीं वह तेजो महालय था: ताजमहल पर उठ रहे विवाद पर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की. कहा कि तेजो महालय के कागजात जयपुर नरेश के पास हैं. शास्त्रों में ताज महल का नाम तेजो महालय है. तेजो महालय का अर्थ शिवालय है. ताजमहल का प्रत्यय इतिहास है. तेजो महालय को अन्य रूप में परिवर्तित किया गया था. तेजो महालय के रूप में ताजमहल उद्भाषण उचित है. स्वतंत्र भारत में होना ही चाहिए लेकिन सद्भाव पूर्वक संवाद के माध्यम से जितना काम बने उतना अच्छा है.