अजमेर. सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान ने आने वाली ईद के मौके पर अनुयायियों को संदेश दिया है. उन्होंने कहा कि लोग सादगी से ईद मनाएं. हमारी खुशियों के साथ ईद तो उस दिन होगा जब देश और दुनिया का हर इंसान खुशहाल और स्वस्थ होकर इस कोरोना महामारी को हरा देगा.
दरगाह दीवान ने आने वाली ईद के मौके पर देशवासियों और अपने अनुयायियों के नाम संदेश में कहा कि वह इस्लाम की सकारात्मक व्याख्या प्रस्तुत करें. उन्होंने लोगों से अपील करते हुए कहा कि आने वाली ईद को सादगी से मनाएं. कोई भी खुशी का इजहार ना करें, अपने घरों में ही रहकर इबादत करें. ईद की नमाज में भीड़ एकत्रित ना करें. सरकार की जो भी गाइडलाइन है उस का सख्ती के साथ पालन करें. मास्क पहने और एक-दूसरे से दूरी बना कर रखें. उन्होंने कहा कि इस महामारी से सिर्फ बचाव और कोविड प्रोटोकॉल की पालना कर ही जीता जा सकता है.
दीवान ने देशवसियों को ईद से पूर्व अपना संदेश देते हुए कहा कि भारत एक ऐसा देश है जहां सभी धर्मों के लोग हजारों वर्षों से मोहब्बत और अमन के साथ मिल-जुल कर रहते आ रहे हैं. भारत एक ऐसा देश है जो सभी मजहब को खूबसूरत फूलों की तरह एक गुलदस्ते की शक्ल में सजाकर रखे हुए हैं. रमजान का पवित्र महीना उसकी एक बड़ी मिसाल है कि कैसे सभी धर्म के लोग मिल जुलकर एकसाथ रोजा इफ्तार करते हैं और फिर ईद पर एक-दूसरे से मिल कर एक-दूसरे के घर जाकर धर्म का आदर करते हैं. हमारे मुल्क की यह गंगा जमुनी तहजीब दुनिया के लिए एक मिसाल है.
दुनिया ने हमसे ही सीखा है कि कैसे सभी धर्म के लोग बिना भेदभाव के एक साथ रह सकते हैं और एक-दूसरे के सुख-दुख में कैसे काम आते हैं. आज हमें एक बार फिर अपनी एकता दिखानी है और एक-दूसरे के सुख-दुख में कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़े रहकर दुनिया के सामने एक बार फिर मिसाल कायम करते हुए दिखाना है कि भारत एक महान देश है, जो हर जंग हर आपदा को अपनी एकता और अखंडता के दम पर जीत लेता है.
एक-दूसरे का सहारा बनें
दरगाह दीवान ने कहा कि सभी मजहब मोहब्बत करने और एक-दूसरे के सुख दुख में एक-दूसरे का साथ देने की शिक्षा देते हैं. अब वह समय आ गया है कि हम एक-दूसरे की कमियां या गलतियां निकालने के बजाए देश से इस महामारी को खत्म करने में एक-दूसरे का साथ दें. जिससे जो भी मदद हो सकती है वो मदद करके एक-दूसरे का सहारा बनें.
जिम्मेदारी से बयानबाजी करें
दीवान ने कहा कि सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक संगठनों को यह याद रखना चाहिए कि यह देश है तो हम हैं, यह देश है तो हमारा अस्तित्व है, इसलिए जिम्मेदारी से बयानबाजी करें और मौजूदा दौर में सियासी और मजहबी रहनुमा एक प्रेरणा बनें जिससे की इस देश के हर परेशान हाल को एक सकारात्मक व अच्छा माहौल मिले.