अजमेर. जब भी हम तनाव की महसूस करते हैं तो चाय पीकर अपनी थकान मिटा लेते हैं. लेकिन अब लॉकडाउन के इस चाय पर भी ताला लगा दिया है. जिन चाय की थड़ियों पर गपशप के साथ लोग चाय की चुस्कियां लिया करते थे. वहां आज लॉकडाउन की वजह से सन्नाटा पसर गया है.
गोवर्धन जिला मुख्यालय से चंद कदमों की दूरी पर चाय की थड़ी लगाते हैं. गोवर्धन सिंह रावत ने लॉकडाउन के 35 दिन तो अपने बजट से निकाल लिए. लेकिन भविष्य में वे अपने परिवार का पेट कैसे भरेंगे. यह चिंता उन्हें पल-पल सता रही है.
यह भी पढ़ें- स्पेशल: कोरोना संकट के बीच समाज को नई दिशा दे रहा है मित्र फाउंडेशन
400 से 500 हर दिन कमा लेते थे
गोवर्धन के परिवार में पत्नी और 5 बच्चे हैं. चाय बेचकर ही गोवर्धन अपना परिवार चलाते हैं. गोवर्धन बताते हैं कि लॉकडाउन से पहले हर दिन उनकी 150 से 200 चाय बिक जाया करती थी. जिससे उन्हें 400 से 500 रुपए की आमदनी हो जाती थी.अब तो हालत यह है कि परिवार का गुजारा सेविंग्स के जरिए ही हो रहा है. वो भी बहुत जल्द दी खत्म हो जाएगी. सेविंग खत्म होने के बाद क्या होगा. यह चिंता उनके लिए कोरोना के डर से बड़ी नजर आने लगी है.
लॉकडाउन खुलने की तक रहे राह
शहर की तमाम चाय की तरह वीरान पड़ी हैं और चाय वाले हाथ पर हाथ धरे लॉकडाउन खुलने का इंतजार कर रहे हैं. अजमेर में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. ऐसे में लॉकडाउन 3 मई को खुलेगा, इसके आसार कम ही नजर आ रहे हैं.
यह भी पढे़ं- भीलवाड़ा के बाद जैसलमेर ने दिखाया कोरोना के खिलाफ दम, 35 में से 30 मरीज स्वस्थ होकर घर लौटे
सेविंग्स से कब तक चलेगा घर
गोवर्धन यह बताते है कि लॉकडाउन में सेविंग खत्म होने को है. यदि चाय बेचना फिर से शुरू भी हो जाता है तो चाय, दूध, शक्कर, एलपीजी के लिए पैसों की आवश्यकता होगी. उसके लिए भी कर्ज लेना पड़ेगा. पहले लोग चाय की थड़ियों पर साथ बैठकर अपनी रुचि अनुसार चर्चा करते थे. लेकिन अब कोरोना संक्रमण के डर से कोई थड़ियों पर नहीं बैठेगा. इससे हमारी आजीविका पर बहुत फर्क पड़ जाएगा. लोग थड़ियों पर आने से कतराएंगे, तो उनकी चाय कैसे बिकेगी.
दोस्तों और परिचितों के साथ थड़ियों पर चाय की चुस्कियां लॉकडाउन में सभी को याद आती होगी. लेकिन जरा आपने सोचा कि आपको चाय पिलाने वाले उस चाय वाले पर लॉकडाउन में क्या बीत रही है. कैसे उसका घर चल रहा होगा. गोवर्धन सिंह रावत जैसे सैकड़ों चाय वाले ऐसे भी हैं, जिनकी आय बंद होने से उनके घरों में चूल्हा जलना बंद हो गया है.