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SPECIAL: राम नाम के बीच अविनाश के घर में 'उमंग'...परिजन बोले-अब मिलेगा उसके दिल को सुकून - Ajmer Karsevak in Ayodhya

6 दिसंबर 1992 का दिन अजमेर के प्रेमनगर निवासी माणकचंद माहेश्वरी का परिवार का कभी नहीं भूल पाएगा. यह वो दिन है जब माहेश्वरी परिवार का 20 वर्षीय 'चिराग' अयोध्या में कारसेवा के दौरान बुझ गया था. अयोध्या में वह शुभ घड़ी आ गई है, जब राम मंदिर का शिलान्यास हो रहा है. लेकिन कार्यक्रम में माहेश्वरी परिवार को निमंत्रण नहीं दिया गया है. आइए जानते हैं कि इस मौके पर माहेश्वरी परिवार क्या कहना है...

Ram temple foundation stone program, Ajmer Karsevak in Ayodhya, Avinash dies during Karseva
कारसेवा के दौरान हुई थी अविनाश माहेश्वरी की मौत
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Published : Aug 4, 2020, 10:07 PM IST

अजमेर. 6 दिसंबर 1992 का दिन फॉयसागर रोड स्थित प्रेमनगर निवासी माणकचंद माहेश्वरी का परिवार का कभी नहीं भूल पाएगा. माहेश्वरी परिवार के मन और घर का एक कोना आज भी खाली है. यह वो दिन है जब माहेश्वरी परिवार का 20 वर्षीय घर का 'चिराग' अयोध्या में कारसेवा के दौरान बुझ गया था. अयोध्या में कारसेवा के दौरान हुई आपात स्थिति में स्वास्थ्य सेवा टीम में योगदान दे रहे अजमेर के अविनाश माहेश्वरी की मौत बम फटने से हुई थी.

1992 में अयोध्या में कारसेवा के लिए लाखों लोग देशभर से पहुंचे थे. इनमें अजमेर से भी 28 कारसेवक सदस्यों में 20 वर्ष का नौजवान अविनाश माहेश्वरी सेवा संकल्प के साथ 26 नवंबर को अयोध्या गया था. जहां उसे मेडिकल टीम के साथ सेवा कार्य में जोड़ दिया गया. इस दौरान अविनाश ने अपनी बड़ी बहन सुमन काबरा को उनके जन्मदिन पर पत्र लिखा. जिसमें शुभकामनाओं के साथ अपने सकुशल होने का समाचार उसने लिखा. साथ ही जल्द अगला पत्र भेजने के लिए भी लिखा. लेकिन वो पत्र अविनाश का आखिरी पत्र था.

राम नाम के बीच अविनाश के घर में छाया उमंग

ये भी पढ़ें- राम मंदिर भूमि पूजन वर्षों पुराना सपना साकार होने जैसा : आडवाणी

6 दिसंबर का दिन जब राम मंदिर आंदोलन चरम पर था, उस दौरान कई लोग जख्मी हुए और कई लोगों ने अपने प्राण गंवाए. जिनमें अविनाश भी एक था. अजमेर का युवा अविनाश माहेश्वरी आपातकाल की सूचना मिलने पर घायल लोगों की सेवा के लिए आगे बढ़ा. अविनाश ने अपने दोस्त सुरेंद्र को एंबुलेंस के साथ आगे भेजा और खुद दूसरी एंबुलेंस में पीछे निकल पड़ा. इस दरमियान त्रिमूर्ति चौराहे पर अधिक भीड़ होने से वह रुक गया. बहन सुमन माहेश्वरी बताती है कि अविनाश को क्रिकेट का बहुत शौक था. त्रिमूर्ति चौराहे पर अविनाश ने 1 गेंद उसकी और आते हुए देखी उस गेंद को अविनाश ने लपक लिया.

ये भी पढ़ें- राम मंदिर भूमि पूजन को लेकर प्रियंका गांधी के बयान पर मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने किया ये कटाक्ष...

अविनाश के हाथों में गेंद नुमा वह वस्तु बम थी. जिसको अविनाश ने उसी और उछाल दिया जिस ओर से वह गेंद आई थी. लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था वह गेंद नुमा वस्तु दीवार से टकराकर वापस लौट आई और अविनाश के पास ब्लास्ट हो गई. अयोध्या में कारसेवा के लिए गए अविनाश की 6 दिसंबर को मौत की खबर आई. कर्फ्यू के बीच बामुश्किल अविनाश का शव उसके घर पहुंच सका.

Ram temple foundation stone program, Ajmer Karsevak in Ayodhya, Avinash dies during Karseva
अविनाश माहेश्वरी के घर पर लगी तस्वीर

कार्यक्रम का निमंत्रण नहीं मिला

सुप्रीम कोर्ट से राम मंदिर के पक्ष में फैसला अविनाश के परिजनों के लिए राहत लेकर आया. अविनाश ने जिस काम के लिए अपने प्राण गंवाए, उसका सपना पूरा होने की उम्मीद जगी. 5 अगस्त को पीएम नरेंद्र मोदी अयोध्या में भव्य राम मंदिर का शिलान्यास कर रहे हैं. माहेश्वरी परिवार को शिलांयास कार्यक्रम का निमंत्रण नहीं मिला है. लेकिन इस बात का उन्हें बिल्कुल मलाल नहीं है.

ये भी पढ़ें- राम मंदिर आंदोलन के वह चेहरे जिन्हें आप भूल नहीं सकते

माणकचंद माहेश्वरी बताते हैं कि राम मंदिर बन रहा है, यह उनके लिए संतोष की बात है. कोरोना महामारी की वजह से संभवतः सीमित लोगों को निमंत्रण गया है. वह बाद में कभी अयोध्या जाएंगे. वहीं, अविनाश की बहन सुमन काबरा बताती है कि श्री राम मंदिर के शिलान्यास होने पर अविनाश की आत्मा बहुत खुश होगी. अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास को लेकर अविनाश के घर पर रामायण का अखंड पाठ चल रहा है. परिजनों को सुकून है कि अविनाश की आत्मा को राम मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हो जाने से खुशी मिलेगी.

ये भी पढ़ें- अजमेर: केकड़ी के कारसेवकों ने लिया था आंदोलन में हिस्सा, अब बोले- जीते जी राम मंदिर बनता देखना एक सौभाग्य

अविनाश का संक्षिप्त परिचय

अविनाश महेश्वरी का जन्म पुष्कर के पिचोलिया में 20 जून 1973 में हुआ था. प्रारंभिक पढ़ाई अविनाश ने गांव में ही रहकर की थी. इसके बाद उनके पिता कंपाउंडर माणकचंद माहेश्वरी परिवार सहित सन 1992 में अजमेर आकर बस गए. अविनाश के पिता ही नहीं पूरा परिवार RSS से जुड़ा हुआ है. यही संस्कार अविनाश में भी आए.

अजमेर की रामनगर सरकारी स्कूल में अविनाश प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए. जिसके बाद वैशाली नगर स्थित श्रमजीवी कॉलेज में अध्यनरत रहने के साथ अविनाश की सक्रियता आरएसएस में बढ़ गई थी. अविनाश बीए द्वितीय वर्ष के छात्र थे. इस दौरान राम मंदिर आंदोलन हुआ और 28 कारसेवकों के साथ वह अजमेर से अयोध्या कार सेवा के लिए गए थे. कार सेवा में प्राण गवाने के बाद अविनाश को सम्मान देते हुए. RSS की विद्या भारती संस्था ने भजनगंज में उनके नाम से स्कूल संचालित किया.

अजमेर. 6 दिसंबर 1992 का दिन फॉयसागर रोड स्थित प्रेमनगर निवासी माणकचंद माहेश्वरी का परिवार का कभी नहीं भूल पाएगा. माहेश्वरी परिवार के मन और घर का एक कोना आज भी खाली है. यह वो दिन है जब माहेश्वरी परिवार का 20 वर्षीय घर का 'चिराग' अयोध्या में कारसेवा के दौरान बुझ गया था. अयोध्या में कारसेवा के दौरान हुई आपात स्थिति में स्वास्थ्य सेवा टीम में योगदान दे रहे अजमेर के अविनाश माहेश्वरी की मौत बम फटने से हुई थी.

1992 में अयोध्या में कारसेवा के लिए लाखों लोग देशभर से पहुंचे थे. इनमें अजमेर से भी 28 कारसेवक सदस्यों में 20 वर्ष का नौजवान अविनाश माहेश्वरी सेवा संकल्प के साथ 26 नवंबर को अयोध्या गया था. जहां उसे मेडिकल टीम के साथ सेवा कार्य में जोड़ दिया गया. इस दौरान अविनाश ने अपनी बड़ी बहन सुमन काबरा को उनके जन्मदिन पर पत्र लिखा. जिसमें शुभकामनाओं के साथ अपने सकुशल होने का समाचार उसने लिखा. साथ ही जल्द अगला पत्र भेजने के लिए भी लिखा. लेकिन वो पत्र अविनाश का आखिरी पत्र था.

राम नाम के बीच अविनाश के घर में छाया उमंग

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6 दिसंबर का दिन जब राम मंदिर आंदोलन चरम पर था, उस दौरान कई लोग जख्मी हुए और कई लोगों ने अपने प्राण गंवाए. जिनमें अविनाश भी एक था. अजमेर का युवा अविनाश माहेश्वरी आपातकाल की सूचना मिलने पर घायल लोगों की सेवा के लिए आगे बढ़ा. अविनाश ने अपने दोस्त सुरेंद्र को एंबुलेंस के साथ आगे भेजा और खुद दूसरी एंबुलेंस में पीछे निकल पड़ा. इस दरमियान त्रिमूर्ति चौराहे पर अधिक भीड़ होने से वह रुक गया. बहन सुमन माहेश्वरी बताती है कि अविनाश को क्रिकेट का बहुत शौक था. त्रिमूर्ति चौराहे पर अविनाश ने 1 गेंद उसकी और आते हुए देखी उस गेंद को अविनाश ने लपक लिया.

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अविनाश के हाथों में गेंद नुमा वह वस्तु बम थी. जिसको अविनाश ने उसी और उछाल दिया जिस ओर से वह गेंद आई थी. लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था वह गेंद नुमा वस्तु दीवार से टकराकर वापस लौट आई और अविनाश के पास ब्लास्ट हो गई. अयोध्या में कारसेवा के लिए गए अविनाश की 6 दिसंबर को मौत की खबर आई. कर्फ्यू के बीच बामुश्किल अविनाश का शव उसके घर पहुंच सका.

Ram temple foundation stone program, Ajmer Karsevak in Ayodhya, Avinash dies during Karseva
अविनाश माहेश्वरी के घर पर लगी तस्वीर

कार्यक्रम का निमंत्रण नहीं मिला

सुप्रीम कोर्ट से राम मंदिर के पक्ष में फैसला अविनाश के परिजनों के लिए राहत लेकर आया. अविनाश ने जिस काम के लिए अपने प्राण गंवाए, उसका सपना पूरा होने की उम्मीद जगी. 5 अगस्त को पीएम नरेंद्र मोदी अयोध्या में भव्य राम मंदिर का शिलान्यास कर रहे हैं. माहेश्वरी परिवार को शिलांयास कार्यक्रम का निमंत्रण नहीं मिला है. लेकिन इस बात का उन्हें बिल्कुल मलाल नहीं है.

ये भी पढ़ें- राम मंदिर आंदोलन के वह चेहरे जिन्हें आप भूल नहीं सकते

माणकचंद माहेश्वरी बताते हैं कि राम मंदिर बन रहा है, यह उनके लिए संतोष की बात है. कोरोना महामारी की वजह से संभवतः सीमित लोगों को निमंत्रण गया है. वह बाद में कभी अयोध्या जाएंगे. वहीं, अविनाश की बहन सुमन काबरा बताती है कि श्री राम मंदिर के शिलान्यास होने पर अविनाश की आत्मा बहुत खुश होगी. अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास को लेकर अविनाश के घर पर रामायण का अखंड पाठ चल रहा है. परिजनों को सुकून है कि अविनाश की आत्मा को राम मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हो जाने से खुशी मिलेगी.

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अविनाश का संक्षिप्त परिचय

अविनाश महेश्वरी का जन्म पुष्कर के पिचोलिया में 20 जून 1973 में हुआ था. प्रारंभिक पढ़ाई अविनाश ने गांव में ही रहकर की थी. इसके बाद उनके पिता कंपाउंडर माणकचंद माहेश्वरी परिवार सहित सन 1992 में अजमेर आकर बस गए. अविनाश के पिता ही नहीं पूरा परिवार RSS से जुड़ा हुआ है. यही संस्कार अविनाश में भी आए.

अजमेर की रामनगर सरकारी स्कूल में अविनाश प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए. जिसके बाद वैशाली नगर स्थित श्रमजीवी कॉलेज में अध्यनरत रहने के साथ अविनाश की सक्रियता आरएसएस में बढ़ गई थी. अविनाश बीए द्वितीय वर्ष के छात्र थे. इस दौरान राम मंदिर आंदोलन हुआ और 28 कारसेवकों के साथ वह अजमेर से अयोध्या कार सेवा के लिए गए थे. कार सेवा में प्राण गवाने के बाद अविनाश को सम्मान देते हुए. RSS की विद्या भारती संस्था ने भजनगंज में उनके नाम से स्कूल संचालित किया.

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