अजमेर. नसीराबाद रोड पर स्थित रेल म्यूजियम नया पर्यटन स्थल बन चुका है. 26 मई, 2021 को रेलवे ने म्यूजियम की स्थापना की थी. हालांकि इससे पहले भी छोटे स्तर पर म्यूजियम चल रहा था. 1680 से लेकर वर्तमान तक रेल का इतिहास म्यूजियम में संजोकर रखा हुआ (Railway history and progress collection in Ajmer Rail Museum) है. रेल के इंजन, ट्रक और अन्य उपकरणों के उत्तरोत्तर विकास का सफर म्यूजियम में देखा जा सकता है. म्यूजियम में देश में वर्ष 1853 से लेकर अब तक जो बदलाव और आधुनिकरण हुआ है, इस तरह की समस्त जानकारियां हैं. रेल के इतिहास और विकास को जानने के लिए म्यूजियम हर उम्र के लोगों के लिए ज्ञानवर्धन का स्त्रोत बन गया है. खासकर बच्चों के लिए म्यूजियम में बहुत कुछ है जो थ्योरी के अलावा उन्हें प्रेक्टिकल ज्ञान भी देता है जिससे उनकी रुचि और बढ़ती है.
संजोकर रखा इतिहास: भारतीय रेल देश में 135 करोड़ लोगों को एक दूसरे से जोड़ती है. देश में लगभग 20 हजार ट्रेनें हर रोज संचालित होती हैं. इनमें 13 के लगभग पैसेंजर ट्रेन हैं. 7 हजार 300 के करीब मालगाड़ी देश में 67 हजार किलोमीटर रेलवे ट्रेक बिछा हुआ है. देश में रेल का इतिहास काफी पुराना है. माना जाता है कि भारत में रेलवे का नेटवर्क के स्थापना 8 मई, 1845 को हुई थी. उस वक्त देश में अंग्रेजों की हुकूमत हुआ करती थी. देश में व्यापार को बढ़ाने के उद्देश्य से रेल बहु उपयोगी साबित हुई. हालांकि विश्व का पहला रेल इंजन 1680 में ही सर आइजेक न्यूटन ने बना दिया था, जो भाप से संचालित होता था. इसके बाद रेल के इंजन और रेलवे ट्रेक में समय के साथ बदलाव होते गए. भारत में पहली रेल गाड़ी 16 अप्रैल, 1853 को बोरीबंदर और ठाणे के बीच 34 किलोमीटर की दूरी पर चली थी. तब से अब तक रेल का इतिहास काफी समग्र रहा है. इस इतिहास को रेलवे ने संजोकर रखा है ताकि आने वाली पीढियां रेल के इतिहास और विकास को जान सकें.
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अंग्रेजों ने अजमेर में स्थापित किया रेल कारखाना: अंग्रेज हुकूमत ने राजपुताना पर अपना दबदबा रखने के लिए अजमेर को अपनी छावनी बनाया. 1876 में अजमेर रेल कारखाने स्थापित किए गए. इन कारखानों में स्टीम इंजन बनने के साथ साथ इंजन के कलपुर्जे भी बनाए जाने लगे. इतना ही नहीं धीरे-धीरे ट्रेन के कोच का निर्माण भी यहां होने लगा. रेल म्यूजियम में अजमेर रेल कारखानों में हुए रेल के विकास की भी जानकारियां उपलब्ध हैं.
ज्ञानवर्धक के साथ-साथ रोचक भी : अजमेर के रेल म्यूजियम में रेल के इतिहास और विकास की पूरी जानकारी उपलब्ध है. साथ ही कई मॉडल, मशीन, इंजन, घड़ियों सहित विभिन्न उपकरण भी वहां मौजूद हैं. म्यूजियम को ज्ञानवर्धक बनाने के साथ-साथ रोचक भी बनाया गया ताकि बच्चें बोर नहीं हों और उनकी जिज्ञासा और बढ़े. इसके लिए कई ऐसे मॉडल तैयार किये गए जो रोमांचित कर देते हैं. पूरे म्यूजियम में घूमने और जानकारी हासिल करने में करीब 1 से डेढ़ घण्टे का वक्त लगता है. म्यूजियम देखने के लिए बच्चों के लिए 10 से 20 रुपए और वयस्क के लिए 50 रुपए का टिकट (Ticket rate in Ajmer Rail Museum) है. इंडोर परिसर के बाहर बच्चों के खेलने के लिए झूले और टॉय ट्रेन है. इंडोर में रेल के बारे में वह सबकुछ है, जो आप जानना चाहते हैं. रेल म्यूजियम कर्मी इंडोर में संजोकर रखे रेल के ऐतिहासिक सफर से जुड़े उपकरण, मॉडल और इतिहास के बारे में जानकारी देते नजर आते हैं. म्यूजियम में कई अलग-अलग सेक्शन हैं, जो रेलवे ट्रैक से लेकर रेलवे स्टेशन तक काम आने वाली हर उपकरण, इंजन और उनमें समय-समय पर हुए बदलाव के बारे में बताया जाता है.
ताजमहल के लिए पहुंचा था संगमरमर: यह सब जानते हैं कि ताजमहल का निर्माण मकराना के संगमरमर के पत्थर से हुआ था, लेकिन इतनी बड़ी तादाद में संगमरमर को आगरा तक कैसे लाया गया था. यह कम ही लोग जानते हैं. मकराना से आगरा तक संगमरमर लाने के लिए लकड़ी के ट्रैक बनाए गए थे. उन पर लकड़ी के ही पहिये से बनी गाड़ी बनाई गई थी जिस पर संगमरमर का पत्थर रखा जाता था और उसे हाथी खींचा करते थे. 1630 से 1643 के बीच 644 किलोमीटर लकड़ी का ट्रैक बनाकर मकराना से संगमरमर आगरा पहुंचा था. यानी पहला रेल ट्रैक 1630 में ही देश में बन गया था.
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म्यूजियम में है रेल के इतिहास की रोचक जानकारी: रेल और स्वतंत्रता आंदोलन, प्रिंटिंग प्रेस, टिकट विंडो, रेलवे ट्रैक में समय के साथ हुए बदलाव, भाप के इंजन समय के साथ होते रहे बदलाव, उपकरण, तिजोरिया, क्रोकरी, सबसे पहला पियानो, रेलवे स्टेशन, सिग्नल, संचार माध्यम, टिकटिंग व्यवस्था, लैम्प, मीटर गेज, ब्रॉड गेज, नैरो गेज ट्रैक और उन पर दौड़ने वाली ट्रेनें, पहली महिला ट्रेन ऐसी कई महत्वपूर्ण जानकारियां म्यूजियम में उपलब्ध हैं. म्यूजियम के भीतर ही एक प्रोजेक्टर कक्ष भी है जहां आगंतुकों को विजुअल और वॉइस ओवर के माध्यम से रेल के इतिहास और विकास की जानकारी दी जाती है.
राजपुताना रेलवेज का सफर: रेल म्यूजियम प्रभारी एवं एसएसई राजीव शर्मा बताते हैं कि विश्व मे पहले रेल इंजन के आविष्कार से लेकर देश में पहला रेल इंजन अजमेर में बनने का इतिहास और उसके बाद रेल के विकास को लेकर ऐतिहासिक जनकारियों को म्यूजियम में संजोकर रखा गया है. म्यूजियम में मॉडल, फोटो और उपकरणों एवं स्टीम इंजन के माध्यम से जानकारी दी जाती है. वहीं इन जानकारियों को और रोचक तरीके से बताने के लिए कई मॉडल में बटन भी लगाए गए हैं जिससे बच्चे खुद चलाकर देख पाते हैं. इससे रेल को जानने में उनकी उत्सुकता और बढ़ती है. इसके अलावा बच्चे ज्ञानवर्धक जानकारी हासिल करने के साथ टॉय ट्रेन की सवारी भी करते हैं. म्यूजियम में भविष्य की ट्रेनों को भी दिखाया गया है. इसके अलावा हेरिटेज सेक्शन को भी म्यूजियम में दर्शाया गया है.
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पहले कभी सुना और ना देखा: रेल म्यूजियम में पहली बार आए छात्र आराध्य शर्मा ने बताया कि रेल म्यूजियम को लेकर मन में था कि पुरानी सरल मशीनें देखने को मिलेंगी. लेकिन उस वक्त में इतने भारी भरकम इंजन और उनका मैकेनिज्म देख कर हैरानी हुई. म्यूजियम में विश्व के पहले इंजन से लेकर बाद में रेलवे के इंजन में हुए अपग्रेडेशन के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिली. रेल के पार्ट्स, भाप के इंजन को चलाया, सबसे पुराना प्यानो, प्रिंटिंग प्रेस और कई चीजें देखने को मिली जो पहले कभी नहीं देखी और सुनी थी. उन्होंने बताया कि म्यूजियम देखने का अनुभव काफी अच्छा रहा.