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रमेश मीणा ने लिखा सीएम गहलोत को पत्र, जानें क्यों

पूर्व मंत्री रमेश मीणा ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र भेजा है. जिसमें मीणा ने जिले में चिकित्सकीय परीक्षण व्यवस्थाओं की विसंगतियों को दूर करने व चिकित्सकीय परीक्षण व्यवस्था को सुदृढ़, पारदर्शी बनाने की मांग की है.

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रमेश मीणा ने लिखा सीएम गहलोत को पत्र
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Published : Sep 25, 2020, 5:16 PM IST

करौली. राजस्थान सरकार के पूर्व मंत्री एवं सपोटरा से विधायक रमेश चंद मीणा ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र भेजकर चिकित्सकीय परीक्षण व्यवस्थाओं की विसंगतियों को दूर करने व चिकित्सकीय परीक्षण व्यवस्था को सुदृढ़ एवं पारदर्शी बनाने की मांग की है, जिससे पीड़ितों को राहत मिल सके.

पूर्व मंत्री रमेश चंद्र मीणा ने बताया कि जिले में जनसुनवाई में मिली शिकायतों से ध्यान में आया है कि गांवों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अथवा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में झगड़ा होने पर घायलों को बिना मेडिकल किए करौली से जयपुर रेफर किया जाता है. जहां उनका उपचार होता है. लेकिन वहां पर उनका मेडिकल नहीं किया जाता, जिससे घायलों के वापस अपने क्षेत्र में लौटने पर संबंधित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर पुलिस की अनुशंसा पर ही घायल का मेडिकल किया जाता है.

इस प्रक्रिया में कई दिन का समय व्यतीत होने के कारण चोट की प्रकृति बदल जाती है और मेडिकल करने वाले चिकित्सक को ब्लंट अथवा धारदार होने के संबंध में राय नहीं देकर उसे टांके लगा जाते हैं. या घाव भरा हुआ होने आदि का विवरण मेडिकल रिपोर्ट में कर देते हैं. साथ ही एक्स-रे रिपोर्ट में भी अस्थि भंग की सही स्थिति नहीं दिखाते.

पढ़ें- डूंगरपुर हिंसक आंदोलन पर CM गहलोत ने कहा- किसी के साथ अन्याय नहीं होगा, आज होगी वार्ता

यदि घायल का इलाज करने वाले अस्पताल, चिकित्सक पीड़ित का एक्सरे, सीटी स्कैन एवं सोनोग्राफी आदि की जांच भी होती है तो पुलिस उन्हें स्वीकार नहीं करती.जिसकी वजह से जिले में मारपीट व अन्य मामलों में घायल होने वाले पीड़ितों के मेडिकल चिकित्सीय परीक्षण में की जा रही लापरवाही और विसंगतियों के कारण पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पा रहा है. जिसके कारण अपराधियों को बचने का मौका मिल जाता है.

वहीं, इससे पीड़ित पक्ष ना केवल प्रताड़ित रहता है, बल्कि उसे न्याय से वंचित भी होना पड़ता है. उन्होंने बताया कि पीड़ितों को उसकी चोटों की मेडिकल रिपोर्ट भी चिकित्सक अथवा पुलिस के द्वारा उपलब्ध नहीं कराई जाती है, जिसके लिए पीड़ित पुलिस एवं चिकित्सकों के पास भटकते रहते हैं, जबकि पीड़ित को यह जानने का वैधानिक अधिकार है कि उसके शरीर पर किस प्रकृति की व कितनी चोटें मिली हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री से इस विसंगति को दुर करने की मांग की है.

करौली. राजस्थान सरकार के पूर्व मंत्री एवं सपोटरा से विधायक रमेश चंद मीणा ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र भेजकर चिकित्सकीय परीक्षण व्यवस्थाओं की विसंगतियों को दूर करने व चिकित्सकीय परीक्षण व्यवस्था को सुदृढ़ एवं पारदर्शी बनाने की मांग की है, जिससे पीड़ितों को राहत मिल सके.

पूर्व मंत्री रमेश चंद्र मीणा ने बताया कि जिले में जनसुनवाई में मिली शिकायतों से ध्यान में आया है कि गांवों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अथवा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में झगड़ा होने पर घायलों को बिना मेडिकल किए करौली से जयपुर रेफर किया जाता है. जहां उनका उपचार होता है. लेकिन वहां पर उनका मेडिकल नहीं किया जाता, जिससे घायलों के वापस अपने क्षेत्र में लौटने पर संबंधित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर पुलिस की अनुशंसा पर ही घायल का मेडिकल किया जाता है.

इस प्रक्रिया में कई दिन का समय व्यतीत होने के कारण चोट की प्रकृति बदल जाती है और मेडिकल करने वाले चिकित्सक को ब्लंट अथवा धारदार होने के संबंध में राय नहीं देकर उसे टांके लगा जाते हैं. या घाव भरा हुआ होने आदि का विवरण मेडिकल रिपोर्ट में कर देते हैं. साथ ही एक्स-रे रिपोर्ट में भी अस्थि भंग की सही स्थिति नहीं दिखाते.

पढ़ें- डूंगरपुर हिंसक आंदोलन पर CM गहलोत ने कहा- किसी के साथ अन्याय नहीं होगा, आज होगी वार्ता

यदि घायल का इलाज करने वाले अस्पताल, चिकित्सक पीड़ित का एक्सरे, सीटी स्कैन एवं सोनोग्राफी आदि की जांच भी होती है तो पुलिस उन्हें स्वीकार नहीं करती.जिसकी वजह से जिले में मारपीट व अन्य मामलों में घायल होने वाले पीड़ितों के मेडिकल चिकित्सीय परीक्षण में की जा रही लापरवाही और विसंगतियों के कारण पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पा रहा है. जिसके कारण अपराधियों को बचने का मौका मिल जाता है.

वहीं, इससे पीड़ित पक्ष ना केवल प्रताड़ित रहता है, बल्कि उसे न्याय से वंचित भी होना पड़ता है. उन्होंने बताया कि पीड़ितों को उसकी चोटों की मेडिकल रिपोर्ट भी चिकित्सक अथवा पुलिस के द्वारा उपलब्ध नहीं कराई जाती है, जिसके लिए पीड़ित पुलिस एवं चिकित्सकों के पास भटकते रहते हैं, जबकि पीड़ित को यह जानने का वैधानिक अधिकार है कि उसके शरीर पर किस प्रकृति की व कितनी चोटें मिली हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री से इस विसंगति को दुर करने की मांग की है.

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