झालावाड़. गागरोन दुर्ग के लिए आज का दिन ऐतिहासिक है. आज ही के दिन 21 जून 2013 को गागरोन दुर्ग को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया था. ऐसे में आज झालावाड़ की पर्यटन समिति ने गागरोन दुर्ग को विश्व धरोहर घोषित होने की पांचवी वर्षगांठ मनाते हुए संगोष्ठी का आयोजन किया. संगोष्ठी में गागरोन की ऐतिहासिकता व विशेषताओं पर चर्चा की गई.
इस दौरान इतिहासकार का ललित शर्मा ने बताया कि गागरोन दुर्ग को जल दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है और आज ही के दिन 2013 में इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया था. ऐसे में हर वर्ष की भांति इस बार भी संगोष्ठी व सम्मान समारोह का आयोजन किया गया है. ताकि इस को लोक संस्कृति, पर्यटन व पुरातत्व के रूप में इसका प्रचार-प्रसार हो सके.
शर्मा ने बताया कि इसे विश्व धरोहर घोषित होने के पीछे अनेक कारण है. जिनमें एक तो यह कि इस दुर्ग में नींव नहीं है, यह बिना नींव के ही खड़ा है. यह दुर्ग तीनों ओर से नदियों से घिरा हुआ है. जिसके चलते से जलदुर्ग भी कहा जाता है. यह दिल्ली, मालवा, गुजरात, हाडौती और मेवाड़ का यह केंद्र बिंदु रहा है. यहां पर कई युद्ध भी लड़े गए. साथ ही यहां पर दो बार जौहर भी हुआ. गागरोन दुर्ग हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक भी है. क्योंकि यहां पर संत पीपाजी का धाम है तो साथ ही साथ हमीदुद्दीन चिश्ती की भी दरगाह यहां पर मौजूद है. इसी दुर्ग में आदमी की आवाज में बोलने वाले तोते भी पाए जाते हैं. जिनको गागरोनी तोते कहा जाता है. ऐसे में इन सभी मुख्य विशेषताओं के चलते इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया.
गौरतलब है कि हाल ही में गागरोन दुर्ग पर भारतीय डाक विभाग ने डाक टिकट भी जारी किया है. इस दुर्ग को कोटा यूनिवर्सिटी ने बीए सेकंड ईयर के सिलेबस में भी शामिल किया है.