हैदराबाद: "ब्रिटिश हुकूमत बहरी है और इनको अपनी आवाज सुनाने के लिए धमाकों की जरूरत है" नेशनल असेंबली में बम फेंकने से पहले ये भगत सिंह के अल्फाज़ थे. देश की राजधानी दिल्ली में हरियाणा भवन के बाहर फुटपाथ पर धरना दे रहे एक शख्स को देखकर भगत सिंह की कही ये लाइनें याद आ गई.
दिल्ली के दिल में धरना दे रहा ये कोई आम शख्स नहीं था, कुछ घंटों पहले ही उसे मिले पद्मश्री समेत कई सम्मान और मेडल उसके पास थे. इस मूक-बधिर शख्स को उसकी पहलवानी के लिए राष्ट्रपति ने चौथे सर्वोच्च सम्मान से नवाजा था. दुनिया इस पहलवान को 'गूंगा पहलवान' के नाम जानती है. इनकी उपलब्धियों की फेहरिस्त बहुत लंबी है और कहानी कईयों के लिए प्रेरणास्त्रोत लेकिन फिलहाल उन्होंने अपनी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है.
माजरा क्या है ?
'गूंगा पहलवान' के नाम से मशहूर हरियाणा के रेसलर विरेंदर सिंह को बीते दिनों राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्म श्री के सम्मान से नवाजा था. पद्म श्री लेते हुए विरेंद्र की तस्वीर को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने ट्वीट किया और इसे प्रदेश के लिए गर्व बताते हुए विरेंद्र सिंह को बधाई दी, लेकिन 'गूंगा पहलवान' ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया.
धरने पर बैठ गया 'गूंगा पहलवान'
अवॉर्ड लेने के बाद विरेंदर सिंह सीधा दिल्ली स्थित हरियाणा भवन के बाहर पहुंचे और फुटपाथ पर ही धरने पर बैठ गए. दरअसल मुख्यमंत्री ने विरेंद्र को पैरा पहलवान बताकर उनको ट्वीट पर बधाई दी थी. जिसके बाद विरेंद्र ने भी मुख्यमंत्री मनोहर लाल के ट्वीट का जवाब देते हुए लिखा कि
'मुख्यमंत्री जी आप मुझे पैरा खिलाड़ी मानते है तो पैरा के समान अधिकार क्यों नहीं देते, पिछले चार वर्ष से दर-दर की ठोंकरे खा रहा हूं, मैं आज भी जूनियर कोच हूँ और न ही समान कैश अवार्ड दिया गया, कल इस बारे मे मैंने प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी से बात की है अब फैसला आपको करना है!'
'गूंगा पहलवान' 'बोला' तो हरकत में आई सरकार
विरेंदर सिंह के ट्वीट और सोशल मीडिया पर तस्वीरें वायरल हुई तो हरियाणा सरकार भी हरकत में आई. प्रदेश सरकार ने विरेंदर सिंह को चंडीगढ़ बुला लिया. इस बात की तस्दीक खुद विरेंदर सिंह ने ट्वीट करके दी और बताया कि लंबे वक्त के बाद हरियाणा सरकार के अधिकारियों का फोन आया है. हालांकि उन्होंने ट्वीट में साफ-साफ लिखा कि अगर समान अधिकार की बात करते हैं तो मैं बात करूंगा, वरना चंडीगढ़ में ही सीएम आवास के बाहर प्रदर्शन जारी रहेगा.
विवाद क्या है ?
विरेंदर सिंह एक मूक-बधिर खिलाड़ी हैं और मूक-बधिर खिलाड़ियों के लिए कोई पैरालंपिक वर्ग नहीं है. मूक बधिर खिलाड़ियों के लिए अंतरराष्ट्रीय खेल समिति ही प्रतियोगिताएं आयोजित करवाती हैं. डेफलंपिक्स को इंटरनेशनल पैरालंपिक कमिटी से मान्यता भी प्राप्त है लेकिन मूक-बधिर खिलाड़ी पैरालंपिक का हिस्सा नहीं होते. देशभर की सरकारें खिलाड़ियों को ओलंपिक, पैरालंपिक, एशियन गेम्स, कॉमनवेल्थ गेम्स, नेशनल गेम्स में प्रदर्शन के आधार पर ईनाम, नौकरी आदि देती है.
विरेंदर की मांग है कि उसे भी पैरालंपिक खिलाड़ियों के समान अधिकार और सुविधाएं दी जाएं, जो सरकार की तरफ से मुहैय्या करवाई जाती है. लाजमी है कि पैरालंपिक खिलाड़ियों को ओलंपिक खिलाड़ियों के बराबर का दर्जा मिलता है और फिर सरकार की तरफ से नौकरी, सम्मान और सुविधाएं भी मिलती हैं. उनके मुकाबले ये सबकुछ मूक-बधिर खिलाड़ियों को कम मिलता है. विरेंदर सिंह की मांग है कि ये असमानता खत्म होनी चाहिए.
अर्जुन अवॉर्डी, पद्म श्री और डेफलंपिक पदक विजेता
हरियाणा के झज्जर जिले के विरेंदर सिंह भारत की तरफ से कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए कई पदक जीत चुके हैं. वो डेफलंपिक्स में तीन बार स्वर्ण पदक और एक बार कांस्य पदक देश के लिए जीत चुके हैं. इसके अलावा उन्होंने वर्ल्ड डेफ रेसलिंग चैंपियनशिप में भी एक स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक अपने नाम किया था. इनमें से ज्यादातर मेडल विरेंदर ने अपनी मेहनत के दम पर हासिल किए हैं, विश्व स्तर पर उपलब्धियां हासिल करने के बावजूद सरकार की तरफ से ज्यादा साथ नहीं मिला.
बीते दिनों पद्मश्री सम्मान हासिल करने से पहले वो 2008 में राजीव गांधी स्टेट स्पोर्ट्स अवॉर्ड, 2016 में अर्जुन अवॉर्ड, 2018 में नेशल डिस्एबिलिटी अवॉर्ड अपने नाम कर चुके हैं.
भारत सरकार कर रही सम्मान तो राज्य सरकार क्यों नहीं ?
भारत सरकार अर्जुन अवॉर्ड से लेकर पद्मश्री तक कई सम्मानों से जिस पहलवान को नवाज़ चुकी है, उसकी बस इतनी मांग है कि मूक-बधिर खिलाड़ियों को पैरा खिलाड़ियों के समान अधिकार दिए जाएं. वैसे भी मूक-बधिर खिलाड़ियों में विरेंद्र सिंह जैसा प्रदर्शन किसी का नहीं है. हरियाणा के मुख्यमंत्री उन्हें पद्मश्री मिलने को राज्य के लिए गौरव की बात तो बताते हैं लेकिन उनकी नीतियों के कारण एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी पद्मश्री सम्मान पाने के बाद भी सड़क किनारे बैठकर अपनी ही प्रदेश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल देता है. हरियाणा की मनोहर सरकार नई खेल नीति बनाकर अपनी पीठ तो थपथपाती रहती है लेकिन सालों से अनदेखी के शिकार विरेंदर को हक नहीं दे पाई है.
वीरेंद्र सिंह के भाई रामबीर सिंह ने कहा कि वह पैरा-एथलीटों की तरह बधिर खिलाड़ियों के लिए प्रोत्साहन और सरकारी नौकरियों के लिए वर्षों से हरियाणा के मंत्रियों के पास जा रहे हैं. 2017 में, राज्य सरकार ने उनके लिए 6 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि की घोषणा की, जो अभी तक प्राप्त नहीं हुई है. ग्रेड ए की नौकरी की घोषणा की गई थी, नहीं मिली. उसके पास ग्रेड सी की नौकरी है. इसलिए अब वे विरोध कर रहे हैं.
'गूंगा पहलवान' एक डॉक्यूमेंट्री
विरेंदर सिंह की जिंदगी पर 'गूंगा पहलवान' के नाम से एक डॉक्यूमेंट्री भी बन चुकी है. करीब 45 मिनट की ये डॉक्यूमेंट्री विरेंदर सिंह की जिंदगी को पर्दे पर उकेरती है, बताती है कि कैसे एक मूक-बधिर पहलवान अपने नाम से ज्यादा 'गूंगा पहलवान' के नाम से जाना गया. कैसे उसने अपने दम पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहलवानों को धूल चटाई. ये डॉक्यूमेंट्री दुनिया के कई फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाई गई और देश में इसे फिल्मों के मामले में सर्वोच्च नेशनल फिल्म अवॉर्ड भी मिला.