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यूपी विधानसभा चुनाव के तीन चरणों के मतदान में मुसलमानों ने किसे दिया वोट ?

उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में तीन चरण की वोटिंग हो चुकी है. अभी चार चरण के लिए वोट डाले जाएंगे. अब तक हुई वोटिंग के बाद यह पड़ताल शुरू हो गई है कि विशेष जाति और धर्म के लोगों ने किस पार्टी को वोट किया. सबकी नजरें मुसलमान वोटरों पर है. मुसलमान वोट के लिए समाजवादी पार्टी के अलावा बीएसपी और एआईएआईएम जैसी पार्टियां जेद्दोजेहद कर रही हैं. पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार अतुल चंद्रा का विश्लेषण

Muslims voter more towards Samajwadi Party
Muslims voter more towards Samajwadi Party
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Published : Feb 22, 2022, 2:17 PM IST

Updated : Feb 22, 2022, 4:10 PM IST

नई दिल्ली : यूपी विधानसभा चुनाव के पहले फेज से पहले योगी आदित्यनाथ ने 80 फीसदी बनाम 20 फीसदी वाला बयान दिया था. तब माना गया था कि यह बयान के जरिये हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश की गई है क्योंकि मुस्लिम मतदाताओं का रुझान समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल की ओर था. उत्तरप्रदेश में चुनाव जाति और धर्म के आधार पर होते हैं. सभी की नजरें प्रदेश के 19.3 फीसद मुस्लिम वोटरों पर टिकी हैं. पहले दो चरणों में वेस्टर्न यूपी और रूहेलखंड में वोटिंग हुई, जहां मुस्लिम वोटर जीत हार में निर्णायक की हैसियत रखते हैं. तीसरे, चौथे और पांचवें चरण में जाति आधारित वोटिंग से राजनीतिक दलों के भाग्य का फैसला होगा.

पहले दो चरणों में मुसलमान वोटरों ने जाटों के साथ ताकत के तौर पर उभरे. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पहले चरण की 58 में से 53 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि दूसरे चरण की 55 में से 38 सीटों पर उसके प्रत्याशी जीते थे. तब समाजवादी पार्टी ने दूसरे चरण की सीटों में से 15 पर जीत हासिल की थी. बता दें कि पहले और दूसरे चरण के नौ में से पांच जिलों में मुस्लिम की आबादी 40 फीसदी से अधिक हैं. रामपुर में मुसलमानों की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है.

2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद पश्चिमी यूपी की राजनीति बदल गई, जहां रालोद चीफ जयंत चौधरी के पिता चौधरी अजीत सिंह का सिक्का चलता था. दंगों के बाद से आरएलडी को वोट देने वाले जाट पार्टी से दूर चले गए और 2014, 2017 और 2019 के चुनावों में भाजपा का साथ दिया. 2020 में बनाए गए तीन कृषि कानून के बाद जाटों ने दंगों को भूल गए. कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का गुस्सा भी बीजेपी पर हावी हो गया . योगी आदित्यनाथ सरकार के अल्पसंख्यक विरोधी रुख से मुसलमान तो नाराज हैं ही. इसलिए उम्मीद जताई जा रही है कि सपा-आरएलडी का गठबंधन वेस्टर्न यूपी में बीजेपी को मात दे देगा.

पहले चरण के मतदान से मिले संदेशों से अखिलेश यादव उत्साहित हैं. ग्राउंड रिपोर्ट में यह सामने आया कि मुसलमानों ने ऑल-इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) और बसपा जैसी पार्टियों पर अपना वोट गंवाने के बजाय गठबंधन के लिए वोटिंग की. उन्होंने दूसरे दलों से किनारा कर लिया. 2017 में मुस्लिम वोट सपा, बसपा, कांग्रेस और बीजेपी के बीच बंट गए, इस कारण भारतीय जनता पार्टी मुस्लिमों के गढ़ देवबंद से भी जीत गई थी. इस बार आरएलडी और समाजवादी गठबंधन बीजेपी के लिए चुनौती बनी है. मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने पहले चरण में 17 और दूसरे चरण में 23 मुसलमानों को मैदान में उतारा था. सपा को उम्मीद है कि मुसलमान बसपा की ओर नहीं झुकेंगे.

अल्पसंख्यकों का मानना है कि मायावती जरूरत पड़ने पर बीजेपी को मदद दे सकती है. मुसलमानों में यह धारणा बनने का कारण भी है. 1995 में मायावती भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बनीं और बाद में बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार भी बनाई. 2016 में नोटबंदी के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने बीएसपी के नोएडा ऑफिस में छापेमारी की थी. तब वहां से 104 करोड़ रुपये बरामद हुए थे. इस घटना के बाद बीएसपी बचाव की मुद्रा में चली गई. अल्पसंख्यकों का यह मानना है कि अगर बीजेपी बहुमत के लिए जादुई आंकड़े से पीछे रहती है तो बीएसपी उसका समर्थन कर सकती है. बीएसपी राजनीतिक तौर पर सपा से दूरी बनाने के लिए बीजेपी के साथ जा सकती है.

मुसलमानों को लगता है कि सपा-आरएलडी का गठबंधन बीजेपी को सत्ता से दूर रखेगी. मगर आंकड़ों के हिसाब से देखें तो यह इतना आसान नहीं है. 2017 के चुनाव में 2012 के मुकाबले बीजेपी के वोट में 24.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी. उसे 39 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे. सपा के वोटों में 7.7 फीसदी की गिरावट हुई थी और उसे 21.82 प्रतिशत वोट मिले थे. बीएसपी को 22.23 फीसद वोट मिले थे. यानी बीजेपी को हराने के लिए समाजवादी पार्टी को वोट प्रतिशत में बड़ी छलांग लगाई होगी, इसके लिए उसे अन्य जातियों के वोट की जरूरत पड़ेगी. अगर मुसलमानों के अलावा गैर यादव ओबीसी समाजवादी पार्टी के पक्ष में आते हैं, तभी उसे जीत का स्वाद चखने को मिलेगा. स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं के आने से सपा थोड़े-बहुत लाभ की उम्मीद कर सकती है.

यह मानना गलत होगा कि पहले दो फेज के चुनाव नतीजे यूपी में सरकार बनाने के लिए काफी हैं. उत्तरप्रदेश एक ऐसा राज्य हैं, जहां कई मुद्दे चुनाव में बड़ी भूमिका निभाते हैं. अभी चार चरणों के चुनाव होने हैं. क्या बुंदेलखंड में डिफेंस कॉरिडोर काम करेगा ? क्या सेंट्रल और पूर्वी यूपी के किसान अपने पश्चिमी यूपी की तरह मतदान करेंगे? गन्ना किसान कैसे वोट करेंगे? क्या मुफ्त राशन बीजेपी के पक्ष में जाएगा? सिर्फ हिंदू-मुस्लिम मुद्दे नहीं, बल्कि ये सवाल भी है, जो एसपी और बीजेपी के भाग्य का फैसला करेंगे.

(डिस्क्लेमर: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं. यहां व्यक्त किए गए तथ्य और राय ईटीवी भारत के विचारों को नहीं दर्शाते हैं)

पढ़ें : यूपी में थर्ड फेज : यादव बेल्ट में भी सपा और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर

नई दिल्ली : यूपी विधानसभा चुनाव के पहले फेज से पहले योगी आदित्यनाथ ने 80 फीसदी बनाम 20 फीसदी वाला बयान दिया था. तब माना गया था कि यह बयान के जरिये हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश की गई है क्योंकि मुस्लिम मतदाताओं का रुझान समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल की ओर था. उत्तरप्रदेश में चुनाव जाति और धर्म के आधार पर होते हैं. सभी की नजरें प्रदेश के 19.3 फीसद मुस्लिम वोटरों पर टिकी हैं. पहले दो चरणों में वेस्टर्न यूपी और रूहेलखंड में वोटिंग हुई, जहां मुस्लिम वोटर जीत हार में निर्णायक की हैसियत रखते हैं. तीसरे, चौथे और पांचवें चरण में जाति आधारित वोटिंग से राजनीतिक दलों के भाग्य का फैसला होगा.

पहले दो चरणों में मुसलमान वोटरों ने जाटों के साथ ताकत के तौर पर उभरे. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पहले चरण की 58 में से 53 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि दूसरे चरण की 55 में से 38 सीटों पर उसके प्रत्याशी जीते थे. तब समाजवादी पार्टी ने दूसरे चरण की सीटों में से 15 पर जीत हासिल की थी. बता दें कि पहले और दूसरे चरण के नौ में से पांच जिलों में मुस्लिम की आबादी 40 फीसदी से अधिक हैं. रामपुर में मुसलमानों की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है.

2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद पश्चिमी यूपी की राजनीति बदल गई, जहां रालोद चीफ जयंत चौधरी के पिता चौधरी अजीत सिंह का सिक्का चलता था. दंगों के बाद से आरएलडी को वोट देने वाले जाट पार्टी से दूर चले गए और 2014, 2017 और 2019 के चुनावों में भाजपा का साथ दिया. 2020 में बनाए गए तीन कृषि कानून के बाद जाटों ने दंगों को भूल गए. कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का गुस्सा भी बीजेपी पर हावी हो गया . योगी आदित्यनाथ सरकार के अल्पसंख्यक विरोधी रुख से मुसलमान तो नाराज हैं ही. इसलिए उम्मीद जताई जा रही है कि सपा-आरएलडी का गठबंधन वेस्टर्न यूपी में बीजेपी को मात दे देगा.

पहले चरण के मतदान से मिले संदेशों से अखिलेश यादव उत्साहित हैं. ग्राउंड रिपोर्ट में यह सामने आया कि मुसलमानों ने ऑल-इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) और बसपा जैसी पार्टियों पर अपना वोट गंवाने के बजाय गठबंधन के लिए वोटिंग की. उन्होंने दूसरे दलों से किनारा कर लिया. 2017 में मुस्लिम वोट सपा, बसपा, कांग्रेस और बीजेपी के बीच बंट गए, इस कारण भारतीय जनता पार्टी मुस्लिमों के गढ़ देवबंद से भी जीत गई थी. इस बार आरएलडी और समाजवादी गठबंधन बीजेपी के लिए चुनौती बनी है. मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने पहले चरण में 17 और दूसरे चरण में 23 मुसलमानों को मैदान में उतारा था. सपा को उम्मीद है कि मुसलमान बसपा की ओर नहीं झुकेंगे.

अल्पसंख्यकों का मानना है कि मायावती जरूरत पड़ने पर बीजेपी को मदद दे सकती है. मुसलमानों में यह धारणा बनने का कारण भी है. 1995 में मायावती भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बनीं और बाद में बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार भी बनाई. 2016 में नोटबंदी के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने बीएसपी के नोएडा ऑफिस में छापेमारी की थी. तब वहां से 104 करोड़ रुपये बरामद हुए थे. इस घटना के बाद बीएसपी बचाव की मुद्रा में चली गई. अल्पसंख्यकों का यह मानना है कि अगर बीजेपी बहुमत के लिए जादुई आंकड़े से पीछे रहती है तो बीएसपी उसका समर्थन कर सकती है. बीएसपी राजनीतिक तौर पर सपा से दूरी बनाने के लिए बीजेपी के साथ जा सकती है.

मुसलमानों को लगता है कि सपा-आरएलडी का गठबंधन बीजेपी को सत्ता से दूर रखेगी. मगर आंकड़ों के हिसाब से देखें तो यह इतना आसान नहीं है. 2017 के चुनाव में 2012 के मुकाबले बीजेपी के वोट में 24.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी. उसे 39 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे. सपा के वोटों में 7.7 फीसदी की गिरावट हुई थी और उसे 21.82 प्रतिशत वोट मिले थे. बीएसपी को 22.23 फीसद वोट मिले थे. यानी बीजेपी को हराने के लिए समाजवादी पार्टी को वोट प्रतिशत में बड़ी छलांग लगाई होगी, इसके लिए उसे अन्य जातियों के वोट की जरूरत पड़ेगी. अगर मुसलमानों के अलावा गैर यादव ओबीसी समाजवादी पार्टी के पक्ष में आते हैं, तभी उसे जीत का स्वाद चखने को मिलेगा. स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं के आने से सपा थोड़े-बहुत लाभ की उम्मीद कर सकती है.

यह मानना गलत होगा कि पहले दो फेज के चुनाव नतीजे यूपी में सरकार बनाने के लिए काफी हैं. उत्तरप्रदेश एक ऐसा राज्य हैं, जहां कई मुद्दे चुनाव में बड़ी भूमिका निभाते हैं. अभी चार चरणों के चुनाव होने हैं. क्या बुंदेलखंड में डिफेंस कॉरिडोर काम करेगा ? क्या सेंट्रल और पूर्वी यूपी के किसान अपने पश्चिमी यूपी की तरह मतदान करेंगे? गन्ना किसान कैसे वोट करेंगे? क्या मुफ्त राशन बीजेपी के पक्ष में जाएगा? सिर्फ हिंदू-मुस्लिम मुद्दे नहीं, बल्कि ये सवाल भी है, जो एसपी और बीजेपी के भाग्य का फैसला करेंगे.

(डिस्क्लेमर: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं. यहां व्यक्त किए गए तथ्य और राय ईटीवी भारत के विचारों को नहीं दर्शाते हैं)

पढ़ें : यूपी में थर्ड फेज : यादव बेल्ट में भी सपा और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर

Last Updated : Feb 22, 2022, 4:10 PM IST
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