कोटा. एजुकेशन हब के रूप में पहचान रखने वाला राजस्थान का कोटा अब सुसाइड हब बनता जा रहा है. यहां जेईई और नीट की तैयारी करने आने वाले छात्रों में सुसाइड के मामले तेजी से बढ़े हैं. इस साल साढ़े 6 महीने में ही अब तक 18 कोचिंग छात्रों के सुसाइड के केस सामने आ चुके हैं. सालाना औसत की बात की जाए तो यह आंकड़ा सबसे ज्यादा है. इन सुसाइड को रोकना भी चुनौती बना हुआ है.
सुसाइड का अधिकांश पढ़ाई का तनाव माना जाता है, लेकिन एक्सपर्ट का मानना है पढ़ाई के तनाव के साथ-साथ कई अन्य कारण भी इसके साथ जुड़े होते हैं. मेडिकल कॉलेज कोटा में मनोचिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. बीएस शेखावत के अनुसार मुख्य रूप से सुसाइड के तीन कारण होते हैं, जिनमें पहला बायोलॉजिकल, दूसरा साइकोलॉजिकल और तीसरा सोशल कारण है. इन 3 कारणों में ही कई अन्य कारण भी समाहित हैं.
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अचानक नहीं होता है सुसाइड करने का प्लान : डॉ. शेखावत का मानना है कि आत्महत्या मानसिक स्वास्थ्य का पैमाना है. अधिक आत्महत्या होने पर यह माना जाता है कि यहां के लोगों का मानसिक स्वास्थ्य ज्यादा खराब है. कई बार कोटा के सुसाइड के बारे में कहा जाता है कि नेशनल एवरेज से आत्महत्या का औसत कम है, जबकि यह कहना मुनासिब नहीं है. यह एक तरह की बीमारी है, जिसे रोकना होगा. आत्महत्या क्षणिक विचार नहीं है. इसके लिए पहले से व्यक्ति तैयार होता है. आत्महत्या की दर को कम किया जा सकता है. पीड़ित तकलीफ से छुटकारा पाने के लिए यह कदम उठाता है.
बायोलॉजिकल कारणों से आत्महत्या रोक पाना मुश्किल: डॉ. शेखावत के अनुसार बायोलॉजिकल कारणों को कंट्रोल नहीं किया जा सकता है. यह न्यूरोकेमिकल सिंड्रोम टाइप का है. न्यूरोकेमिकल के इमबैलेंस होने पर शुरुआत में व्यक्ति उदास रहता है. इसके बाद वह आत्महत्या के लिए स्वतः ही प्रेरित हो जाता है. इनको रोक पाना थोड़ा मुश्किल है. दूसरी तरफ साइक्लोजिकल और सोशल कारण हैं.
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इन मनोवैज्ञानिक कारणों से होते हैं सुसाइड :
1. पढ़ाई का तनाव: ज्यादातर बच्चे अपने जिलों या स्कूल के टॉपर होते हैं. यहां पर आने के बाद वह काफी ज्यादा टफ कंपटीशन फेस करते हैं. वह काबिल हैं, लेकिन सिलेक्ट होने के काबिल नहीं बन पाते हैं. इसका स्ट्रेस वह नहीं झेल पाते हैं, कई बार दो से तीन अटेम्प्ट में भी बच्चे सफल नहीं हो पाते हैं.
2. लैक ऑफ फैमिली सपोर्ट: माता-पिता बच्चे को पढ़ाई के लिए कोटा में अकेला छोड़ देते हैं. कई बार बच्चा अकेला रहने में डर महसूस करता है, इसके चलते भी बहुत परेशान होने लगता है. जबतक बच्चे सेटल नहीं होते, तब तक पेरेंट्स को ध्यान रखना चाहिए.
3. पियर ग्रुप प्रेशर: कोटा में टॉपर्स बच्चों के बीच कंपटीशन होता है. इसी के चलते कई बच्चे पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं. टेस्ट में उनके अच्छे नंबर नहीं आते हैं. उन्हें इस समय परिवार या अन्य लोगों के सपोर्ट की आवश्यकता होती है, जो नहीं मिल पाता है. कई बार सहपाठी उनका मजाक उड़ा देते हैं.
4. पैरंट्स का प्रेशर: बच्चों पर कई बार पेरेंट्स भी प्रेशर डालते है. कभी कर्जा, जमीन बेचने या आर्थिक स्थिति की बात उनसे की जाती है. इसके चलते बच्चा तनाव में आ जाता है. माता-पिता 11वीं और 12वीं में बच्चे के लिए डिसीजन ले लेते हैं, जो कई बार बच्चों पर भारी पड़ जाता है. मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई को स्टेटस सिंबल माना जाता है. इसी के चलते बच्चों पर प्रेशर बनाते हैं.
5. ना काबिल स्टूडेंट्स को एडमिशन : एडमिशन के दौरान स्क्रीनिंग नहीं होती है. इसका नुकसान भी कई बच्चों को उठाना पड़ता है. बिना काबिल या मजबूरी में पेरेंट्स के प्रेशर में यहां पर पढ़ने के लिए आ जाते हैं. बाद में पढ़ाई में पिछड़ने पर तनाव में चले जाते हैं. हो सकता है, ऐसे बच्चे दूसरे फील्ड में एक्सपर्ट बन सकते हैं, लेकिन उन्हें जानकारी ही नहीं होती है.
6. वैकल्पिक व्यवस्था या प्लान बी: स्टूडेंट्स के कई बार आईआईटी या मेडिकल की पढ़ाई करना बस का नहीं होता है. उन्हें प्लान बी भी जीवन में बताना चाहिए, लेकिन वैकल्पिक व्यवस्था के बारे में ज्यादा नहीं बताया जाता है. उसका भी नुकसान विद्यार्थी को होता है.
7. एडजस्टमेंट नहीं होना: कई बच्चे ऐसे हैं, जो कोटा के माहौल में एडजस्ट नहीं हो पाते हैं. वे परेशान रहते हैं. कुछ बच्चों को भोजन की भी समस्या आती है. यहां आने के पहले सब कुछ उनके पेरेंट्स कर रहे थे और यहां आते ही वह अकेले महसूस करने लग जाते हैं. उन्हें कई काम करने में हिचकिचाहट होती है.
8. नशा और असामाजिक गतिविधियां: कोचिंग छात्रों के सुसाइड में कई अन्य कारण भी सामने आए हैं, जिसमें नशा, गलत गतिविधियां से पढ़ाई बाधित हो जाना भी शामिल है. फिर बच्चे झूठी कहानी बनाते हैं. वे गलत संगत में आकर गैंग बना लेते हैं.
9. लव अफेयर: कोटा में जिस उम्र में बच्चे आते हैं, उस समय उनके शरीर में हार्मोनल चेंजेस होते हैं. इसके चलते अपोजिट सेक्स के प्रति आकर्षित होना स्वाभिक है. इसी आकर्षण, दोस्ती में वे पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं.
10. मोबाइल इंटरनेट का बिल समुचित उपयोग इन बच्चों में होना चाहिए. यह पूरी तरह से डिस्ट्रैक्ट कर देता है. पढ़ाई में पिछड़ने से चिड़चिड़ा होता है, जिसके बाद तनाव में चला जाता है.
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कोचिंग छात्रों के लिए यह उठाए जाने चाहिए कदम :
1. कोचिंग स्टूडेंट्स के लिए सुविधाएं विकसित हों: एक्सपर्ट डॉ. बीएस शेखावत का कहना है कि शहर को कोचिंग के व्यवसाय से ही आमदनी मिल रही है. ऐसे में स्टूडेंट्स के लिए सुविधाओं को बढ़ाना चाहिए. कई बार पीजी-हॉस्टल कोचिंग की तरफ से शिकायत आती है. इन बच्चों से मनमाना चार्ज वसूलने की जगह उन्हें उचित दर पर हर वस्तु उपलब्ध करानी चाहिए, जिससे उनका विश्वास बढ़े.
2. सभी बच्चों पर फोकस करे कोचिंग संस्थान : डॉ. शेखावत का मानना है कि कोचिंग संस्थान अपने विज्ञापनों में बढ़ा-चढ़ा कर दर्शाते हैं, जबकि उन्हें यह दिखाना चाहिए कि कितने बच्चे उनके यहां पर पढ़ने आए थे और कितने बच्चे सफल रहे हैं. ज्यादातर संस्थान केवल टॉपर्स बच्चों को ही दिखाते हैं. इसी के चलते छोटे शहरों में बैठा हुआ विद्यार्थी सोचता है कि वह कोटा जाएगा, तो मेडिकल या इंजीनियरिंग परीक्षा को पास कर ही लेगा. इसी के चलते हुए कई विद्यार्थी यहां आकर परेशान हो जाते हैं.
3. इजी एग्जिट पॉलिसी की दरकरार: कई बार बच्चे यहां पर एडमिशन ले लेते हैं, लेकिन पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं. ऐसे बच्चों को तुरंत फीस वापस कर उनके घरों पर भेज देना चाहिए. इनके लिए इजी एग्जिट पॉलिसी की दरकार है. यहां पर पॉलिसी बनाई गई है, लेकिन पूरी पालना नहीं हो रही है.
4. कोचिंग संस्थान सट्रक्चर में करे बदलाव : कोचिंग संस्थानों को अपने स्ट्रक्चर में बदलाव करना होगा. वह स्टार बैच बनाते हैं, जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए. विद्यार्थियों को नॉर्मल तरीके से ही पढ़ाना चाहिए. अच्छी फैकल्टी को अच्छे बैच दिए जाते हैं, ऐसा नहीं होना चाहिए. बच्चों को समान अवसर देने चाहिए.
5. एडमिशन से पहले स्क्रीनिंग टेस्ट : बच्चों को एडमिशन देने से पहले उनका स्क्रीनिंग टेस्ट लिया जाना चाहिए. इससे उन्हें भी फायदा होगा. इससे जो बच्चे आईआईटी या मेडिकल के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं, या उनका बेस नहीं है, उन्हें रोका जा सकता है.
6. बच्चों को मेंटर किया जाए : मेंटरशिप की प्रक्रिया से विद्यार्थियों को काफी फायदा हो सकता है. बच्चों की अगर मेंटरिंग की जाएगी, तो उन पर नजर रहेगी. वह अपनी तकलीफ को बता सकेंगे. इस तकलीफ को बताने से उन्हें भी फायदा होगा. उनकी प्राइवेसी को ध्यान में रखते हुए समस्या का समाधान किया जाएगा, तो बच्चों को भी फायदा होगा.
7. इवोल्यूशन फॉर्म भरवाना चाहिए : डॉ. शेखावत का मानना है कि जब बच्चा एडमिशन लेता है, तभी अवसाद की स्थिति जानने के लिए आने वाले टूल्स का उपयोग किया जाना चाहिए. उन बच्चों से इवोल्यूशन फॉर्म भरवाया जाएं. इस फॉर्म के जरिए बच्चे का स्कोर सामने आ जाता है. इससे यह पता लग जाता है कि बच्चा मनोरोग से ग्रसित है या नहीं.
बताएं बच्चे ने क्यों किया सुसाइड : परिजन
कोटा में रविवार को सुसाइड का एक मामला सामने आया था, जिसके परिजन सोमवार कोटा पहुंचे थे. मृतक पुष्पेंद्र के शव का पोस्टमार्टम करवाकर शव परिजनों को सुपुर्द किया गया है. पोस्टमार्टम के दौरान मृतक पुष्पेंद्र के चाचा इंद्र सिंह का कहना है कि 7 दिन पहले ही वह आया था. उसके दसवीं में 85 फीसदी थे, वह अपनी मर्जी से ही कोटा पढ़ाई करने के लिए आया था, लेकिन 7 दिन में ही सुसाइड क्यों कर लिया? इस संबंध में जिला प्रशासन या कोचिंग संस्थान ही बता सकता है.
कलेक्टर ने दी कोचिंग संस्थान को क्लीन चिट : दूसरी तरफ, इस पूरे मामले पर जिला कलेक्टर ओपी बुनकर का कहना है कि 7 दिन में छात्र के सुसाइड कर लेने पर कोचिंग संस्थान को दोषी नहीं माना जा सकता है. उनका कहना है कि कोचिंग संस्थान में 7 दिन में पढ़ाई की शुरुआत होती है. ऐसा कोई तनाव पहले 7 दिनों में होता भी नहीं है. उनका कहना है कि इस संबंध में पेरेंट्स को भी बच्चे को सेटल करने के बाद ही कोटा से जाना चाहिए था. बच्चे और पेरेंट्स के बीच में विश्वास की कमी इस मामले में सामने आ रही है.