गया: वैसे तो गयाजी में पितरों के मोक्ष की कामना को लेकर पिंडदानियों के आने का सिलसिला सालों भर जारी रहता है, लेकिन विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला, पितरों के मोक्ष की कामना के लिए अत्यंत ही उपयुक्त होता है. ऐसे में देश और विदेशों से पिंडदानी यहां पितृपक्ष मेले में आते हैं. इस वर्ष पितृपक्ष मेला 28 सितंबर से शुरू हो रहा है. यह 14 अक्टूबर तक चलेगा. इसमें देश के तकरीबन सभी राज्यों से पिंडदानी पहुंचेंगे.
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'पंडा पोथी' में दर्ज है आपके पूर्वजों का इतिहास : मोक्ष धाम की इस नगरी में ऐसे कई चीजें मिल जाएंगी, जिसो सुनकर आप चकित रह जाएंगे. दरअसल, यहां आपको सात पीढ़ियों का बही-खाता मिल जाता है. सरकारी रिकॉर्ड में भले ही सात पीढ़ियों के आंकड़े दुर्लभ होते हों, लेकिन मोक्ष धाम गयाजी में यह उपलब्ध है. यहां ऐसे हजारों पिंडदानी पहुंचते हैं, जिनकी सात पीढ़ियों के बही-खाते यहां मौजूद है. दो-तीन या चार पीढ़ियों की बात आम है.
300 साल पहले कौन थे आपके पूर्वज? : अगर आप पितृपक्ष के दौरान अपने पुरकों की मोक्ष प्राप्ति के लिए गयाजी पहुंचे और आपके पूर्वजों की जानकारी आप पास न हो तब भी यहां के पंडे आपके पूर्वजों का नाम खोज देंगे वो भी चुटकी बजाकर. यानी 300 साल पहले कौन थे आपके पूर्वज, जो गयाजी आए थे, पंडा समाज के पास आपके पूर्वजो के सातों पीढ़ियों की जानकारी मिलेगी, बशर्ते आपके पूर्वज पहले कभी गयाजी आए हों और पिंददान किया हो.
500 साल से भी पुराने ताम्रपत्र भी मिलेंगे : गया जी में गयापाल पंडा के पास 500 साल से भी पुराना बही खाता मौजूद है, जो की ताम्रपत्र और राजाओं के सनद के रूप में मौजूद है. राजाओं के सिक्के के रूप में भी यह वही खाते के तौर पर सहेज कर व्यापार पंडा समाज के द्वारा रखा गया है. यहां भोजपत्र में लिखे पिंडदारियों के पूर्वजों के भी खाते तो हैं ही, बल्कि यहां 500 साल से भी ज्यादा पुराने ताम्र पत्र भी मौजूद हैं. यानि कि ताम्रपत्र का भी बही खाता है.
राजाओं के सिक्के का अनोखा कलेक्शन : यहां आम लोगों से लेकर राजा रजवाड़े के बही खाते भी उपलब्ध हैं. इसके अलावा राजाओं के सनद भी इनके पास मौजूद हैं. वहीं पहचान के तौर पर राजाओं के पीढ़ियों के सिक्के भी मौजूद हैं. आज भी गयाजी में गयापाल पंडा के पास भोजपत्र-कागज के आंकड़े तो हैं ही, ताम्रपत्र और राजाओं के सनद भी मौजूद हैं. गयाजी की यह परंपरा पूर्वजों के बही-खाते को लेकर गया जी की एक सुखद तस्वीर पेश करती है.
क्षेत्र से मालूम कर लेते हैं कि कौन हैं उनके पंडा : देश के कोने-कोने से यानि तकरीबन हर राज्यों से तीर्थयात्री गयाजी को आते हैं और पिंडदान करते हैं. वहीं, गया जी आने के दौरान उन्हें अपने पंडा के बारे में जानकारी हासिल करना क्षेत्र वार पर निर्भर करता है. यहां जिला से लेकर राज्य स्तर तक तीर्थ यात्रियों का बंटवारा गया पाल पंडा समाज के बीच है.
ऐसे पता करें आपके पुरखों की जानकारी : ऐसे में यदि कोई पिंडदानी आते हैं और बताते हैं कि उनके पूर्वजों के पंडा कौन थे, जिनके यहां उन्होंने श्राद्ध किया था, तो यह जिला राज्य के हिसाब से तुरंत पता चल जाता है. इसके बाद पीढ़ी के अनुसार पिंडदानी अपना पिंडदान का कर्मकांड संबंधित गयापाल पंडा के पास करते हैं. वहीं, ऐसे पिंडदानी अपने पीढ़ियो- पूर्वजों के बारे में जानकारी चाहते हैं, तो वह भी उन्हें यहां मिल जाता है, कि उनके पूर्वजों ने यहां पिंडदान किया है.
एक पैतृक धरोहर के रूप में बही-खाता : इस संबंध में गयापाल पंडा सह विष्णुपद प्रबंध कारिणी समिति के सदस्यों में से एक प्रेमनाथ टईया बताते हैं, कि एक पंडा समाज के लिए एक पैतृक धरोहर के रूप में बही खाता है, जिस प्रकार माता-पिता की अचल संपत्ति सुरक्षित रखते हैं, उससे कहीं लाख गुना ज्यादा महत्वपूर्ण यह बही खाता है. इसका महत्व सात पीढ़ी तक से जुड़ा होता है.
अपने सात पीढ़ियों का नाम सुनकर चेहरे खिल जाते है : प्रेमनाथ टईया आगे बताते हैं कि गयाजी को आने वाले तीर्थ यात्री सात पीढ़ियों का नाम जानते ही प्रसन्न हो जाते हैं. आमतौर पर लोग दो-तीन पीढ़ी को ही जानते हैं, सात पीढ़ियों को नहीं जानते. गया तीर्थ ही ऐसा तीर्थ है जहां धन से ज्यादा बही खाता को सुरक्षित रखा जाता है. बताते हैं कि यह मकान बनाने में लगने वाले पिलर के समान है. यही वजह है कि बही खाते को काफी सुरक्षित रखते हैं.
''यहां पिता, दादा परदादा, लकड़दादा का लेखा-जोखा मिल जाता है. 300 साल पुराना रेकॉर्ड यहां जरूर मिल जाता है और उसे सुरक्षित रखते हैं. पहले इसे भोजपत्र में सुरक्षित रखते थे. आज के कागज उस तरह के नहीं है और अब उसे सुरक्षित रखना एक बड़ी चुनौती के रूप में होती है. यही वजह है कि कागजों में लिखे जाने वाले बही खाते को कई सालों के बाद नया कर बदलते रहते हैं.'' - प्रेमनाथ टइया, गयापाल पंडा सह विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के सदस्य
राजे रजवाड़ों भी आए, ताम्रपत्र में भी बही खाता है सुरक्षित : गयाजी में पितरों को 16 ऋणों से मुक्त करने के लिए आम लोगों से लेकर राजा रजवाड़े भी आते रहे हैं. यहां भोजपत्र कागज से लेकर ताम्र पत्र और राजाओं के सनद भी सुरक्षित हैं. 500 से अधिक वर्षों के सनद और ताम्रपत्र गयाजी में गयापाल पंडों के पास मिल जाएंगे.
जजमानी का क्षेत्र भी बंटा : पहले राजा महाराजा अपनी ओर से पत्र (सनद) देते थे. वहीं, इस पत्र के अनुसार गयापाल पंडा के बीच भी जजमानी का क्षेत्र भी बंटा. यही वजह है, कि जजमान अपने क्षेत्र के हिसाब से गयापाल पंडा से संपर्क करते हैं. यह जिलावार क्षेत्र से संपर्क के बाद आसानी से उन्हें अपने पंडा के बारे में जानकारी मिल जाती है.
देश-विदेश से नामचीन आए और पिंडदान किया : बताते हैं कि गया जी वह तीर्थ है, जहां देश-विदेश से नामचीन भी पिंडदान को आए. ऐसे में टिकारी महाराज गोपाल शरण, मकसूदपुर के राजा अजय सिंह, अमावा स्टेट के महाराज, चंद्रकांता निर्माता नीरजा गुलेरी, अमित शाह, के अलावे सिने अभिनेता रवीना टंडन, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी सहित बड़े शख्सियत यहां पिंडदान करने को आ चुके हैं. इसके अलावा गया जी में देश के राष्ट्रपति रहे ज्ञानी जैल सिंह, कस्तूरबा गांधी, मोरारजी देसाई, बूटा सिंह समेत बड़ी शख्सियत यहां पहुंच चुके हैं.
कई पीढियां के बारे में मिली जानकारी : वहीं, लखनऊ से आए तीर्थ यात्री रघुवीर ने बताया कि वह अपने पितरों को मोक्ष दिलाने गया जी को पहुंचे हैं. उन्हें बड़ी खुशी हुई, जब उन्हें अपने कई पीढियों के बारे में जानकारी मिली. यह निश्चित तौर पर खुशी की बात है, ऐसा और कहीं देखने को नहीं मिलता है.
''गया जी ऐसा तीर्थ है, जहां ऐसी परंपरा में समाहित है. क्षेत्र के अनुसार संबंधित पंडा से संपर्क करने पर जानकारी मिलती है और फिर उस पंडा समाज के पास हमारे पूर्वजों का भी बही खाता मिल जाता है.'' - रघुवीर, उत्तर प्रदेश से आए तीर्थयात्री