दिल्लीः हिंदू धर्म में मकर संक्रांति के पर्व का विशेष महत्व है. भारत के कई राज्यों में मकर संक्रांति के पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है. इस बार मकर संक्रांति 2023 का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा. अलग-अलग परंपराओं के रंग से सजा यह पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण है. मकर संक्रांति का एक अन्य नाम खिचड़ी भी है. लेकिन हर राज्य में मकर संक्रांति को मनाने के अलग अलग तरीके और अलग अलग नाम हैं. इस रिपोर्ट में हम आपको बताएंगे कि किस राज्य में किस तरह से मकर संक्रांति मनाया जाता है.
पंजाब में लोहड़ी के रूप में
पंजाब और उससे सटे राज्य हरियाणा में यह पर्व 14 जनवरी से एक दिन पूर्व 13 जनवरी को मनाया जाता है. दोनों राज्य में इस पर्व को लोहड़ी के रूप में मनाते हैं. रात के समय अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने मक्के की उसमें आहुति दी जाती है. यह पर्व नई-नवेली दुल्हन और नवजात बच्चे के लिए बेहद खास होता है. इस पर्व पर सभी एक-दूसरे को तिल की बनीं मिठाईयां खिलाते हैं और लोहड़ी लोकगीत गाते हैं.
बिहार में मकर संक्रांति का महत्व
बिहार में भी मकर संक्रांति को खिचड़ी के ही नाम से जानते हैं. बिहार में उड़द की दाल, चावल, तिल, खटाई और ऊनी वस्त्र दान करने की परंपरा है. यहां दही चूड़ा का भोज आयोजित किया जाता है. वहीं तिलकुट की महक से बाजार गुलजार रहते हैं. तिलकुट दान करने और इसका स्वाद चखने की परंपरा बिहार में सदियों से चली आ रही है.
यूपी में मकर संक्रांति
देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में मकर संक्रांति (Makar Sankranti) को दान का पर्व माना जाता है. इसे 14 जनवरी को मनाया जाता है. हालांकि, हिंदू पंचांग के अनुसार मकर संक्रांति का मुहूर्त बदल भी जाता है. यूपी में संक्रांति के दान का पर्व से जोड़ा गया है. यूपी में संक्रांति के दिन दान दिया जाता है. कहते हैं कि दान देने से आपके सारे कष्ट दूर होते हैं. इसके अलावा गंगा घाटों पर मेलों का भी आयोजन किया जाता है. यूपी में कुछ जगह इसे खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है. प्रदेश में इस दिन हर जगह आसमान पर रंग-बिरंगी पतंगें लहराती हुई नजर आती हैं.
उत्तराखंड में मकर संक्रांति की परंपरा
उत्तराखंड में भी मकर संक्रांति को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है. इस दिन लोग सूर्य अस्त से पहले गंगा स्नान के लिए जाते हैं. गंगोत्री, देवप्रयाग, ऋषिकेश और हरिद्वार के गंगा घाटों पर स्नान के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ता है. लोग सूर्य उदय से पहले स्नान कर सूर्य के उदय होने पर जल चढ़ाते हैं. मकर संक्रांति पर्व पर सुबह से शाम तक मंदिरों में भारी भीड़ उमड़ी रहती है. इसके अलावा काली दाल, चावल और सरसों के तेल का दान किया जाता है. वहीं, पर्व पर उत्तराखंड में उदड़ की दाल व चावल की खिचड़ी खाई जाती है.
राजस्थान में मकर संक्रांति एक अलग परंपरा
राजस्थान में इस दिन बहु अपनी सास को मिठाईयां और फल देकर उनसे आशीर्वाद लेती हैं. इसके अलावा वहां किसी भी सौभाग्य की वस्तु को 14 की संख्या में दान करने का अलग ही महत्व होता है. इस प्रकार मकर संक्रान्ति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक अलग रूप में दिखती है.
महाराष्ट्र में मकर संक्रांति का महत्व
महाराष्ट्र में मकर संक्रांति पर लोग एक-दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और कहते हैं -तिल गुड घ्या अणि गोड गोड बोलै. यानी तिल गुड़ खाओ और मीठा-मीठा बोलो. इसके अलावा इस दिन गूल नामक हलवे को बांटने की भी प्रथा है. उनका मानना है कि ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है. महिलाएं एक खास तरह का 'हल्दी-कुमकुम' समारोह करती हैं.
पश्चिम बंगाल में ऐसे मनाई जाती है मकर संक्रांति
पश्चिम बंगाल के गंगासागर में मकर संक्रांति पर बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है. गंगासागर में इस पर्व पर स्नान करने के बाद तिल दान करने की प्रथा है. कहा जाता है कि इसी दिन मां यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए व्रत रखा था. साथ ही इसी दिन मां गंगा भगीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए गंगा सागर में जा मिली थीं. यही वजह है कि हर साल मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर में भारी भीड़ उमड़ती है.
कर्नाटक में एलु बिरोधु
मकर संक्रांति कर्नाटक में 'एलु बिरोधु' नाम से मनाई जाती है. यहां महिलाएं कम से कम 10 परिवारों के साथ 'एलु बेला' (ताजे कटे हुए गन्ने, तिल, गुड़ और नारियल का उपयोग करके बनाई गई क्षेत्रीय व्यंजनों) का आदान-प्रदान करती हैं. इस समय, यह कन्नड़ कहावत प्रचलित है कि 'एलु बेला थिंडू ओले मथाड़ी' जिसका अर्थ है 'तिल और गुड़ का मिश्रण खाओ और केवल अच्छा बोलो.'
तमिलनाडु में पोंगल
तमिलनाडु में मकर संक्रांति को पोंगल कहते हैं. ये चार दिन का पर्व होता है, जिसमें भोगी पोंगल, सूर्य पोंगल, मट्टू पोंगल, कन्या पोंगल मनाया जाता है. इस मौके पर चावल के पकवान बनते हैं और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है.
आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में मकर संक्रांति
आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में यह पर्व चार दिनों तक चलता है. पहले दिन भोगी पांडुगा होता है, जब लोग पुरानी वस्तुओं को भोगी (अलाव) में फेंक देते हैं. दूसरा दिन पेड्डा पांडुगा होता है, जिसका अर्थ है 'बड़ा त्योहार'. इस दिन लोग प्रार्थना करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं और मेहमानों को दावत के लिए आमंत्रित कर इस दिन की खुशी मनाते हैं. घर के प्रवेश द्वार को 'मुग्गू' डिजाइन से सजाया जाता है. तीसरे दिन कनुमा, जो किसानों के लिए बहुत खास है. वे अपने मवेशियों की पूजा करते हैं और सुख-समृद्धि के रूप में उनका प्रदर्शन करते हैं. पहले इस मौके पर मुर्गों की लड़ाई का आयोजन भी होता था, जिस पर अब रोक लगा दी गई है. चौथे दिन मुक्कानुमा पर किसान अच्छी फसल के लिए मिट्टी, बारिश और आग जैसे तत्वों की पूजा करते हैं. लोग अंतिम दिन मांस से बने व्यंजन खाते हैं.
असम में मकर संक्रांति
असम में मकर संक्रांति को माघ बिहू या भोगली बिहू कहते हैं. इस दिन फसल उत्सव होता है, जिसे माघ में कटाई के मौसम के अंत का प्रतीक माना जाता है. असम उत्सव में बांस, पत्तियों और छप्पर से मेजी नाम की झोपड़ियां बनाई जाती है. इसमें दावत का आयोजन होता है और बाद में उन झोपड़ियों को जला दिया जाता है.
केरल में मकर विलक्कू
मकर संक्रांति केरल में सबरीमाला मंदिर के पास मकर विलक्कू (पोन्नम्बलमेडु पहाड़ी पर ज्वाला) को देखने के लिए हजारों लोगों के रूप में मनाई जाती है. जब आकाश में आकाशीय तारा मकर ज्योति दिखाई देती है. मान्यता यह है कि भगवान अयप्पा स्वामी इस दिव्य प्रकाश के रूप में अपनी उपस्थिति दिखाते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं.
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