नई दिल्लीः हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी की तिथि को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है. देवउठनी एकादशी 14 नवंबर को है. इस दिन भक्त सुख और समृद्धि के लिए भगवान विष्णु की आराधना करते हैं. इस दिन जातक व्रत भी रहते हैं. यह दिवस शादी के लिए बेहद शुभ माना गया है. उत्तर भारत के कई प्रदेशों में लोग तुलसी विवाह भी करते हैं.
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि देवउठनी एकादशी रविवार 14 नवंबर को है. इस बार देव उठनी एकादशी 14 से प्रारंभ होकर 15 नवंबर तक रहेगी. सूर्योदय व्यापिनी तिथि को ध्यान में रखकर पंडितों ने इसे 15 को ही मनाए जाने का उल्लेख किया है. इस दिन से एक बार फिर भगवान विष्णु पूरी सृष्टि का कार्यभार संभाल लेंगे और शादी-विवाह जैसे शुभ कार्य शुरू हो जाएंगे. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चार महीने बाद भगवान विष्णु योग निद्रा से उठते हैं. इस तिथि से ही मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह किया जाता है.
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, विधि-विधान के साथ तुलसी विवाह कराने वालों पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा रहती है. मान्यता है कि तुलसी विवाह करने से कन्यादान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है. भगवान शालीग्राम और माता तुलसी का विवाह कराने से वैवाहिक जीवन सुखी रहता है. महिलाएं सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत-पूजन करती हैं.
देवउठनी एकादशी के दिन चातुर्मास समाप्त होगा. मान्यताओं के अनुसार चतुर्मास में भगवान विष्णु आराम करते हैं. इस वर्ष 20 जुलाई से चातुर्मास की शुरुआत हुई थी. शास्त्रों के अनुसार, इस दौरान कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं. देवउठनी एकादशी तिथि से चतुर्मास अवधि खत्म हो जाती है. ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु शयनी एकादशी को सो जाते हैं. वह इस दिन जागते हैं, देवउठनी एकादशी के दिन जातक सुबह जल्द उठकर स्वच्छ वस्त्र पहनते हैं. भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं. शास्त्रों के अनुसार विष्णुजी के अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने एकादशी को देवी वृंदा (तुलसी) से शादी की थी.
मान्यताओं के अनुसार, किसी भी एकादशी पर चावल का सेवन नहीं करना चाहिए. दरअसल सभी एकादशी पर चावल खाना हर किसी के लिए वर्जित माना गया है. चाहे जातक ने व्रत रखा हो या न रखा हो. माना जाता है कि इस दिन चावल खाने से मनुष्य को अगला जन्म रेंगने वाले जीव में मिलता है. हिंदू धर्म में वैसे ही मांस-मंदिरा को तामसिक प्रवृत्ति बढ़ने वाला माना गया है. ऐसे में किसी पूजन में इन्हें खाने को लेकर मनाही है. ऐसे में एकादशी पर इन्हें खाना तो दूर घर में लाना तक वर्जित माना गया है. माना जाता है कि ऐसा करने वाले जातक को जीवन में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
एकादशी के दिन महिलाओं का भूलकर भी अपमान न करें, चाहें वे आपसे छोटी हो या बड़ी. दरअसल माना जाता है कि किसी का भी अपमान करने से आपके शुभ फलोम में कमी आती है. इस दिन इनके अपमान से व्रत का फल नहीं मिलता है, साथ ही जीवन में कई तरहों की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. एकादशी के दिन भूलकर भी किसी पर क्रोध नहीं करना चाहिए और वाद-विवाद से भी दूरी बनाकर रखनी चाहिए.
एकादशी के दिन दान करना उत्तम माना जाता है. एकादशी के दिन संभव हो तो गंगा स्नान करना चाहिए. विवाह संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए एकादशी के दिन केसर, केला या हल्दी का दान करना चाहिए. एकादशी का उपवास रखने से धन, मान-सम्मान और संतान सुख के साथ मनोवांछित फल की प्राप्ति होने की मान्यता है. कहा जाता है कि एकादशी का व्रत रखने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
देवउठनी एकादशी पूजा विधि
देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को धूप, दीप, पुष्प, फल, अर्घ्य आदि अर्पित करें. भगवान की पूजा करके नीचे दिए मंत्रों का जाप करें.
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदिम्।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे। हिरण्याक्षप्राघातिन् त्रैलोक्यो मंगल कुरु।।
इसके बाद भगवान की आरती करें. पुष्प अर्पित कर इन मंत्रों से प्रार्थना करें.
इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।।
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।
न्यूनं संपूर्णतां यातु त्वत्वप्रसादाज्जनार्दन।।
इसके बाद सभी भगवान को स्मरण करके प्रसाद का वितरण करें।
देवउठनी एकादशी शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि 14 नवंबर 2021: सुबह 5 बजकर 48 मिनट से शुरू
एकादशी तिथि 15 नवंबर 2021: सुबह 6 बजकर 39 मिनट पर समाप्त