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होली पर ग्रहों की स्थिति से बन रहा पहली बार महासंयोग - शुभ योगों में होलिका दहन

रंगों का त्योहार होली इस बार शुक्रवार 18 मार्च को मनेगा. इससे एक दिन पहले 17 तारीख को होलिका जलाई जाएगी. इस बार भद्रा दोष रहेगा इसलिए शाम की बजाय रात में पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में होलिका दहन हो सकेगा.

होली
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Published : Mar 16, 2022, 4:11 PM IST

नई दिल्ली : होली का त्योहार (Festival of colours) बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है. हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होलिका दहन (Holika Dahan on full moon of Falgun month) किया जाता है. होली से पूर्व रात को होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन का दिन भक्तों को प्रह्लाद और होलिका की याद दिलाता है. होलिका दहन के समय भद्रा का साया नहीं होनी चाहिए. भद्रा के समय होलिका दहन (Holika Dahan at the time of Bhadra) करने से अनहोनी की आशंका रहती है. होलिका दहन 17 मार्च को होगा और होली 18 को मनाई जाएगी.

ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि रंगों का त्योहार होली (Holi-Festival of colours) इस बार शुक्रवार 18 मार्च को मनेगा. इससे एक दिन पहले 17 तारीख को होली जलाई जाएगी. इस बार भद्रा दोष (Bhadra Dosha) रहेगा, इसलिए शाम के बजाय रात में पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में होलिका दहन हो सकेगा. अन्य ग्रहों की स्थिति से गजकेसरी, वरिष्ठ और केदार नाम के तीन राजयोग भी रहेंगे. होली पर ऐसा महासंयोग आज तक नहीं बना. बड़े शुभ योगों में होलिका दहन (Holika Dahan in auspicious yog) होना देश के लिए शुभ रहेगा. इन ग्रह योगों से मान-सम्मान, पारिवारिक सुख और समृद्धि बढ़ती है. गुरुवार 17 मार्च को फाल्गुन महीने की पूर्णिमा पर होलिका दहन होगा. होली पर पहली बार ऐसा होगा जब गजकेसरी, वरिष्ठ और केदार नाम के तीनों राजयोग रहेंगे. होली पर आज तक ऐसा शुभ संयोग नहीं बना. पूर्णिमा का स्वामी चंद्रमा होता है जो कि इस बार बृहस्पति से दृष्टि संबंध बना रहा है. साथ ही सूर्य मित्र राशि में और शनि स्वराशि में रहेगा. सितारों की ये स्थिति होली को और भी खास बना रही है.

इस बार गुरुवार को होलिका दहन होगा. जो कि देव गुरु बृहस्पति का दिन माना जाता है. साथ ही बृहस्पति का दृष्टि संबंध चंद्रमा से होने पर गजकेसरी योग रहेगा. इस पर्व पर वरिष्ठ और केदार योग भी बन रहे हैं. पहली बार ऐसा हो रहा है जब होलिका दहन पर ये तीन राजयोग बन रहे हैं. साथ ही सूर्य का मित्र राशि में होना इस पर्व को और शुभ बना रहा है. ऐसी शुभ स्थिति आज तक नहीं बनी. होलिका दहन पर विशेष ग्रह-योग से रोग, शोक और दोष का नाश तो होगा ही, दुश्मनों पर भी जीत मिलेगी.

17 मार्च को होलिका दहन के लिए लोगों के पास केवल 1 घंटा 10 मिनट का समय रहेगा. इस दिन रात 9.02 से 10.14 तक जब भद्रा का पुंछ काल रहेगा, उस समय होलिका दहन किया जा सकता है. जो लोग इस अवधि में दहन नहीं कर पाएं वे रात डेढ़ बजे के बाद होलिका दहन करें. फागुन महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 17 मार्च को दोपहर 1:29 से प्रारंभ होकर अगले दिन दोपहर 12.47 तक रहेगी. उदया तिथि में 18 मार्च को पूर्णिमा रहने पर इसी दिन होली खेली जाएगी.

होलिका दहन के दिन हरि-हर पूजा करनी चाहिए. हरि यानी भगवान विष्णु और हर मतलब शिव. फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर प्रह्लाद का जीवन विष्णु भक्ति की वजह से ही बचा था. तभी से हर वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका दहन के साथ ही विष्णु पूजन की परंपरा भी चली आ रही है. लेकिन साथ ही इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से बीमारियां दूर होने लगती हैं और हर तरह के दोष भी खत्म होते हैं. इसलिए विद्वानों ने इस पर्व पर हरि-हर पूजा का विधान बताया है.

पूर्णिमा पर बन रहे सितारों के शुभ संयोग में चंद्रमा को अर्घ्य देने का विशेष महत्व रहेगा. फाल्गुन महीने की पूर्णिमा पर चंद्रमा की पूजा करने से रोग नाश होता है. इस त्योहार पर पानी में दूध मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए. इसके बाद अबीर, गुलाल, चंदन, अक्षत, मौली, अष्टगंध, फूल और नैवेद्य चढ़ाकर चंद्रमा को धूप-दीप दर्शन करवाकर आरती करनी चाहिए. इस तरह से चंद्र पूजा करने से बीमारियां दूर होने लगती हैं.

होलिका दहन के दौरान हवा की दिशा से तय होता है कि अगली होली तक का समय सेहत, रोजगार, शिक्षा, बिजनेस, कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए कैसा होगा. होलिका जलने पर जिस दिशा में धुंआ उठता है, उससे आने वाले समय का भविष्य जाना जाता है. होलिका दहन की आग सीधी ऊपर उठे तो उसे बहुत शुभ माना गया है. वहीं, दक्षिण दिशा की ओर झुकी होलिका की आग को देश में बीमारियां और दुर्घटनाओं का संकेत देने वाला माना जाता है.

होलिका दहन के समय आग की लौ अगर सीधे हो, आसमान की तरफ उठे तो अगली होली तक सब कुछ अच्छा होता है. खासतौर से सत्ता और प्रशासनिक क्षेत्रों में बड़े सकारात्मक बदलाव होते हैं. बड़ी जन हानि या प्राकृतिक आपदा की आशंका भी कम रहती है. पूजा-पाठ और दान से परेशानियां खत्म होंगी.

पूर्व दिशा: होलिका दहन की लौ पूर्व दिशा की ओर झूके तो इसे बहुत शुभ माना गया है. इससे शिक्षा-अध्यात्म और धर्म को बढ़ावा मिलता है. रोजगार की संभावना बढ़ती है. लोगों की सेहत में सुधार होता है. मान-सम्मान में भी बढ़ता है.

पश्चिम दिशा: होली की आग पश्चिम की ओर उठे तो पशुधन को लाभ होता है. आर्थिक प्रगति होती है, लेकिन धीरे-धीरे. थोड़ी प्राकृतिक आपदाओं की आशंका भी रहती है, लेकिन कोई बड़ी हानि नहीं होती है. इस दौरान चुनौतियां बढ़ती हैं लेकिन सफलता भी मिलती है.

उत्तर दिशा: होलिका दहन के वक्त आग उत्तर दिशा की ओर होती है तो देश और समाज में सुख-शांति बढ़ती है. इस दिशा में कुबेर समेत अन्य देवताओं का वास होने से आर्थिक प्रगति होती है. चिकित्सा, शिक्षा, कृषि और व्यापार में उन्नति होती है.

दक्षिण दिशा: इस दिशा में होलिका दहन की आग का झुकना अशुभ माना गया है. दक्षिण दिशा में होलिका की लौ होने से झगड़े और विवाद बढ़ने की आशंका रहती है. युद्ध-अशांति की स्थिति भी बनती है. इस दिशा में यम का प्रभाव होने से रोग और दुर्घटना बढ़ने का अंदेशा भी रहता है.

शुभ मुहूर्त : होलिका दहन तिथि- 17 मार्च 2022

होलिका दहन मुहूर्त: 17 मार्च 2022 - रात 09 :02 मिनट से रात 10 :14 मिनट

कुल अवधि : लगभग 01 घंटे 10 मिनट

भद्रा समाप्ति के बाद होलिका दहन मुहूर्त:17 मार्च को देर रात 01:12 बजे से अगले दिन 18 मार्च को प्रात: 06:28 बजे तक.

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ: 17 मार्च 2022 को दोपहर 01:29

पूर्णिमा तिथि समाप्त: 18 मार्च 2022 को दोपहर 12:47

नई दिल्ली : होली का त्योहार (Festival of colours) बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है. हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होलिका दहन (Holika Dahan on full moon of Falgun month) किया जाता है. होली से पूर्व रात को होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन का दिन भक्तों को प्रह्लाद और होलिका की याद दिलाता है. होलिका दहन के समय भद्रा का साया नहीं होनी चाहिए. भद्रा के समय होलिका दहन (Holika Dahan at the time of Bhadra) करने से अनहोनी की आशंका रहती है. होलिका दहन 17 मार्च को होगा और होली 18 को मनाई जाएगी.

ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि रंगों का त्योहार होली (Holi-Festival of colours) इस बार शुक्रवार 18 मार्च को मनेगा. इससे एक दिन पहले 17 तारीख को होली जलाई जाएगी. इस बार भद्रा दोष (Bhadra Dosha) रहेगा, इसलिए शाम के बजाय रात में पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में होलिका दहन हो सकेगा. अन्य ग्रहों की स्थिति से गजकेसरी, वरिष्ठ और केदार नाम के तीन राजयोग भी रहेंगे. होली पर ऐसा महासंयोग आज तक नहीं बना. बड़े शुभ योगों में होलिका दहन (Holika Dahan in auspicious yog) होना देश के लिए शुभ रहेगा. इन ग्रह योगों से मान-सम्मान, पारिवारिक सुख और समृद्धि बढ़ती है. गुरुवार 17 मार्च को फाल्गुन महीने की पूर्णिमा पर होलिका दहन होगा. होली पर पहली बार ऐसा होगा जब गजकेसरी, वरिष्ठ और केदार नाम के तीनों राजयोग रहेंगे. होली पर आज तक ऐसा शुभ संयोग नहीं बना. पूर्णिमा का स्वामी चंद्रमा होता है जो कि इस बार बृहस्पति से दृष्टि संबंध बना रहा है. साथ ही सूर्य मित्र राशि में और शनि स्वराशि में रहेगा. सितारों की ये स्थिति होली को और भी खास बना रही है.

इस बार गुरुवार को होलिका दहन होगा. जो कि देव गुरु बृहस्पति का दिन माना जाता है. साथ ही बृहस्पति का दृष्टि संबंध चंद्रमा से होने पर गजकेसरी योग रहेगा. इस पर्व पर वरिष्ठ और केदार योग भी बन रहे हैं. पहली बार ऐसा हो रहा है जब होलिका दहन पर ये तीन राजयोग बन रहे हैं. साथ ही सूर्य का मित्र राशि में होना इस पर्व को और शुभ बना रहा है. ऐसी शुभ स्थिति आज तक नहीं बनी. होलिका दहन पर विशेष ग्रह-योग से रोग, शोक और दोष का नाश तो होगा ही, दुश्मनों पर भी जीत मिलेगी.

17 मार्च को होलिका दहन के लिए लोगों के पास केवल 1 घंटा 10 मिनट का समय रहेगा. इस दिन रात 9.02 से 10.14 तक जब भद्रा का पुंछ काल रहेगा, उस समय होलिका दहन किया जा सकता है. जो लोग इस अवधि में दहन नहीं कर पाएं वे रात डेढ़ बजे के बाद होलिका दहन करें. फागुन महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 17 मार्च को दोपहर 1:29 से प्रारंभ होकर अगले दिन दोपहर 12.47 तक रहेगी. उदया तिथि में 18 मार्च को पूर्णिमा रहने पर इसी दिन होली खेली जाएगी.

होलिका दहन के दिन हरि-हर पूजा करनी चाहिए. हरि यानी भगवान विष्णु और हर मतलब शिव. फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर प्रह्लाद का जीवन विष्णु भक्ति की वजह से ही बचा था. तभी से हर वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका दहन के साथ ही विष्णु पूजन की परंपरा भी चली आ रही है. लेकिन साथ ही इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से बीमारियां दूर होने लगती हैं और हर तरह के दोष भी खत्म होते हैं. इसलिए विद्वानों ने इस पर्व पर हरि-हर पूजा का विधान बताया है.

पूर्णिमा पर बन रहे सितारों के शुभ संयोग में चंद्रमा को अर्घ्य देने का विशेष महत्व रहेगा. फाल्गुन महीने की पूर्णिमा पर चंद्रमा की पूजा करने से रोग नाश होता है. इस त्योहार पर पानी में दूध मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए. इसके बाद अबीर, गुलाल, चंदन, अक्षत, मौली, अष्टगंध, फूल और नैवेद्य चढ़ाकर चंद्रमा को धूप-दीप दर्शन करवाकर आरती करनी चाहिए. इस तरह से चंद्र पूजा करने से बीमारियां दूर होने लगती हैं.

होलिका दहन के दौरान हवा की दिशा से तय होता है कि अगली होली तक का समय सेहत, रोजगार, शिक्षा, बिजनेस, कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए कैसा होगा. होलिका जलने पर जिस दिशा में धुंआ उठता है, उससे आने वाले समय का भविष्य जाना जाता है. होलिका दहन की आग सीधी ऊपर उठे तो उसे बहुत शुभ माना गया है. वहीं, दक्षिण दिशा की ओर झुकी होलिका की आग को देश में बीमारियां और दुर्घटनाओं का संकेत देने वाला माना जाता है.

होलिका दहन के समय आग की लौ अगर सीधे हो, आसमान की तरफ उठे तो अगली होली तक सब कुछ अच्छा होता है. खासतौर से सत्ता और प्रशासनिक क्षेत्रों में बड़े सकारात्मक बदलाव होते हैं. बड़ी जन हानि या प्राकृतिक आपदा की आशंका भी कम रहती है. पूजा-पाठ और दान से परेशानियां खत्म होंगी.

पूर्व दिशा: होलिका दहन की लौ पूर्व दिशा की ओर झूके तो इसे बहुत शुभ माना गया है. इससे शिक्षा-अध्यात्म और धर्म को बढ़ावा मिलता है. रोजगार की संभावना बढ़ती है. लोगों की सेहत में सुधार होता है. मान-सम्मान में भी बढ़ता है.

पश्चिम दिशा: होली की आग पश्चिम की ओर उठे तो पशुधन को लाभ होता है. आर्थिक प्रगति होती है, लेकिन धीरे-धीरे. थोड़ी प्राकृतिक आपदाओं की आशंका भी रहती है, लेकिन कोई बड़ी हानि नहीं होती है. इस दौरान चुनौतियां बढ़ती हैं लेकिन सफलता भी मिलती है.

उत्तर दिशा: होलिका दहन के वक्त आग उत्तर दिशा की ओर होती है तो देश और समाज में सुख-शांति बढ़ती है. इस दिशा में कुबेर समेत अन्य देवताओं का वास होने से आर्थिक प्रगति होती है. चिकित्सा, शिक्षा, कृषि और व्यापार में उन्नति होती है.

दक्षिण दिशा: इस दिशा में होलिका दहन की आग का झुकना अशुभ माना गया है. दक्षिण दिशा में होलिका की लौ होने से झगड़े और विवाद बढ़ने की आशंका रहती है. युद्ध-अशांति की स्थिति भी बनती है. इस दिशा में यम का प्रभाव होने से रोग और दुर्घटना बढ़ने का अंदेशा भी रहता है.

शुभ मुहूर्त : होलिका दहन तिथि- 17 मार्च 2022

होलिका दहन मुहूर्त: 17 मार्च 2022 - रात 09 :02 मिनट से रात 10 :14 मिनट

कुल अवधि : लगभग 01 घंटे 10 मिनट

भद्रा समाप्ति के बाद होलिका दहन मुहूर्त:17 मार्च को देर रात 01:12 बजे से अगले दिन 18 मार्च को प्रात: 06:28 बजे तक.

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ: 17 मार्च 2022 को दोपहर 01:29

पूर्णिमा तिथि समाप्त: 18 मार्च 2022 को दोपहर 12:47

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