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तलाकशुदा पत्नी अपने पति को दे गुजारा भत्ता : महाराष्ट्र HC

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Published : Mar 31, 2022, 7:54 PM IST

याचिकाकर्ता पत्नी की ओर से उच्च न्यायालय में यह तर्क दिया गया कि चूंकि उनका तलाक हो चुका (divorce was granted by Nanded Civil Court) है, पति और पत्नी ने अपने रिश्ते को समाप्त कर दिया है, इसलिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 25 के तहत स्थायी गुजारा भत्ता और निर्वाह खर्च नहीं लगाया जा सकता है. वहीं, पति की ओर से मौजूद वकील राजेश मेवाड़ा ने तर्क दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 25 के तहत, एक पति या पत्नी स्थायी गुजारा भत्ता और निर्वाह खर्च के लिए आवेदन दायर कर सकते हैं. इसलिए नांदेड़ सिविल कोर्ट द्वारा जारी आदेश को यथावश्यक बनाए रखा जाना चाहिए.

औरंगाबाद
औरंगाबाद

औरंगाबाद : अक्सर, पति-पत्नी के तलाक मामले में अदालत पत्नी को गुजारा भत्ता देने का पति को निर्देश देती है. लेकिन महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने ऐसा एक अहम फैसला सुनाया, जिसमें एक पत्नी को अपने से अलग हुए पति को हर महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया है. ये फैसला नांदेड़ के सिविल कोर्ट का है, जिसे महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा. महिला सरकारी नौकरी करती है और पति ने नांदेड़ सिविल कोर्ट में तलाक के बाद अपनी पत्नी से गुजारा भत्ता की मांग की थी. इस पर नांदेड़ अदालत ने तलाकशुदा पत्नी को अपने पति का खर्च वहन करने का निर्देश दिया था. इसी निर्देश के खिलाफ महिला ने महाराष्ट्र उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी. जस्टिस भारती डांगरे ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दायर याचिका को खारिज (Maha HC dismissed petition filed against order of Nanded Civil Court) करते हुए निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा.

जानकारी के मुताबिक, इस दंपत्ति की शादी 1992 में हुई थी. उसके बाद पत्नी ने नांदेड़ सिविल कोर्ट में अपने पति से तलाक के लिए अर्जी दी. तदनुसार, 2015 में दोनों के तलाक को मंजूरी दे दी गई थी. लेकिन तलाक के बाद, पति ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 24 और 25 के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें अपनी पत्नी से स्थायी गुजारा भत्ता और निर्वाह खर्च की मांग (maharashtra husband filed application seeking permanent alimony from wife) की. इस अर्जी में पति ने कहा कि उसके पास गुजारा का कोई साधन नहीं है. पत्नी सरकारी नौकरी में है और उसकी तनख्वाह अच्छी है. पति ने दावा किया कि पत्नी को आज पत्नी को जिस पद पर नौकरी मिली है, उसे वहां तक पहुंचाने में पति का बहुत बड़ा योगदान है. पति द्वारा दायर याचिका पर विचार करते हुए नांदेड़ अदालत ने याचिकाकर्ता को उसके पति को स्थायी गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया.

इसके बाद नांदेड़ सिविल कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ तलाकशुदा पत्नी ने मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका दायर की. याचिकाकर्ता पत्नी की ओर से उच्च न्यायालय में यह तर्क दिया गया कि चूंकि उनका तलाक हो चुका है, पति और पत्नी ने अपने रिश्ते को समाप्त कर दिया है, इसलिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 25 के तहत स्थायी गुजारा भत्ता और निर्वाह खर्च नहीं लगाया जा सकता है. वहीं, पति की ओर से मौजूद वकील राजेश मेवाड़ा ने तर्क दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 25 के तहत, एक पति या पत्नी स्थायी गुजारा भत्ता और निर्वाह खर्च के लिए आवेदन दायर कर सकते हैं. इसलिए नांदेड़ सिविल कोर्ट द्वारा जारी आदेश को यथावश्यक बनाए रखा जाना चाहिए.

मुंबई उच्च न्यायालय ने उपरोक्त तर्कों, दस्तावेजों और सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व के निर्णयों के मद्देनजर, तलाक के बाद पति को स्थायी गुजारा भत्ता और निर्वाह खर्च देने के निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए याचिकाकर्ता पत्नी द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया.

पढ़ें : UPSC सिविल सेवा परीक्षा : कोरोना संक्रमित उम्मीदवारों को मौका देने पर दोबारा विचार करे केंद्र

औरंगाबाद : अक्सर, पति-पत्नी के तलाक मामले में अदालत पत्नी को गुजारा भत्ता देने का पति को निर्देश देती है. लेकिन महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने ऐसा एक अहम फैसला सुनाया, जिसमें एक पत्नी को अपने से अलग हुए पति को हर महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया है. ये फैसला नांदेड़ के सिविल कोर्ट का है, जिसे महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा. महिला सरकारी नौकरी करती है और पति ने नांदेड़ सिविल कोर्ट में तलाक के बाद अपनी पत्नी से गुजारा भत्ता की मांग की थी. इस पर नांदेड़ अदालत ने तलाकशुदा पत्नी को अपने पति का खर्च वहन करने का निर्देश दिया था. इसी निर्देश के खिलाफ महिला ने महाराष्ट्र उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी. जस्टिस भारती डांगरे ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दायर याचिका को खारिज (Maha HC dismissed petition filed against order of Nanded Civil Court) करते हुए निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा.

जानकारी के मुताबिक, इस दंपत्ति की शादी 1992 में हुई थी. उसके बाद पत्नी ने नांदेड़ सिविल कोर्ट में अपने पति से तलाक के लिए अर्जी दी. तदनुसार, 2015 में दोनों के तलाक को मंजूरी दे दी गई थी. लेकिन तलाक के बाद, पति ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 24 और 25 के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें अपनी पत्नी से स्थायी गुजारा भत्ता और निर्वाह खर्च की मांग (maharashtra husband filed application seeking permanent alimony from wife) की. इस अर्जी में पति ने कहा कि उसके पास गुजारा का कोई साधन नहीं है. पत्नी सरकारी नौकरी में है और उसकी तनख्वाह अच्छी है. पति ने दावा किया कि पत्नी को आज पत्नी को जिस पद पर नौकरी मिली है, उसे वहां तक पहुंचाने में पति का बहुत बड़ा योगदान है. पति द्वारा दायर याचिका पर विचार करते हुए नांदेड़ अदालत ने याचिकाकर्ता को उसके पति को स्थायी गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया.

इसके बाद नांदेड़ सिविल कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ तलाकशुदा पत्नी ने मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका दायर की. याचिकाकर्ता पत्नी की ओर से उच्च न्यायालय में यह तर्क दिया गया कि चूंकि उनका तलाक हो चुका है, पति और पत्नी ने अपने रिश्ते को समाप्त कर दिया है, इसलिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 25 के तहत स्थायी गुजारा भत्ता और निर्वाह खर्च नहीं लगाया जा सकता है. वहीं, पति की ओर से मौजूद वकील राजेश मेवाड़ा ने तर्क दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 25 के तहत, एक पति या पत्नी स्थायी गुजारा भत्ता और निर्वाह खर्च के लिए आवेदन दायर कर सकते हैं. इसलिए नांदेड़ सिविल कोर्ट द्वारा जारी आदेश को यथावश्यक बनाए रखा जाना चाहिए.

मुंबई उच्च न्यायालय ने उपरोक्त तर्कों, दस्तावेजों और सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व के निर्णयों के मद्देनजर, तलाक के बाद पति को स्थायी गुजारा भत्ता और निर्वाह खर्च देने के निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए याचिकाकर्ता पत्नी द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया.

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