नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने सरोगेसी कानून के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. कार्यकारी चीफ जस्टिस विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार को छह हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. इस मामले की अगली सुनवाई 19 नवंबर को होगी.
यह याचिका करन बलराज मेहता और डॉक्टर पंखुड़ी चंद्रा ने दायर की है. मेहता पेशे से वकील हैं और अविवाहित हैं, जबकि डॉक्टर चंद्रा एक शादीशुदा महिला हैं. वह एक निजी स्कूल में मनोविज्ञान पढ़ाती हैं. दोनों सरोगेसी के जरिए माता और पिता बनना चाहते हैं. याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील आदित्य समादार ने कहा कि रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी रेगुलेशन एक्ट और सरोगेसी रेगुलेशन एक्ट किसी भी तरह की व्यावसायिकता पर रोक लगा देता है. इन कानूनों का केवल परोपकारी ध्येय है. ऐसा होने से याचिकाकर्ताओं को सरोगेसी के जरिए संतान का विकल्प खत्म हो जाता है.
याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि उन्हें केवल व्यावसायिक तरीके से ही सरोगेसी के जरिए संतान का सुख मिल सकता है. इन कानूनों में कहा गया है कि सरोगेसी के लिए वही विवाहित महिला योग्य है, जिसकी उम्र 25 वर्ष से 35 वर्ष है. और उसे कम से कम एक जैविक संतान हो. इसके अलावा वह महिला सरोगेसी से संतान चाहने वाले जोड़े से जेनिटक रूप से जुड़ी हुई होनी चाहिए. इन सारी शर्तों के साथ किसी महिला को सरोगेसी के लिए खोजना काफी मुश्किल काम है. याचिका में कहा गया है कि दोनों कानूनों के प्रावधान संविधान की धारा 14 और 21 का उल्लंघन करते हैं.
सरोगेसी कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया
दिल्ली हाईकोर्ट ने सरोगेसी कानून के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. कार्यकारी चीफ जस्टिस विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार को छह हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है.
नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने सरोगेसी कानून के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. कार्यकारी चीफ जस्टिस विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार को छह हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. इस मामले की अगली सुनवाई 19 नवंबर को होगी.
यह याचिका करन बलराज मेहता और डॉक्टर पंखुड़ी चंद्रा ने दायर की है. मेहता पेशे से वकील हैं और अविवाहित हैं, जबकि डॉक्टर चंद्रा एक शादीशुदा महिला हैं. वह एक निजी स्कूल में मनोविज्ञान पढ़ाती हैं. दोनों सरोगेसी के जरिए माता और पिता बनना चाहते हैं. याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील आदित्य समादार ने कहा कि रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी रेगुलेशन एक्ट और सरोगेसी रेगुलेशन एक्ट किसी भी तरह की व्यावसायिकता पर रोक लगा देता है. इन कानूनों का केवल परोपकारी ध्येय है. ऐसा होने से याचिकाकर्ताओं को सरोगेसी के जरिए संतान का विकल्प खत्म हो जाता है.
याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि उन्हें केवल व्यावसायिक तरीके से ही सरोगेसी के जरिए संतान का सुख मिल सकता है. इन कानूनों में कहा गया है कि सरोगेसी के लिए वही विवाहित महिला योग्य है, जिसकी उम्र 25 वर्ष से 35 वर्ष है. और उसे कम से कम एक जैविक संतान हो. इसके अलावा वह महिला सरोगेसी से संतान चाहने वाले जोड़े से जेनिटक रूप से जुड़ी हुई होनी चाहिए. इन सारी शर्तों के साथ किसी महिला को सरोगेसी के लिए खोजना काफी मुश्किल काम है. याचिका में कहा गया है कि दोनों कानूनों के प्रावधान संविधान की धारा 14 और 21 का उल्लंघन करते हैं.