नई दिल्ली : नब्बे के दशक में भाजपा को राष्ट्रीय राजनीति की मुख्यधारा में लाने वाले रामजन्मभूमि आंदोलन की पटकथा रामचंद्र परमहंस ने लिखी तो इसकी नींव रखी अशोक सिंघल ने जबकि लालकृष्ण आडवाणी इसका राजनीतिक चेहरा बने.
पेशे से इंजीनियर विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अध्यक्ष सिंघल ने अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने के इस आंदोलन की नींव रखी.
इससे पहले रामजन्मभूमि न्यास के प्रमुख संत रामचंद्र परमहंस और कुछ छोटे हिंदू समूह इसकी लगातार पैरवी कर रहे थे.
उनका 2003 में निधन हो गया. उन्होंने 1934 से आंदोलन की शुरूआत की थी. आजादी के बाद उन्होंने 1949 में विवादित स्थल पर राम की मूर्ति स्थापित भी की थी.
अस्सी के दशक के आखिर में भाजपा के वरिष्ठ नेता आडवाणी इस आंदोलन का राजनीतिक चेहरा बने जिन्होंने इस आंदोलन को परवान चढ़ाया.
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उच्चतम न्यायालय ने शनिवार को ऐतिहासिक फैसले में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया .
रामजन्मभूमि आंदोलन में विभिन्न हस्तियों की भूमिका के बारे में अनुभवी पत्रकार हेमंत शर्मा ने कहा कि सिंघल उस आंदोलन की रीढ थे और इसकी पूरी पटकथा उन्होंने लिखी थी.
उन्होंने कहा कि आडवाणी ने इसे राजनीतिक मसला बनाया जबकि रामचंद्र परमहंस आंदोलन के प्रणेता रहे.
सिंघल 1984 में इस विहिप के संयुक्त महासचिव के तौर पर इस आंदोलन से जुड़े और पहली धर्मसंसद बुलाई. उन्होंने राम मंदिर मसले पर संतों का समर्थन जुटाया.
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वह बाद में विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष बने और इसे जन आंदोलन बनाया. उन्होंने संतों, संघ नेताओं और भाजपा के बीच सेतु का काम किया. उन्होंने 1989 लोकसभा चुनाव में इसे भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल कराने में अहम भूमिका निभाई. सिंघल का 2015 में निधन हो गया.
आडवाणी की अध्यक्षता में भाजपा ने 1989 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राम मंदिर के मुद्दे को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया. हिंदू राष्ट्रवाद के जरिये चुनावी समर्थन जुटाने की कवायद में उन्होंने 1990 के दशक की शुरूआत में राम रथयात्रा निकाली. उसके बाद से यह मसला भाजपा का ‘ट्रंपकार्ड’ बन गया.
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वहीं, परमहंस इस हद तक इस आंदोलन से जुड़े थे कि एक बार उन्होंने यह तक कह दिया था, 'अगर भगवान राम भी आकर मुझसे कहें कि उनका जन्म यहां नहीं हुआ था तो मैं नही मानूंगा.'