मुंबई : केंद्र सरकार ने 27 पेस्टिसाइड्स (कीटनाशक दवा) पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव किया है. इस पर सभी हितधारकों से 45 दिनों के अंदर जवाब देने को कहा गया है. वैसे, किसान इस प्रतिबंध को लेकर संशय में हैं. प्रतिबंधित सूची में शामिल आठ से 10 पेस्टिसाइड का प्रयोग प्राय: आम उगाने वाले किसान करते हैं. किसान वर्षों से इन कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करते आए हैं. उत्पादन पर भी इसका खासा असर पड़ता है. इसलिए इन दवाओं की मांग भी खूब है.
कीटनाशक दवाओं के विक्रेता मोहिंदर बामणे ने बताया कि क्यूनालफॉस दवा का प्रयोग आम के पेड़ पर लगने वाले कीड़ों के लिए किया जाता है. यह 400 रुपये प्रति लीटर है. कार्बेन्डाजिम का इस्तेमाल फंगस इन्फेक्शन के लिए किया जाता है, जो 500 रुपये प्रति किलो है. कीमतों के हिसाब से भी ये कीटनाशक दवाएं काफी सस्ती हैं. अगर ये बंद हो जाएंगी तो किसानों को काफी महंगी कीटनाशक दवाएं लेनी पडेंगी.
गौरतलब है कि भारत में अभी जितनी कीटनाशक दवाओं का प्रयोग किया जाता है, वे सभी बाजार में किसानों के बजट में उपलब्ध हैं, लेकिन इन पर प्रतिबंध लगा दिया गया तो उन्हें दूसरी दवाओं को प्राप्त करने के लिए अधिक पैसे खर्च करने होंगे. यानी अभी किसान जेनेरिक कीटनाशक दवाओं का उपयोग करते हैं और ये सभी भारत में ही बनती हैं.
आम के बगीचे के मालिक प्रसन्ना पेठे का कहना है कि 27 कीटनाशक दवाओं पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है. इनमें से 10 से 12 कीटनाशक दवाएं आम की फसल के लिए इस्तेमाल की जाती हैं. यदि सरकार कुछ कीटनाशक दवाएं बंद करने की सोच रही है तो इसके पीछे कुछ मकसद होगा.
उन्होंने कहा कि कुछ दवाओं का अंश मिट्टी और पानी में काफी दिनों तक रह जाता है. इसलिए हानिकारक कीटकनाशकों पर प्रतिबंध लगाना जरूरी है, लेकिन जिन कीटनाशक दवाओं से नुकसान नहीं हो रहा है. उन पर पांबदी नहीं लगाई जानी चाहिए.
महाराष्ट्र राज्य कृषि विपणन बोर्ड के उप महाप्रबंधक (कोंकण क्षेत्र) भाष्कर पाटिल ने कहा कि देश में ज्यादातर आम मुंबई से निर्यात किए जाते हैं. भारत से हर वर्ष 38,000 से 40,000 मीट्रिक आम निर्यात किए जाते हैं. इनमें से 15 से 20 फीसद अल्फांसो आम होता है. देश से 7,000-8000 मीट्रिक टन अल्फांसो आम का निर्यात किया जाता है.
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उन्होंने कहा, 'हम ज्यादातर मध्य एशिया में आमों का निर्यात करते हैं. इसके अलावा इंग्लैंड, अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड को भी निर्यात किया जाता है.'
बता दें कि कोरोना की वजह से पिछले दो महीनों से आम का निर्यात संभव नहीं हो पाया है. पिछले साल के मुकाबले इस साल 52 फीसदी कम निर्यात हुआ है.
इस बार निर्यातकों के लिए दूसरे राज्यों में होने वाले आम उपलब्ध नहीं हो सके. ऊपर से कीटनाशक दवाओं पर बैन तो उनकी कमर ही तोड़ देगा, क्योंकि महंगे कीटनाशकों से फसल की लागत बढ़ जाएगी.