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आस्था और अटूट विश्वास का प्रतीक है 'लाल बंगला', छूने पर है प्रतिबंध - आस्था और परंपरा अद्वितीय

प्रकृति की गोद में बसे चकोतिया भुंजिया आदिवासी समुदाय की आस्था और परंपरा अद्वितीय है. यहां स्थित लाल बंगले को इतना पवित्र माना जाता है कि किसी बाहरी व्यक्ति को इसे छूने की अनुमति नहीं है. अगर गलती से किसी ने इसे छू भी लिया तो इसे या तो ध्वस्त कर दिया जाता है, या फिर जला दिया जाता है. इसके तुरंत बाद उपवास रखकर समुदाय के लोग एक नया लाल बंगला बनाते हैं.

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आस्था और अटूट विश्वास का प्रतीक है 'लाल बंगला
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Published : Jul 16, 2020, 6:52 PM IST

Updated : Jul 16, 2020, 8:13 PM IST

भुवनेश्वर : ओडिशा राज्य अपनी अद्भुत परंपराओं के लिए जाना जाता है. यहां कईं ऐसी जनजातियां हैं, जिनके आस्था और परंपराएं बिल्कुल अनोखी हैं. ऐसी ही एक परंपरा यहां के चकोतिया भुंजिया आदिवासी समुदाय की है, जो किसी को भी सुनने में थोड़ी अजीब जरूर लगेगी.

अब इसे अटूट विश्वास कहें या फिर अंधविश्वास, इस समुदाय के लोगों की आस्था और परंपरा अद्वितीय है.

प्रकृति की गोद में बसे भुंजिया समुदाय के इन लोगों का विश्वास लाल बंगले से जुड़ा है. जी हां, 'लाल बंगला', जिसे अगर कोई बाहरी व्यक्ति छू ले तो इसे या तो ध्वस्त कर दिया जाता है या फिर जला दिया जाता है और इसके तुरंत बाद समुदाय के लोग उपवास रखते हैं और फिर एक नया लाल बंगला बनाया जाता है.

देखें लाल बंगले पर आधारित ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट...

सबसे दिलचस्प बात तो यह कि इस लाल बंगले के निर्माण में सीमेंट, रेत या पत्थर का इस्तेमाल नहीं होता बल्कि इसे मिट्टी से इसे बनाया जाता है और फिर खतरे के संकेत के रूप में इस पर लाल रंग किया जाता है.

लाल बंगले को पवित्र मानते हैं चकोतिया भुंजिया
आपको बता दें समुदाय के लोग लाल बंगले को बहुत पवित्र मानते हैं. यह उनका रसोईघर होता है. इसके साथ ही यहां ये लोग अपने कुल देवताओं, पूर्वजों की मूर्तियों या उनसे जुड़ी चीजों को संरक्षित करके रखते हैं. यहां उनकी पूजा की जाती है.

रहस्यमयी है लाल बंगले की कहानी
इस लाल बंगले के पीछे की कहानी जितनी दिलचस्प है, उतनी ही रहस्यमयी भी है. परिवार के किसी भी सदस्य का यहां सोना या शरण लेना बिल्कुल वर्जित है. इसी तरह विवाहित बेटियों को भी इसे छूने की अनुमति नहीं है.

खतरे के संकेत के रूप में इसे लाल रंग दिया गया है, ताकि इसे छूने से पहले लोगों को आभास हो जाए, कि यहां कुछ खतरा है और कोई बाहरी व्यक्ति इसे न छूए.

NH 535 के बाद आता है यह इलाका
ओडिशा के नुआपाड़ा शहर के जिला मुख्यालय से शुरू होने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 353 पर चेरचुआन घाट से गुजरने के बाद यह जगह आती है.

यह एक पर्वत शृंखला पर स्थित है, जिसे सुनबेदा अभयारण्य के रूप में जाना जाता है, जो समुद्र तल से तीन हजार फीट की ऊंचाई पर है और जहां 33 आदिवासी गांव हैं. चकोतिया भुंजिया समुदाय से संबंधित कुल 614 परिवार यहां रहते हैं.

संघर्ष कर रहा आदिवासी समुदाय
प्रकृति की गोद में बसे इस आदिवासी समुदाय की आस्था और परंपरा अद्वितीय है. हालांकि पिछले कुछ वर्षों से, यह स्थान माओवादी गतिविधियों का एक केंद्र जरूर बनता जा रहा है.

यह आदिवासी जनजातीय समुदाय अब माओवादी गतिविधियों और जवानों द्वारा किए जा रहे अभियानों के बीच घुटन महसूस कर रहा है, जो एक-दूसरे की गतिविधियों पर नजर रख रहे हैं. ये लोग अपने पीठासीन देवता के संरक्षण में रहकर अपने लिए जीवन यापन करने के लिए निरंतर संघर्ष कर रहे हैं.

अनोखी परंपरा से जुड़े हैं आदिवासी
कई युगों से, यह लाल बंगला इस आदिवासी समुदाय के लिए एक विशेष महत्व रख रहा है. यह उनके जीवन को एक अद्भुत और अनोखी परंपरा से जोड़े हुए है.

भुवनेश्वर : ओडिशा राज्य अपनी अद्भुत परंपराओं के लिए जाना जाता है. यहां कईं ऐसी जनजातियां हैं, जिनके आस्था और परंपराएं बिल्कुल अनोखी हैं. ऐसी ही एक परंपरा यहां के चकोतिया भुंजिया आदिवासी समुदाय की है, जो किसी को भी सुनने में थोड़ी अजीब जरूर लगेगी.

अब इसे अटूट विश्वास कहें या फिर अंधविश्वास, इस समुदाय के लोगों की आस्था और परंपरा अद्वितीय है.

प्रकृति की गोद में बसे भुंजिया समुदाय के इन लोगों का विश्वास लाल बंगले से जुड़ा है. जी हां, 'लाल बंगला', जिसे अगर कोई बाहरी व्यक्ति छू ले तो इसे या तो ध्वस्त कर दिया जाता है या फिर जला दिया जाता है और इसके तुरंत बाद समुदाय के लोग उपवास रखते हैं और फिर एक नया लाल बंगला बनाया जाता है.

देखें लाल बंगले पर आधारित ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट...

सबसे दिलचस्प बात तो यह कि इस लाल बंगले के निर्माण में सीमेंट, रेत या पत्थर का इस्तेमाल नहीं होता बल्कि इसे मिट्टी से इसे बनाया जाता है और फिर खतरे के संकेत के रूप में इस पर लाल रंग किया जाता है.

लाल बंगले को पवित्र मानते हैं चकोतिया भुंजिया
आपको बता दें समुदाय के लोग लाल बंगले को बहुत पवित्र मानते हैं. यह उनका रसोईघर होता है. इसके साथ ही यहां ये लोग अपने कुल देवताओं, पूर्वजों की मूर्तियों या उनसे जुड़ी चीजों को संरक्षित करके रखते हैं. यहां उनकी पूजा की जाती है.

रहस्यमयी है लाल बंगले की कहानी
इस लाल बंगले के पीछे की कहानी जितनी दिलचस्प है, उतनी ही रहस्यमयी भी है. परिवार के किसी भी सदस्य का यहां सोना या शरण लेना बिल्कुल वर्जित है. इसी तरह विवाहित बेटियों को भी इसे छूने की अनुमति नहीं है.

खतरे के संकेत के रूप में इसे लाल रंग दिया गया है, ताकि इसे छूने से पहले लोगों को आभास हो जाए, कि यहां कुछ खतरा है और कोई बाहरी व्यक्ति इसे न छूए.

NH 535 के बाद आता है यह इलाका
ओडिशा के नुआपाड़ा शहर के जिला मुख्यालय से शुरू होने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 353 पर चेरचुआन घाट से गुजरने के बाद यह जगह आती है.

यह एक पर्वत शृंखला पर स्थित है, जिसे सुनबेदा अभयारण्य के रूप में जाना जाता है, जो समुद्र तल से तीन हजार फीट की ऊंचाई पर है और जहां 33 आदिवासी गांव हैं. चकोतिया भुंजिया समुदाय से संबंधित कुल 614 परिवार यहां रहते हैं.

संघर्ष कर रहा आदिवासी समुदाय
प्रकृति की गोद में बसे इस आदिवासी समुदाय की आस्था और परंपरा अद्वितीय है. हालांकि पिछले कुछ वर्षों से, यह स्थान माओवादी गतिविधियों का एक केंद्र जरूर बनता जा रहा है.

यह आदिवासी जनजातीय समुदाय अब माओवादी गतिविधियों और जवानों द्वारा किए जा रहे अभियानों के बीच घुटन महसूस कर रहा है, जो एक-दूसरे की गतिविधियों पर नजर रख रहे हैं. ये लोग अपने पीठासीन देवता के संरक्षण में रहकर अपने लिए जीवन यापन करने के लिए निरंतर संघर्ष कर रहे हैं.

अनोखी परंपरा से जुड़े हैं आदिवासी
कई युगों से, यह लाल बंगला इस आदिवासी समुदाय के लिए एक विशेष महत्व रख रहा है. यह उनके जीवन को एक अद्भुत और अनोखी परंपरा से जोड़े हुए है.

Last Updated : Jul 16, 2020, 8:13 PM IST
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