नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सबरीमाला मामले में दिए गए उसके फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाएं सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ के पास भेजते हुए कहा कि धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध केवल सबरीमाला तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अन्य धर्मों में भी ऐसा है.
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अपनी ओर से तथा न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की ओर से फैसला पढ़ा. इसमें उन्होंने कहा कि सबरीमाला, मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश और दाऊदी बोहरा समुदाय में महिलाओं में खतना जैसे धार्मिक मुद्दों पर फैसला वृहद पीठ लेगी. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि याचिकाकर्ता धर्म और आस्था पर बहस फिर से शुरू करना चाहते हैं. सबरीमाला मामले पर फैसले में न्यायमूर्ति आरएफ नरिमन और डीवाई चंद्रचूड़ की राय अलग थी.
मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश पर रोक का हवाला देते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उच्चतम न्यायालय को सबरीमाला जैसे धार्मिक स्थलों के लिए एक समान नीति बनाना चाहिए. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि ऐसे धार्मिक मुद्दों पर सात न्यायाधीशों की पीठ को विचार करना चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने सबरीमाला मामले में पुनर्विचार समेत सभी अन्य याचिकाएं उच्चतम न्यायालय के सात न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजीं.
आपको बता दें कि शीर्ष अदालत ने 28 सितंबर 2018 को 4 के मुकाबले एक के बहुमत से फैसला दिया था, जिसमें केरल के सुप्रसिद्ध अयप्पा मंदिर में 10 वर्ष से 50 की आयुवर्ग की लड़कियों एवं महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को हटा दिया गया था.
क्या है मंदिर को लेकर मान्यता
मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि मंदिर में विराजमान भगवान अयप्पा नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे और उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया था.
रजस्वला महिलाओं से दूर रहना चाहते थे अय्यप्पा
सबरीमाला मंदिर केरल के पतनमथिट्टा (Pathanamthitta) जिले में स्थित है. यह माना जाता है कि भगवान अय्यप्पा रजस्वला महिलाओं से दूर रहना चाहते थे और इसीलिए वह खुद ही जंगल की ओर चले गए.
61 किलोमीटर की पद यात्रा करते हैं तीर्थयात्री
इस मंदिर के दर्शन के लिए तीर्थयात्री लगभग 61 किलोमीटर की पद यात्रा करते हैं. साथ ही 41 दिनों के कठिन व्रत के बाद वह मंदिर के दर्शन कर पाते हैं.
2006 में केरल सरकार ने दायर की याचिका
सुप्रीम कोर्ट ने किया मामले में हस्तक्षेप
वहीं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद नया मोड़ आया. 2018 में अदालत ने महिलाओं पर लगा प्रतिबंध हटा दिया और सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी.शीर्ष अदालत का कहना था कि लिंग के आधार पर महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाना असंवैधानिक है.
जानें क्या है सबरीमाला का इतिहास
कई संगठनों ने किया विरोध
इसके बाद अदालत के फैसले के खिलाफ कई राजनीतिक संगठनों द्वारा विरोध और आंदोलन किया गया. इसके साथ ही केरल के पंडालम शाही परिवार और थांट्री परिवार ने भी अपनी नाराजगी जाहिर की. हालांकि, धर्मस्थल की देखरेख करने वाले त्रावणकोर देवास्वोम बोर्ड ने अदालत के फैसले का पालन करने के लिए सहमति व्यक्त की थी.
विश्वास बनाम मौलिक अधिकारों की बहस
सबरीमाला मंदिर को लेकर चल रहे विश्वास बनाम मौलिक अधिकारों की बहस उस वक्त और बढ़ गई, जब एक आदिवासी समुदाय, माला अरया ने कहा कि सबरीमाला का प्रबंधन और देखरेख पंडालम शाही परिवार के पहले उनके द्वारा की जाती थी.
माला अरया ने किया दावा
आदिवासी समुदाय, माला अरया ने आरोप लगाया कि मंदिर की परंपराओं को जानबूझकर 'ब्राह्मणवादी' बना दिया गया है. उन्होंने दावा किया कि मंदिर में भगवान अयप्पा का उस स्थान पर विराजमान होना ही उनके दावे की सत्यता जाहिर करता है. इस समुदाय का मानना है कि महिलाओं के प्रवेश पर शार्ष अदालत के फैसले से उन्हें अपने स्वामित्व के अधिकारों के बारे में बात करने का मौका मिलेगा.
1991 से 2019 : सबरीमाला मंदिर मामला
16 नवंबर को मंदिर के कपाट खोले जाएंगे
अहम बात ये है कि इस वर्ष 16 नवंबर को तीन महीने तक चलने वाली वार्षिक तीर्थयात्रा के लिए मंदिर के कपाट खोले जाएंगे. इस दौरान ये देखना दिल्चस्प होगा कि अदालत का पूर्विचार याचिकाओं पर दिया गया फैसला, इस ऐतिहासिक तीर्थ स्थान को कैसे प्रभावित करता है.