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विदेश मंत्री ने अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया बैठक में हिस्सा लिया - राष्ट्रपति अशरफ गनी

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दोहा में अफगान शांति वार्ता पर आयोजित सम्मेलन को संबोधित किया. इस दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि माना जाता है कि शांति प्रक्रिया अफगान के नेतृत्व वाली, स्वामित्व वाली व अफगान-नियंत्रित होनी चाहिए, इसे अफगानिस्तान की राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए.

विदेश मंत्री एस जयशंकर
विदेश मंत्री एस जयशंकर
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Published : Sep 12, 2020, 3:31 PM IST

Updated : Sep 12, 2020, 7:58 PM IST

नई दिल्ली : विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को कहा कि अफगान शांति प्रक्रिया में अफगानिस्तान की सम्प्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान किया जाना चाहिए. दोहा में आयोजित अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया में डिजिटल माध्यम से हिस्सा लेते हुए जयशंकर ने कहा कि शांति प्रक्रिया को मानवाधिकारों और लोकतंत्र को बढ़ावा देना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अल्पसंख्यकों, महिलाओं और खतरे की आशंका वाले वर्गो के हित सुनिश्चित हों एवं देशभर में हिंसा का प्रभावी समाधान निकाला जाए.

जयशंकर ने एक के बाद एक किए गए ट्वीट के जरिए अपने संबोधन के बारे में जानकारी दी. उन्होंने लंबे समय से जारी भारत के उस रुख की पुन: पुष्टि की कि शांति प्रक्रिया अफगानिस्तान के स्वामित्व वाला, अफगानिस्तान नीत और अफगानिस्तान नियंत्रित होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि हमारे लोगों के बीच मित्रता अफगानिस्तान के साथ हमारे इतिहास की गवाही देती है. हमारी चार सौ से अधिक परियोजनाओं के जरिए अफगानिस्तान का कोई हिस्सा अछूता नहीं है. हमें विश्वास है कि हमारे सभ्यतागत संबंध आगे बढ़ते रहेंगे.

गौरतलब है कि पिछले महीने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने तालिबान के चार सौ कैदियों को छोड़ने पर सहमति व्यक्त की थी, जिससे युद्धग्रस्त देश में पिछले दो दशकों से जारी संघर्ष को समाप्त करने के लिये बहुप्रतिक्षित शांति प्रक्रिया शुरू होने का मार्ग प्रशस्त हुआ.

यह भी पढ़ें- शिवसेना का कंगना को जवाब- पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं करते

अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया में भारत एक महत्वपूर्ण पक्षकार है. भारत ने अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण गतिविधियों में करीब दो अरब डालर का निवेश किया है.

फरवरी में अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद भारत उभरती राजनीति स्थिति पर करीब से नजर बनाए हुए है. इस समझौते के तहत अमेरिका, अफगानिस्तान से अपने सैनिक हटा लेगा. वर्ष 2001 के बाद से अफगानिस्तान में अमेरिका के करीब 2400 सैनिक मारे गए हैं.

भारत का कहना है कि इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि इस प्रक्रिया में कहीं कोई ऐसा अप्रशासित स्थान रिक्त नहीं रह जाए, जिसे आतंकवादी और उनके छद्म सहयोगी भर दें.

गौरतलब है कि भारत ने 29 फरवरी को यूएस-तालिबान समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. उस समय कतर के भारतीय राजदूत पी कुमारन थे. वह इस समझौते के साक्षी बने थे. वास्तव में भारत अफगानिस्तान का विकास के प्रमुख साझेदार है. भारत ने अफगानिस्तान के पश्चिमी प्रांत में बाध का निर्माण किया है.

इस सप्ताह की शुरुआत में जयशंकर ने ईरान का दौरा किया था और अफगानिस्तान की स्थिति पर चर्चा की थी. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ईरान में अपने समकक्ष से मुलाकात की. इसके दो दिन दो दिन विदेशमंत्री एस जयशंकर शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में शामिल होने के लिए लेने के लिए मंगलवार को रूस रवाना हुए. हालांकि वह कुछ देर के लिए ईरान की राजधानी तेहरान में रूके. इस दौरान जयशंकर ने ईरानी विदेश मंत्री जावेद शरीफ से मुलाकात की. चाबहार बंदरगाह परियोजना पर चर्चा की. इसके अलावा विदेश मंत्री ने ईरानी समकक्ष के साथ अफनागिस्तान की स्थिति पर भी चर्चा की.

कुछ दिन पहले काबुल सरकार और तालिबान के बीच दोहा में शांति वार्ता पर समझौता हुआ था. इस दौरान अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो मौजूद थे. समझौते का उद्देश अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता स्थापित करना है.

समझौते के अनुसार अफगान सरकार ने कहा कि वह 5,000 तालिबान कैदियों को रिहा करेगी, जबकि तालिबान 1,000 अफगान सैनिकों को रिहा करने के लिए सहमत हो गया था.

नई दिल्ली : विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को कहा कि अफगान शांति प्रक्रिया में अफगानिस्तान की सम्प्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान किया जाना चाहिए. दोहा में आयोजित अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया में डिजिटल माध्यम से हिस्सा लेते हुए जयशंकर ने कहा कि शांति प्रक्रिया को मानवाधिकारों और लोकतंत्र को बढ़ावा देना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अल्पसंख्यकों, महिलाओं और खतरे की आशंका वाले वर्गो के हित सुनिश्चित हों एवं देशभर में हिंसा का प्रभावी समाधान निकाला जाए.

जयशंकर ने एक के बाद एक किए गए ट्वीट के जरिए अपने संबोधन के बारे में जानकारी दी. उन्होंने लंबे समय से जारी भारत के उस रुख की पुन: पुष्टि की कि शांति प्रक्रिया अफगानिस्तान के स्वामित्व वाला, अफगानिस्तान नीत और अफगानिस्तान नियंत्रित होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि हमारे लोगों के बीच मित्रता अफगानिस्तान के साथ हमारे इतिहास की गवाही देती है. हमारी चार सौ से अधिक परियोजनाओं के जरिए अफगानिस्तान का कोई हिस्सा अछूता नहीं है. हमें विश्वास है कि हमारे सभ्यतागत संबंध आगे बढ़ते रहेंगे.

गौरतलब है कि पिछले महीने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने तालिबान के चार सौ कैदियों को छोड़ने पर सहमति व्यक्त की थी, जिससे युद्धग्रस्त देश में पिछले दो दशकों से जारी संघर्ष को समाप्त करने के लिये बहुप्रतिक्षित शांति प्रक्रिया शुरू होने का मार्ग प्रशस्त हुआ.

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अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया में भारत एक महत्वपूर्ण पक्षकार है. भारत ने अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण गतिविधियों में करीब दो अरब डालर का निवेश किया है.

फरवरी में अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद भारत उभरती राजनीति स्थिति पर करीब से नजर बनाए हुए है. इस समझौते के तहत अमेरिका, अफगानिस्तान से अपने सैनिक हटा लेगा. वर्ष 2001 के बाद से अफगानिस्तान में अमेरिका के करीब 2400 सैनिक मारे गए हैं.

भारत का कहना है कि इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि इस प्रक्रिया में कहीं कोई ऐसा अप्रशासित स्थान रिक्त नहीं रह जाए, जिसे आतंकवादी और उनके छद्म सहयोगी भर दें.

गौरतलब है कि भारत ने 29 फरवरी को यूएस-तालिबान समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. उस समय कतर के भारतीय राजदूत पी कुमारन थे. वह इस समझौते के साक्षी बने थे. वास्तव में भारत अफगानिस्तान का विकास के प्रमुख साझेदार है. भारत ने अफगानिस्तान के पश्चिमी प्रांत में बाध का निर्माण किया है.

इस सप्ताह की शुरुआत में जयशंकर ने ईरान का दौरा किया था और अफगानिस्तान की स्थिति पर चर्चा की थी. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ईरान में अपने समकक्ष से मुलाकात की. इसके दो दिन दो दिन विदेशमंत्री एस जयशंकर शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में शामिल होने के लिए लेने के लिए मंगलवार को रूस रवाना हुए. हालांकि वह कुछ देर के लिए ईरान की राजधानी तेहरान में रूके. इस दौरान जयशंकर ने ईरानी विदेश मंत्री जावेद शरीफ से मुलाकात की. चाबहार बंदरगाह परियोजना पर चर्चा की. इसके अलावा विदेश मंत्री ने ईरानी समकक्ष के साथ अफनागिस्तान की स्थिति पर भी चर्चा की.

कुछ दिन पहले काबुल सरकार और तालिबान के बीच दोहा में शांति वार्ता पर समझौता हुआ था. इस दौरान अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो मौजूद थे. समझौते का उद्देश अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता स्थापित करना है.

समझौते के अनुसार अफगान सरकार ने कहा कि वह 5,000 तालिबान कैदियों को रिहा करेगी, जबकि तालिबान 1,000 अफगान सैनिकों को रिहा करने के लिए सहमत हो गया था.

Last Updated : Sep 12, 2020, 7:58 PM IST
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