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JNU में शैक्षणिक योग्यता पूछने पर पूर्व कुलपति असीस दत्ता बोले- यह नोबेल वापस लेने जैसा

ज्वाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) द्वारा पूर्व प्रोफेसरों को पत्र भेजकर बायोडाटा जमा करने के लिए कहा गया. इसके तहत विश्वविद्यालय ने पूर्व कुलपति असीस दत्ता समेत 11 लोगों पर लोगों को पत्र भेजा है. इस पर असीस दत्ता ने प्रतिक्रिया दी है. जानें क्या है पूरा मामला....

असीस दत्ता ( फाइल फोटो)
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Published : Sep 7, 2019, 12:02 AM IST

Updated : Sep 29, 2019, 5:34 PM IST

नई दिल्ली: जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू)के पूर्व कुलपति असीस दत्ता ने शुक्रवार को कहा कि प्रोफेसर एमेरिट्स से शैक्षणिक और कार्य अनुभव मांगना वैसा है जैसे एक या दो दशक बाद उचित काम नहीं करने पर नोबेल पुरस्कार वापस लेना.

दत्ता उन 12 प्रोफेसर एमिरेट्स में हैं जिनसे विश्व विद्यालय प्रशासन ने मूल्यांकन के लिए अपनी शैक्षणिक योग्यता और कार्य अनुभव जमा कराने को कहा है. इस कदम का विश्वविद्यालय शिक्षक संघ सहित कई धड़े विरोध कर रहे हैं.

दत्ता ने बयान जारी कर कहा, 'उन्होंने रेक्टर से लेकर उपकुलपति तक के पदों पर दशकों अपनी सेवाएं दीं और प्रोफेसर एमिरेटस के पद पर रहते विश्वविद्यालय से कुछ नहीं चाहते. दत्ता ने कहा कि जेएनयू में उनका कोई कार्यालय नहीं है और वह कोई भत्ता नहीं लेते.'

पढ़ेंः JNUSU लाइव डिबेटः बीच बहस हुई झड़प

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू)के पूर्व कुलपति असीस दत्ता ने शुक्रवार को कहा कि प्रोफेसर एमेरिट्स से शैक्षणिक और कार्य अनुभव मांगना वैसा है जैसे एक या दो दशक बाद उचित काम नहीं करने पर नोबेल पुरस्कार वापस लेना.

दत्ता उन 12 प्रोफेसर एमिरेट्स में हैं जिनसे विश्व विद्यालय प्रशासन ने मूल्यांकन के लिए अपनी शैक्षणिक योग्यता और कार्य अनुभव जमा कराने को कहा है. इस कदम का विश्वविद्यालय शिक्षक संघ सहित कई धड़े विरोध कर रहे हैं.

दत्ता ने बयान जारी कर कहा, 'उन्होंने रेक्टर से लेकर उपकुलपति तक के पदों पर दशकों अपनी सेवाएं दीं और प्रोफेसर एमिरेटस के पद पर रहते विश्वविद्यालय से कुछ नहीं चाहते. दत्ता ने कहा कि जेएनयू में उनका कोई कार्यालय नहीं है और वह कोई भत्ता नहीं लेते.'

पढ़ेंः जेएनयू छात्रसंघ चुनाव: 50 मिनट की देरी से शुरू हुआ मतदान

उल्लेखनीय है कि जेएनयू प्रशासन ने इतिहासकार रोमिला थापर से उन्हें प्रोफेसर एमिरेटस पद पर बनाए रखने के लिए मूल्यांकन के वास्ते शैक्षणिक योग्यता और कार्य अनुभव की जानकारी मांगी थी, जिसकी जेएनयू शिक्षक संघ ने तीखी आलोचना करते हुए इसे राजनीति से प्रेरित बताया था.

इसके बाद गत सोमवार को विश्वविद्यालय रजिस्ट्रार ने बयान में कहा कि दत्ता सहित 11 अन्य से शैक्षणिक और कार्य अनुभव बताने को कहा गया है. किसी प्रोफेसर एमिरेट को निशाना नहीं बनाया गया है और इस संबंध में सभी आरोप बेबुनियाद हैं. विश्वविद्यालय केवल नियमों का अनुपालन कर रहा है.

पढ़ेंः जेएनयूएसयू प्रेजीडेंशियल डिबेट में अनुच्छेद 370 और लिंचिंग के मुद्दे उठे

शिक्षकों के संघ ने कहा कि उन्होंने 1970 के दशक में जेएनयू में नौकरी करने के लिए हमने अमेरिका की एक नौकरी को छोड़ दिया था.

दत्ता जल्दी ही नोट के वैज्ञानिक बन गए और एक के बाद एक प्रतिष्ठित पुरस्कार जीते.

दत्ता को 1980 के दशक में सीएसआईआर द्वारा जीव में शांति स्वरुप भटनागर पुरस्कार, 1996 में जीव विज्ञान के थर्ड वर्ड अकादमी पुरस्कार (TWAS) , 1999 में शिक्षा में योगदान के लिये पद्म श्री पुरस्कार, 2008 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पद्म विभूषण पुरस्कार मिला.

दत्ता ने 2004 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष बने. जेएनयू में अपने शिक्षण कार्यकाल से सेवानिवृत्त होने के बाद वे एनआईपीजीआर के संस्थापक बने और वर्तमान समय में वे एक प्रतिष्ठित संस्थान के वैज्ञानिक हैं.

पढ़ेंः जेएनयू छात्रसंघ चुनाव: प्रेसिडेंशियल डिबेट के दौरान हुई झड़प, छात्र घायल

गौरतलब है कि जेएनयू प्रशासन ने इतिहासकार रोमिला थापर से उन्हें प्रोफेसर एमिरेटस पद पर बनाए रखने के लिए मूल्यांकन के वास्ते शैक्षणिक योग्यता और कार्य अनुभव की जानकारी मांगी थी, जिसकी जेएनयू शिक्षक संघ ने तीखी आलोचना करते हुए इसे राजनीति से प्रेरित बताया था.

इसके बाद गत सोमवार को विश्वविद्यालय रजिस्ट्रार ने बयान में कहा कि दत्ता सहित 11 अन्य से शैक्षणिक और कार्य अनुभव बताने को कहा गया है. किसी प्रोफेसर एमिरेट को निशाना नहीं बनाया गया है और इस संबंध में सभी आरोप बेबुनियाद हैं. विश्वविद्यालय केवल नियमों का अनुपालन कर रहा है.

नई दिल्ली: जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू)के पूर्व कुलपति असीस दत्ता ने शुक्रवार को कहा कि प्रोफेसर एमेरिट्स से शैक्षणिक और कार्य अनुभव मांगना वैसा है जैसे एक या दो दशक बाद उचित काम नहीं करने पर नोबेल पुरस्कार वापस लेना.

दत्ता उन 12 प्रोफेसर एमिरेट्स में हैं जिनसे विश्व विद्यालय प्रशासन ने मूल्यांकन के लिए अपनी शैक्षणिक योग्यता और कार्य अनुभव जमा कराने को कहा है. इस कदम का विश्वविद्यालय शिक्षक संघ सहित कई धड़े विरोध कर रहे हैं.

दत्ता ने बयान जारी कर कहा, 'उन्होंने रेक्टर से लेकर उपकुलपति तक के पदों पर दशकों अपनी सेवाएं दीं और प्रोफेसर एमिरेटस के पद पर रहते विश्वविद्यालय से कुछ नहीं चाहते. दत्ता ने कहा कि जेएनयू में उनका कोई कार्यालय नहीं है और वह कोई भत्ता नहीं लेते.'

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जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू)के पूर्व कुलपति असीस दत्ता ने शुक्रवार को कहा कि प्रोफेसर एमेरिट्स से शैक्षणिक और कार्य अनुभव मांगना वैसा है जैसे एक या दो दशक बाद उचित काम नहीं करने पर नोबेल पुरस्कार वापस लेना.

दत्ता उन 12 प्रोफेसर एमिरेट्स में हैं जिनसे विश्व विद्यालय प्रशासन ने मूल्यांकन के लिए अपनी शैक्षणिक योग्यता और कार्य अनुभव जमा कराने को कहा है. इस कदम का विश्वविद्यालय शिक्षक संघ सहित कई धड़े विरोध कर रहे हैं.

दत्ता ने बयान जारी कर कहा, 'उन्होंने रेक्टर से लेकर उपकुलपति तक के पदों पर दशकों अपनी सेवाएं दीं और प्रोफेसर एमिरेटस के पद पर रहते विश्वविद्यालय से कुछ नहीं चाहते. दत्ता ने कहा कि जेएनयू में उनका कोई कार्यालय नहीं है और वह कोई भत्ता नहीं लेते.'

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उल्लेखनीय है कि जेएनयू प्रशासन ने इतिहासकार रोमिला थापर से उन्हें प्रोफेसर एमिरेटस पद पर बनाए रखने के लिए मूल्यांकन के वास्ते शैक्षणिक योग्यता और कार्य अनुभव की जानकारी मांगी थी, जिसकी जेएनयू शिक्षक संघ ने तीखी आलोचना करते हुए इसे राजनीति से प्रेरित बताया था.

इसके बाद गत सोमवार को विश्वविद्यालय रजिस्ट्रार ने बयान में कहा कि दत्ता सहित 11 अन्य से शैक्षणिक और कार्य अनुभव बताने को कहा गया है. किसी प्रोफेसर एमिरेट को निशाना नहीं बनाया गया है और इस संबंध में सभी आरोप बेबुनियाद हैं. विश्वविद्यालय केवल नियमों का अनुपालन कर रहा है.

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शिक्षकों के संघ ने कहा कि उन्होंने 1970 के दशक में जेएनयू में नौकरी करने के लिए हमने अमेरिका की एक नौकरी को छोड़ दिया था.

दत्ता जल्दी ही नोट के वैज्ञानिक बन गए और एक के बाद एक प्रतिष्ठित पुरस्कार जीते.

दत्ता को 1980 के दशक में सीएसआईआर द्वारा जीव में शांति स्वरुप भटनागर पुरस्कार, 1996 में जीव विज्ञान के थर्ड वर्ड अकादमी पुरस्कार (TWAS) , 1999 में शिक्षा में योगदान के लिये पद्म श्री पुरस्कार, 2008 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पद्म विभूषण पुरस्कार मिला.

दत्ता ने 2004 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष बने. जेएनयू में अपने शिक्षण कार्यकाल से सेवानिवृत्त होने के बाद वे एनआईपीजीआर के संस्थापक बने और वर्तमान समय में वे एक प्रतिष्ठित संस्थान के वैज्ञानिक हैं.

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गौरतलब है कि जेएनयू प्रशासन ने इतिहासकार रोमिला थापर से उन्हें प्रोफेसर एमिरेटस पद पर बनाए रखने के लिए मूल्यांकन के वास्ते शैक्षणिक योग्यता और कार्य अनुभव की जानकारी मांगी थी, जिसकी जेएनयू शिक्षक संघ ने तीखी आलोचना करते हुए इसे राजनीति से प्रेरित बताया था.

इसके बाद गत सोमवार को विश्वविद्यालय रजिस्ट्रार ने बयान में कहा कि दत्ता सहित 11 अन्य से शैक्षणिक और कार्य अनुभव बताने को कहा गया है. किसी प्रोफेसर एमिरेट को निशाना नहीं बनाया गया है और इस संबंध में सभी आरोप बेबुनियाद हैं. विश्वविद्यालय केवल नियमों का अनुपालन कर रहा है.

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DL-DATTA-JNU
Asking us to submit CV similar to withdrawing Nobel: Former JNU VC on emeritus row
         New Delhi, Sep 6 (PTI) The JNU's exercise to call for CVs of professors emeriti is similar to "withdrawing" Nobel of a recipient, if he or she is thought to be not doing enough good work a decade or two later, the varsity's former vice-chancellor Asis Datta said on Friday.
         Datta is among the 12 professors emeriti who have been asked by the Jawaharlal Nehru University (JNU) administration to submit their CVs for evaluation, a move that has drawn criticism from several quarters, including the varsity's teachers' association.          
         In a statement, Datta, who has served the university for many decades rising to be its rector and then vice chancellor, said with his position as Professor Emeritus, he claims nothing from the university.
         He said he has no office at JNU and gets no remuneration from the university.
         Datta has also mentioned this in a July 22 reply after varsity's registrar asked for CVs , according to the statement.
         "I visit the university to interact with the faculty and students, and to discuss science which has been my life long quest," Datta said.         
         He said his work involves being in close contact with the best scientists of the world, including Nobel laureates and the universities they belonged to.
         The former JNU VC said so far, he has not come across a situation where scientists who were given an honour have been asked to continuously provide proof that they can retain it
         "This is like withdrawing the Nobel if the recipient was thought to be doing not enough good work a decade or two later," Datta remarked.
         Datta in his letter to the registrar had also said he did not avail any facilities like a room, a laboratory, a chair or a table from JNU after his retirement as he had already joined the National Institute of Plant Genome Research (NIPGR) as founder director, the statement said.
         "Whatever, the facilities he was availing before retirement, he had transferred the same to JNU. In view of the above, the assessment of past work of 'Professor Emeritus' is not applicable to Professor Datta," it stated.
         When the JNU Teachers' Association (JNUTA) reached out to him, he said he has been taken aback by this step of the varsity's administration "as the position is honorary and is given for life", as per the university's rules and regulations, the body said.
         The teachers' association said he had given up a tenured job in the US to join JNU in the 1970s, its initial years of formation.
         Datta quickly became a scientist of note, winning one prestigious award after the other.          He has won awards like the Shanti Swarup Bhatnagar award in Biological Sciences by the CSIR in 1980, Third World Academy Award (TWAS) for Biology in 1996, Padma Shri for contribution in the field of education in 1999, and Padma Bhushan for the contribution in the field of Science and Technology (2008).
         Datta became the President of the Indian Science Congress in 2004. After his leadership role in JNU, he went on to be the founding Director of the NIPGR and at present, he is a distinguished scientist of the institute.
         The JNU administration's decision to ask historian Romila Thapar to submit her CV for assessment for her continuation as professor emeritus had drawn sharp criticism with JNUTA terming it "politically motivated".
         Following this the university's registrar on Monday said there are 11 others, including Datta, who have also been asked to submit their CVs.
         The varsity said "no single emeritus professor has been targeted, as has been falsely alleged", and "it has only sought to implement a rule that is part of the university's ordinance". PTI SLB SLB
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NNNN
Last Updated : Sep 29, 2019, 5:34 PM IST
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