नई दिल्ली : अशोक गहलोत कांग्रेस पार्टी में उन नेताओं में शुमार हैं जिन्हें पार्टी संगठन का व्यक्ति कहा जाता है. गहलोत अपने सामाजिक सेवा कार्य के जरिए इस ऊंचाई तक पहुंचे हैं. 1971 के पूर्वी बंगाली शरणार्थी संकट में गहलोत ने भारत के पूर्वी राज्यों में शरणार्थी शिविरों में सेवा की. इस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नजर उन पर पड़ी. उन्होंने गहलोत को राजनीति में आने के निमंत्रण दिया. उनकी कार्यकुशलता को देखकर पार्टी ने अशोक गहलोत को राजस्थान में पार्टी के छात्र संगठन एनएसयूआई का अध्यक्ष बनाया.
जोधपुर के एक जादूगर के बेटे, गहलोत ने हमेशा अपने पत्ते बहुत ही चतुराई से खेले हैं. 69 वर्षीय गहलोत ने नेहरू-गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों के साथ काम किया है. इंदिरा और राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में केंद्रीय मंत्री रहे हैं. मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान वह पर्यटन, खेल, नागरिक उड्डयन और कपड़ मंत्री के पद पर रहे. गहलोत काफी व्यावहारिक माने जाते रहे हैं. उनके सरल स्वभाव से लोग परिचित हैं. यही वजह रही की वे भारत में एक जननेता के तौर पर जाने जाते हैं. गहलोत ने राजनीति की कला में महारत हासिल की है, खासकर जब कांग्रेस के भीतर अपना रास्ता बनाने की बात आती है.
राजस्थान में परसराम मदेरणा का वर्चस्व कायम था. मदेरणा प्रदेश कांग्रेस कमिटी के चीफ हुआ करते थे . गहलोत ने उसकी कुर्सी पर नजर गढ़ा दी थी. बता दें कि राजस्थान की राजनीति में जाति एक महत्वपूर्ण विषय रही है.
अशोक गहलोत 1985 में 34 साल में सबसे कम उम्र के राज्य कांग्रेस प्रमुख बने. बता दें कि वे 1998 में मुख्यमंत्री बने. हालांकि उन्हें इसके लिए 13 साल का इंतजार करना पड़ा, तब वह 47 वर्ष के थे.
1998 के विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस पार्टी ने 150 सीटें जीतीं क्योंकि चुनाव लड़े जाट नेता परसराम मदेरणा को सीएम के चेहरे के रूप में चुना गया था.
मदेरणा और गहलोत के बीच एक करीबी लड़ाई थी जिसमें पूर्व में जाट नेता होने के कारण निवर्तमान विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद प्राप्त था, जबकि गहलोत प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे, जिन्होंने कांग्रेस आलाकमान के भरोसे का लाभ उठाया. परसराम मदेरणा की पैरवी के साथ जाट समुदाय की मांग थी कि राजस्थान को अपने ही बिरादरी से एक मुख्यमंत्री मिले.
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गहलोत और सीपी जोशी का झगड़ा
2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता सी.पी. जोशी और गहलोत के आपस में घोर संघर्ष था. जोशी राज्य कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते पद के प्रबल दावेदार थे, लेकिन एक वोट से चुनाव हार गए. उस वक्त गहलोत फिर से मुख्यमंत्री चुने गए. तत्कालीन केंद्रीय मंत्री सीसराम ओला, राजस्थान के पूर्व अध्यक्ष मदेरणा और नवनिर्वाचित विधायक सोनाराम जैसे जाट नेताओं ने जाट मुख्यमंत्री की मांग एक बार फिर से उठाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.